पहले टाटा-बिरलाकरण होता था , अब अम्बानीअदाणीकरण हो रहा है !!!
चुनाव लड़ने के लिए पार्टी फण्ड में पैसा गरीब मजदूर किसान नही देता है , न ही हम और आप देते है । बड़े व्यापारी उद्योगपति ही पार्टियों को करोड़ों रुपये का फंड देते है ।
उद्योगपति फ्री में पैसा नही देता है, मुफ्त दान नही करता है । वह निवेश करता है , और चुनाव के बाद अपने निवेश की फसल काटता है । देश मे यह सिस्टम 1952 से लागू है । राजनीतिक पार्टी का आका बन कर उद्योगपति अपने प्रभाव का इस्तेमाल करता है , अपने फायदे के नियम और नीतियां बनवाता है, टैक्स सिस्टम बनवाता है , सरकारी कम्पनियों को खरीदता है और फिर अपने बिज़नेस में प्रॉफिट बढ़ाता है ।
नेहरू इंदिरा गांधी के समय टाटा बिरला उद्योग जगत में छा गए थे । राजीव गांधी के समय बजाज छा गए । क्वात्रोचि ने खूब मलाई काटी । मनमोहन सिंह के समय देश का विजय माल्याकरण हुआ , उनको कांग्रेस ने राज्यसभा में भेजा । कार्तिक चिदंबरम , दामाद जी आदि ने जम के पैसा लूटा ।
पार्टी फण्ड में करोड़ों रुपये ले कर केजरीवाल ने बिज़नेसमैन नारायण गुप्ता , सुशील गुप्ता को राज्यसभा में भेजा , अब ये भी अपने बिजनेस में प्रॉफिट की फसल काटेंगे ।
समाजवादी पार्टी के फिनांसर सहारा ग्रुप के सुब्रतराय , ममता बनर्जी की पार्टी के फिनांसर शारदा ग्रुप के बारे में आपको पता ही है । केरल में कम्युनिस्ट पार्टी के फिनांसर सोने की स्मगलिंग में शामिल है ।
दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे देश के लोकतंत्र की यही परंपरा रही है 😥😥😥😥 इसी व्यवस्था से राजनीतिक पार्टियों को फंड मिलता है । अम्बानी अडानी मोदी बीजेपी को कोसने से कुछ नही होगा , पूरी राजनीतिक वित्तीय व्यवस्था ही ऐसी बनी हुई है ।
इससे नुकसान यही है कि देश की अधिकांश पूंजी मात्र कुछ व्यापारियों के हाथ मे इकट्ठा हो जाती है , गरीब जनता और गरीब होती जाती है । देश की नीतियां गरीब मजदूर किसान के हित में नही बल्कि फण्ड देने वाले आका व्यापारी के हित में बनती है । अमीर उद्योगपति और ज्यादा अमीर होता चला जाता है , देश मे आर्थिक असमानता की खाई बढ़ती जाती है।
इसका एक हल यह है कि चुनाव के समय प्रचार का पूरा खर्च सरकार खुद उठाये (स्टेट फंडिंग) जिससे नेताओ को उद्योगपतियों से पैसे न लेने पड़े । लेकिन इसकी भी हानियां हैं ।
और भी कई समाधान हो सकते हैं , जिसे आपलोग कमेंट में बताएं ।
DrAshok Kumar Tiwari 🙏
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