भारत मे अनुसंधान का स्तर (level of research in India) :
सन 2005 से 2013 तक हमने पीएचडी थीसिस evaluation का कार्य किया । तब मेरे पास राजस्थान , आंध्रप्रदेश, उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश आदि के अनेक विश्वविद्यालयो की ph.d. thesis चेक होने के किये आती थी । ये थीसिस इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग तथा मैनेजमेंट विषयो की होती थी । साथ मे एक 8 पन्ने का फॉर्म भी, जिसमे विभिन्न जांच बिंदुओं पर थीसिस के बारे में अपने कमेंट लिखना पड़ते थे , अंत मे यह भी लिखना पड़ता कि इनको पीएचडी हेतु अनुशंसित करता हूँ अथवा नही ।
एक पीएचडी थीसिस को चेक करने में 2 घंटे प्रतिदिन के हिसाब से लगभग 5 दिनो का समय लगता है ।
उस वक्त एक थीसिस चेक करने का विश्वविद्यालय द्वारा आनरेरियम मात्र 250 रुपये मिलता था । अब शायद 500 रुपये मिलने लगा है । आर्थिक दृष्टि से कोई लाभ नही था, किंतु विश्वविद्यालयो के अनेक मित्र प्रोफेसरो के अनुरोध पर मैने यह कार्य करना स्वीकार्य किया था ।
2013 में मैने स्वेच्छा से यह कार्य छोड़ दिया क्योकि
अनेक थीसिसो का परीक्षण कर मुझे अनुभव हुआ कि भारत मे रिसर्च का स्तर (अन्य विकसित देशों की तुलना में) काफी निम्न कोटि का है । इसके अनेक कारण हो सकते हैं –
1. शोध छात्रों को शोध के लिए वित्तीय सहायता न मिलना , जिससे उसके अनुसंधान करने के रिसोर्स सीमित होते हैं । poor government funding . Low stipend or no stipend . इसलिए हमारे देश में रिसर्च को कोई अपना कैरियर नही बनाता ।
2. शोध पर्यवेक्षक (पीएचडी गाइड) का निम्न स्तर होना । बिना कोई उल्लेखनीय रिसर्च किये सिर्फ लंबी प्रोफेसरी की नौकरी के आधार पर उनको गाइड बना दिया जाता है । इन्हें अपने विषय के नवीन अनुसंधानों का कुछ भी पता नही । ऐसे गाइड, छात्र को कुछ भी गाइड नही कर पाते ।
3. मौलिक रिसर्च करने की बजाए किसी पुरानी रिसर्च को नए प्रारूप में थोड़ा हेरफेर कर के प्रस्तुत करना । यह सिस्टम भारत मे बहुतायत है।
4. रिसर्च में शार्ट कट पद्धति अपनाना । रिसर्च एक शार्ट टर्म गेन हो गया है जिसका उद्देश्य येन केन प्रकार पीएचडी डिग्री हासिल करना है । चाहे छात्र में रिसर्च क्षमता aptitude हो या न हो । रिसर्च में रुचि हो या न हो , बस उसे पीएचडी करना है । ताकि कॉलेज टीचिंग की नौकरी पक्की हो जाये ।
5. स्कूल के समय से ही हमारी शिक्षा व्यवस्था steriotypical होती है । किताब पढ़ो , परीक्षा दो , पास हो जाओ । इसमें नए विचारों या इनोवेशन के लिए कोई स्थान नही होता । वही छात्र आगे चल कर शोधार्थी बनता है ।
6. छात्रों का रोल मॉडल कोई वैज्ञानिक नही होता जिसने कोई बड़ी खोज की हो । उनके रोल मॉडल फ़िल्म हीरो , क्रिकेटर , नेता या पूंजीपति होते हैं ।
7. विश्वविद्यालय में अच्छी आधुनिक रिसर्च प्रयोगशालाओं का अभाव
8. विश्वविद्यालय और कार्यकारी कंपनियों में रिसर्च हेतु अनुबंध न होना ।
मेरे अनुभव में यह भी आया है कि प्राईवेट विश्वविद्यालयो में रिसर्च का स्तर सरकारी विश्वविद्यालयों से निम्न है ।
इक्षा न होते हुए भी एक मित्र कुलपति के विशेष अनुरोध पर लॉक डाउन के दिनों में पुनः एक थीसिस evaluation कर रहा हूं । किंतु थीसिस का स्तर वही है जो ऊपर बताया गया है । ☹️☹️☹️ ।
15-20 पुरानी थीसिसे जो घर पर पड़ी है , आज उनको छांटा । सोच रहा हूँ कि इनको JEC की लाइब्रेरी में डोनेट कर दूं ।
भारत मे अनुसंधान का स्तर निम्न होने के अन्य भी बहुत कारण हो सकते है । कुछ पर आप लोग भी प्रकाश डालें , तभी पता चलेगा कि विश्वगुरु का दावा करने वाले हम भारतीय नागरिक एक भी नोबल पुरस्कार क्यो नही ले पाते ?
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