क्रांतिकारी वीर योद्धा पंडित हलधर बाजपेई
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हलधर बाजपेई चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह के साथी व हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के सक्रिय सदस्य थे |
कानपुर देहरादून षड्यंत्र केस के संदर्भ में 12 अगस्त 1932 की रात कानपुर में पुलिस ने शहर में लगभग 30 – 32 घरों में एक साथ छापा मारा उसमें से परमट , कुरसवां और कछियाना मोहाल प्रमुख थे | कानपुर इलेक्ट्रिसिटी दफ्तर मे काम करने वाला युवक हलधर फूलबाग के सामने कुरसवां की सकरी गली में बड़ी तेजी से घुसा और अपने मकान में ऊपर के कमरे में पहुंचकर पिस्तौल छोटे-मोटे घातक औजार व क्रांतिकारी साहित्य को इकट्ठा करके हटाने की योजना बना ही रहा था की पुलिस पार्टी मकान में दाखिल हुई | पुलिस पार्टी को जीने का दरवाजा खुला मिला तो वह धड़धड़ाते हुए हुए ऊपर चढ़ने लगी | हलधर बाजपेई छत पर अपने कमरे में सामान इकट्ठा कर ही रहे थे कि उन्होंने सीढ़ियों पर पुलिस पार्टी के आमद की आहट से सशंकित हो उठे थे और जीने से छत पर आने वाला दरवाजा को तुरन्त बंद किया और पिस्तौल व गोलियां लेकर ऊपर चढ़ गए पुलिस ने दरवाजा तोड़ा तो हलधर बाजपेई पिस्तौल ताने दरवाजे पर ताक लगाए वीरासन मुद्रा में बैठे दिखे जरा सा भी दरवाजा खुलता तो हलधर बाजपेई तुरंत पिस्तौल दाग देते और दरवाजा बंद हो जाता | पुलिस की भी बंदूके गरज उठती वहां निशाना साधने को ताब कहां थी ? रात भर हलधर बाजपेई जी और पुलिस दोनों तरफ से गोलियां चलती है छत वाले कमरे की एक दीवार का एक भाग और दरवाजे के ऊपर अगल-बगल की दीवाले गोली चलने से छलनी हो गई | इस बीच पुलिस ने आंगन का दरवाजा भी खोल डाला और आंगन से भी गोलियां चलाने लगी पुलिस की टुकड़ी से घर के आस-पास गोलियों के चलने से वातावरण गूंज उठा | उधर हलधर की पत्नी भी मौका देख अपने पति के कमरे में दाखिल होकर मोर्चे पर आ डर्टी वह पिस्तौल भर भरकर हलधर को देती जाती और हलधर दोनों तरफ ताक लगाए रहते जैसे ही किसी को झांकते देखते या फिर सिर देखते तो फायर ठोक देते | रात के सन्नाटे मे हलधर और पुलिस वालों की आवाज भी रह रहकर सुनाई देती ? कोई छत पर मत आना ,सब लोग घरों के अंदर रहे ” सवेरा होते होते पुलिस टीम बढ़ती चली गई | पुलिस वाले कहीं से हलधर बाजपेई के पिता मुरलीधर बाजपेई जी को पकड़ लाए और पुलिस का दरोगा असगर अली मुरलीधर जी को आगे करके आंगन में निकल आया और हलघर बाजपेई पर गोलियां चलाने लगा | लेकिन हां जरा सा मौका मिला तो हलधर ने ऐसा निशाना साधा की गोली सीधे असगर अली के पेट में जा लगी और वह पेट पकड़कर वही लेट गया | सुबह हुई पुलिस कप्तान मार्श स्मिथ भी हलधर के पिता मुरलीधर जी की ओट लेकर आंगन में आ गया हलधर ने फिर गोली चलाई जो मार्स स्मिथ के कंधे पर जा लगी | हलधर के पिता ने अपील की कि बेटा- अब बहुत हो चुका तुम्हें अब गिरफ्तार होना ही पड़ेगा | इसके बाद पिता के कहने पर हलधर बाजपेई ने पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया | लेकिन हलधर बाजपेई हंस रहे थे और मार्स स्मिथ भी हलधर की वीरता और साहस को देखकर दंग था | पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 307 के अंतर्गत मुकदमा चलाया जिसमें उन्हें 6 वर्ष की कड़ी कैद की सजा दी गई |
1950 में आसाम में भूकंप पीड़ितों की सहायता करते हुए मुंबई कांग्रेस के जत्थे के साथ गए जहां पर 18 अक्टूबर 1950 को मलवा साफ करने के दौरान अचानक एक दीवार गिरने से भारत माता का यह सपूत हलधर बाजपेई समाज सेवा करते करते शहीद हो गया |
( ✍️ अनूप कुमार शुक्ल
महासचिव कानपुर इतिहास समिति कानपुर)
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