क्रांतिकारी मर्दन सिंह बुंदेला
22 जुलाई : आज इनकी पुण्यतिथि है
ललितपुर रियासत के महाराज मर्दन सिंह बुंदेला ने अंग्रेजों की दासता स्वीकार नही की । वे अपनी जन्मभूमि की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजो से संघर्ष करते रहे । 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने झांसी की रानी , तात्याटोपे व नाना साहब का साथ दिया था । परमवीर मर्दन सिंह ने अंग्रेजों से युद्ध करने हेतु स्वराज सेना बनाई । उन्होंने चंदेरी ललितपुर सागर दमोह बीना विदिशा क्षेत्र को अंग्रेजो से मुक्त करा लिया था। किंतु झांसी की हार होने के बाद सेंट्रल इंडिया फ़ोर्स के कमांडर ह्यूरोज के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना से हुए बानपुर तालबेहट के युद्ध मे उनकी स्वराज सेना अंग्रेजी सेना से हार गई ।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम की विफलता होने पर वे जंगलों में चले गए । जंगलों में छिप कर वे अंग्रेजो के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध करते रहे । उनके इस युद्ध ने अंग्रेजों का चैन छीन लिया था । इधर अंग्रेजी सेना जंगलों को घेरे हुए थी।
उनको पकड़ने के लिए अंग्रेजों ने धूर्त नीति अपनाई। उनके मित्र दतिया के राजा ने संदेश भिजवाया कि वे आत्मसमर्पण कर दे तो अंगरेज सरकार उनको माफ कर देगी और उनको परिवार व बची सेना सहित सम्मानजनक रूप से तालबेहट के किले में रहने दिया जाएगा ।
भूख प्यास से बेहाल जंगलों में भटकते बचे खुचे चंद बुंदेला वीरो की दुरदशा देख कर उन्होंने संधि के लिए स्वीकृति भेज दी। दतिया के राजा की मध्यस्थता में शाहगढ़ के अंग्रेज कलेक्टर के सामने उन्होंने उपस्थिति दी। किंतु उनके साथ छल हुआ , उन्हें विद्रोही करार देकर गिरफ्तार कर लिया गया और हथकड़ी बेड़ी लगा लाहौर भेज कर नौबतराय की हवेली में कैदी की तरह रखा गया ।
1872 में उनका स्वास्थ्य खराब होने के कारण उनको लाहौर से रिहा कर दिया गया । फिर वे वृंदावन चले गए । शेष जीवन उन्होंने कृष्ण भक्ति करते हुए वृन्दावन में बिताया । 22 जुलाई 1879 को बुंदेलखंड के महायोद्धा की आत्मा भगवान कृष्ण के चरणों मे विलीन हो गयी।
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