कहाँ गए सुभाष

जीवन अपना दांव लगाकर
दुश्मन सारे खूब छकाकर
कहां गया वो, कहां गया वो
जीवन-संगी सब बिसराकर?
तेरा सुभाष, मेरा सुभाष
मैं तुमको आजादी दूंगा
लेकिन उसका मोल भी लूंगा
खूं बदले आजादी दूंगा
बोलो सब तैयार हो क्या?
 
गरजा सुभाष, बरसा सुभाष
वो था सुभाष, अपना सुभाष
नेता सुभाष, बाबू सुभाष
तेरा सुभाष, मेरा सुभाष
अपना सुभाष, अपना सुभाष। 
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वे कहां गए, वे कहां रहे, ये धूमिल अभी कहानी है, 
हमने तो उसकी नयी कथा, आज़ाद फ़ौज से जानी है।
आखिर कहाँ गए नेताजी सुभाष चंद्र बोस : 
यह संभव है कि 1945 मेँ नेताजी ने विमान दुर्घटना और अपनी मौत की खबर स्वयं फैलाई हो ताकि अंग्रेजो को चकमा दिया जा सके । विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद नेताजी रूस जाना चाहते थे । यह बात उन्होंने अपने करीबियों को बताई थी और जापानियों से अपने मंचूरिया जाने का प्रबंध करने को कहा था । संभवतः नेताजी उस विमान में बैठे ही नहीं जिसकी दुर्घटना की बात कही जाती है , और ऐसी कोई विमान दुर्घटना हुई ही नहीं । नेताजी की मृत्यु पर बने सभी सरकारी जांच आयोगों ने सही तरह से जांच किये बगैर वही निष्कर्ष दे दिया जो सरकार चाहती थी । सरकारी ढोल बजाने वाले इन जांच आयोगों ने देश की जनता से विश्वासघात किया ।
संभवतः अपनी मौत की खबर फैला कर ताईपेह से नेताजी मंचूरिया गए । अभी मंचूरिया चीन का प्रान्त है मगर उन दिनों यह रूस का अंग था । नेताजी को भरोसा था कि रूस की साम्यवादी   सरकार उनको साम्राज्यवादी उपनिवेशवादी ब्रिटिश सरकार से लड़ने के लिए सहायता देगी । कुछ लोग मानते हैं कि मंचूरिया पहुचकर नेताजी मास्को गए वहां स्टालिन ने विश्वासघात किया और  नेहरू के कहने पर नेताजी को गिरफ्तार कर साइबेरिया की जेल में रखा । 
यह भी कहा जाता है कि 1952 में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन रूस में भारत के राजदूत थे । उनको किसी रूसी अखिकारी ने बताया कि आपके नेताजी हमारी जेल में है । नेताजी को किसी अन्य नाम से जेल में रखा गया था । राधाकृष्णन को इस बात पर भरोसा नहीं हुआ उन्होंने स्वयं नेताजी को देखने की इक्षा व्यक्त की । राधाकृष्णन साइबेरिया गए । वहां उन्होंने दूर से नेताजी को देखा । डॉ राधाकृष्णन ने रूसी अधिकारियो से बात कर उनके प्रथक सेल में रखने और दो सहायक  तथा अन्य सुविधाये दिए जाने की व्यवस्था की । मास्को आकर डॉ राधाकृष्णन ने नेताजी की रिहाई हेतु नेहरूजी से बात की । नेहरूजी ने डॉ राधाकृष्णन को चुप रहने को कहा और उनको  भारत बुला कर उपराष्ट्रपति ( बाद में राष्ट्रपति) बनवा दिया,  ऐसा कुछ लोग मानते हैं ।
यह भी कहा जाता है कि लालबहादुर शास्री जब  विदेश मंत्री और बाद में प्रधान मंत्री बने तब गोपनीय फाइलों द्वारा उनको नेताजी के रूस में होने का पता चला । 1968 में ताशकंद रूस में लालबहादुर शास्री नेताजी की रिहाई कराने का प्रयास कर रहे थे तभी उनकी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गयी और नेहरू की बेटी प्रधानमंत्री बन गयी । इसके बदले KGB को भारत में कार्य करने की अनुमति और रूस को अयस्क निकलने की अनुमति और सोवियत विचारधारा के प्रचार तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को फंडिंग की अनुमति आदि मिली ।  माना जाता है कि शास्री जी की मौत का  सुभाष चंद्र बोस की रिहाई से गहरा सम्बन्ध है ।
अगर नेताजी भारत आ जाते तो उन्हें छुप कर रहने की जरूरत न पड़ती , पूरा देश उनका साथ देता और द्वितीय विश्वयुद्ध के अपराधियों को पकड़ कर इंग्लैंड के सुपुर्द करने की संधि किसी काम न आती । इसलिए उनके फैज़ाबाद के गुमनामी बाबा बन कर रहने वाली बात सही हो सकती है या नही , इस पर भी कोई ठोस सरकारी इन्वेस्टिगेशन नही हुआ ।
मेरे गुरु डॉ एम् पी चौरसिया अनेक वर्षों तक रूस में रहे , 1958 में जब वे मास्को पावर इंस्टिट्यूट में कार्यरत थे तब उन्हें एक रूसी इलेक्ट्रिकल इंजीनियर ने बताया कि वह साइबेरिया ट्रांसमिशन लाइन में कार्यरत था । उसने डॉ चौरसिया को बताया कि वहां कोई भारतीय रहता है जिसे एक कोठी , घोड़े तथा नौकर मिले हुए है । उस भारतीय को साइबेरिया के उस गाँव से बाहर जाने की अनुमति नहीं है । इसकी निगरानी वहां की पुलिस करती है । डॉ चौरसिया का मानना था कि वह भारतीय सुभाष चंद्र बोस ही है । यह डॉ चौरसिया ने मुझे 1984 में बताया था । 
सत्य जो भी हो हर देशवासी को पूरा अधिकार है नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में जानने का और उन ग़द्दारों के बारे में भी जानने का जिनकी वजह से नेताजी आजादी के बाद भी अपने देश नहीं आ सके ।

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