बहुत जरूरी है जनसंख्या नियंत्रण कानून –
अनियंत्रित गति से बढ़ रही जनसंख्या देश के विकास को बाधित करने के साथ ही हमारे आम जन जीवन को भी दिन-प्रतिदिन प्रभावित कर रही है। विकास की कोई भी परियोजना वर्तमान जनसंख्या दर को ध्यान में रखकर बनायी जाती है, लेकिन अचानक जनसंख्या में इजाफा होने के कारण परियोजना का जमीनी धरातल पर साकार हो पाना मुश्किल हो जाता है। ये साफ तौर पर जाहिर है कि जैसे-जैसे भारत की जनसंख्या बढ़ेगी, वैसे-वैसे गरीबी का रूप भी विकराल होता जायेगा। महंगाई बढ़ती जायेगी और जीवन के अस्तित्व के लिए संघर्ष होना प्रारंभ हो जायेगा।
लोगों में जन-जागृति का अभाव होने के कारण तथा मज़हबी विचारों के कारण दस-बारह बच्चों की फौज खड़ी करने में वे कोई गुरेज नहीं करते है। एक पुत्र की कामना में अनेक पुत्रियां हों इसमें कोई गुरेज नहीं क्योकि ऐसे लोगो की धार्मिक मान्यता है कि वंश पुत्र से ही चलता है । इसलिए सबसे पहले उन्हें जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणामों के प्रति जागरूक करने की महती आवश्यकता है। यह समझने की जरूरत है कि जनसंख्या को बढ़ाकर हम अपने आने वाले कल को ही खतरे में डाल रहे हैं। वस्तुतः बढ़ती जनसंख्या के कारण भारी मात्रा में खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो रहा है। जिसके कारण देश में भुखमरी, पानी व बिजली की समस्या, आवास की समस्या, अशिक्षा का दंश, चिकित्सा की बदइंतजामी व रोजगार के कम होते विकल्प इत्यादि प्रकार की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या 2024 तक चीन की भारी आबादी को पीछे छोड़कर काफी आगे निकल जायेगी। सन 2100 तक भारत दुनिया का सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश बन जायेगा।
हमें समझना चाहिए कि बेहताशा बढ़ती जनसंख्या न केवल वर्तमान विकास क्रम को प्रभावित करती है, बल्कि अपने साथ भविष्य की कई चुनौतियां भी लेकर आती है। भूखों और नंगों की तादाद खड़ी करके हम खाद्यान्न संकट, पेयजल, आवास और शिक्षा का खतरा मोल ले रहे हैं। लोकतंत्र को भीड़तंत्र में तब्दील कर देश की गरीबी को बढ़ा रहे हैं। सालों पहले प्रतिपादित भूगोलवेत्ता माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत के मुताबिक मानव जनसंख्या ज्यामितीय आधार पर बढ़ती है लेकिन वहीं, भोजन और प्राकृतिक संसाधन अंकगणितीय आधार पर बढ़ते हैं। यही वजह है कि जनसंख्या और संसाधनों के बीच का अंतर उत्पन्न हो जाता है। कुदरत इस अंतर को पाटने के लिए आपदाएं लाती है। कभी सूखा पड़ता है तो कभी बाढ़ इसकी मिसालें हैं। इसी तरह डार्विनवाद के प्रणेता चार्ल्स डार्विन के सिद्धांत के मुताबिक ”जीवन के लिए संघर्ष’ लागू होता स्पष्ट नजर आ रहा है। सीमित जनसंख्या में हम बेहतर और अधिक संसाधनों के साथ आरामदायक जीवन जी सकते हैं, जबकि जनसंख्या वृद्धि के कारण यही आराम संघर्ष में परिवर्तित होकर शांति-सुकून को छीनने का काम करता है।
आज देश की सभी समस्याओं की जड़ में जनसंख्या-विस्फोट है। विश्व के सबसे अधिक गरीब और भूखे लोग भारत में हैं। कुपोषण से मरने वाले बच्चों की संख्या भी हमारे देश में सबसे ज्यादा है। बेरोजगारी से देश के युवा परेशान हैं। युवा शक्ति में निरंतर तनाव बढ़ता जा रहा है जो देश में बढ़ते हुए अपराधों का एक सबसे बड़ा कारण है। बढ़ती हुई जनसंख्या चिंता का विषय है।
सरकार से उम्मीद है कि वह जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाये ।