लगभग 37 साल पहले मैं इस घर मे परसाई जी से मिला था ।
तब मैं बी. ई. तृतीय वर्ष का छात्र था । जबलपुर इंजीनियरिंग कालेज के प्रोफेसर दिनेश खरे (सिविल) कालेज में साहित्यिक कार्यक्रमों के इंचार्ज थे और हमारे एक सीनियर समीर निगम “सारिका कहानी मंच” के संयोजक थे । उनके साथ मुझे परसाई जी के घर जाने का अवसर मिला । परसाई जी को सभी साहित्यकार दादा कहते थे और रामेश्वर अंचल जी को दद्दा । उनका सिगरेट पीते रहना , बिंदास स्वभाव और ठहाके लगा कर बोलना आज भी याद है। हरिशंकर परसाई एक सरल और सहज व्यक्तित्व थे, उनका स्वाभाव मजाकिया था । फक्कड़ की तरह रहते थे ।
देश के जागरुक प्रहरी के रूप में पहचाने जाने वाले हरिशंकर परसाई जी ने लेखन में व्यंग्य की विधा को चुना, क्योंकि वे जानते थे कि समसामयिक जीवन की व्याख्या, उनका विश्लेषण और उनकी भर्त्सना एवं विडम्बना के लिए व्यंग्य से बड़ा कारगर हथियार और दूसरा हो नहीं सकता । उनकी अधिकतर रचनाएं सामाजिक राजनीति, साहित्य, भ्रष्टाचार, आजादी के बाद का ढोंग, आज के जीवन का अन्तर्विरोध, पाखंड और विसंगतियों पर आधारित है । उनके लेखन का तरीका मात्र हंसाता नहीं वरन् आपको सोचने को बाध्य कर देता है।
परसाई जी ने सामाजिक और राजनीतिक यथार्थ की जितनी समझ पैदा की उतना हमारे युग में प्रेमचंद के बाद कोई और लेखक नहीं कर सका है ।
आज लगभग 37 वर्ष बाद किसी कार्यवश उस तरफ जाना हुआ तो सोचा चलो परसाई जी का घर भी देख ले ।
अब वहां पर कम्युनिस्ट पार्टी का कार्यालय है । परसाई जी की स्मृति कही नजर नही आई ।
वाह, इस लेख से परसाई जी के घर की तस्वीर देखने को मिल गई।
आप इस तरह से सोचें कि उनके घर का कम्युनिस्ट पार्टी के दफ्तर में बदल जाना भी सुखद है। उनके घर का खंडहर होने या दुकान में बदल जाने से से बेहतर है उनकी विचारधारा के काम को आगे बढ़ाने वाला दफ्तर बन जाना।
भाई जी, यहां विचार दृष्टि का फर्क है।
सही कहा आपने
https://think4unitynews.com/t4unews/Engineer-doctor-Sri-Ashok-tiwari-ki-najar-se-vyangkar-harishankar-parsai-ka-charitra-chitran
डॉ अशोक कुमार तिवारी इलेक्ट्रिकल इंजीनियर होने के साथ-साथ एक सफल ब्लॉगर भी हैं जिन्होंने भारत के भूले बिसरे नायकों ,धर्म और दर्शन साइंस और टेक्नोलॉजी पर अनेक लेख अपने ब्लॉग में लिखे हैं। जिन का अध्ययन हम हमेशा नए नए प्रारूप में पाते हैं हरिशंकर परसाई के ऊपर इनका प्रभाव और चिर परिचित होने का चित्रण बखूबी इनके द्वारा अपने ब्लॉग में किया गया है ।श्री परसाई जी का सिगरेट पीने का अवगुण से लोग प्रभावित होते हैं परंतु उनके गुणों से वाकिफ होना भी आवश्यक है।