एक अयोध्या बाहर है जहां भगवान श्री राम की जन्म भूमि है और एक अयोध्या नगरी हमारा आपका यह शरीर भी है जिसमें आत्मा के अंदर परमात्मा भी विद्यमान है। बाहर की अयोध्या तो प्रतीक मात्र है अंदर की अयोध्या का –
अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या |
तस्यां हिरण्ययः कोषः स्वर्गो ज्योतिषावृतः।। [अथर्ववेद 10/02/31 ]
अष्टचक्रा नवद्वारा -अर्थात अष्ट चक्रों और नव द्वारों से निर्मित
देवानां पूरयोध्या-देवाताओं की पुर (नगरी ) अयोध्या
अर्थात – हमारा यह मानव शरीर भी अयोध्या नाम की एक नगरी है।

तस्यां हिरण्ययः कोषः -अर्थात इसी शरीर के अंदर एक हिरण्यमय कोष है, आनंदमय कोष है जो स्वर्गो ज्योतिषावृतः -अर्थात स्वर्ग के समान सुंदर है और प्रकाश से, ज्योति से आच्छादित है, आवृत है, ढका हुआ है जिसके अंदर अंतरात्मा रूप से परम प्रकाशमान परमात्मा स्थित है, विद्यमान है l
हमारे शरीर के अंदर वह कौन सा प्रकाश है, कौन सी ज्योति है जिससे ईश्वर का स्वरूप आच्छादित है, ढका हुआ है? और जब वह हट जाता है तो हमें स्वयं के अंदर ही उस परमात्मा का साक्षात्कार हो जाता है, दर्शन हो जाता है।