चेतना (consciousness) का उत्पन्न होना विज्ञान के सबसे बड़े अनसुलझे सवालों में से एक है, जिसे “हार्ड प्रॉब्लम ऑफ कॉन्शसनेस” कहा जाता है। वैज्ञानिक अभी तक यह पूरी तरह समझ नहीं पाए कि मस्तिष्क की भौतिक प्रक्रियाएं—न्यूरॉन्स, रसायन, और विद्युत संकेत—कैसे विचारों, भावनाओं, और आत्म-बोध जैसे अनुभवों को जन्म देती हैं। चलिए इसे चरणबद्ध तरीके से समझते हैं:
1. मस्तिष्क की भूमिका:
- न्यूरॉन्स और नेटवर्क: मानव मस्तिष्क में करीब 86 अरब न्यूरॉन्स हैं, जो एक-दूसरे से सिनैप्स के जरिए जुड़े हैं। ये न्यूरॉन्स विद्युत संकेतों और रासायनिक संदेशों (न्यूरोट्रांसमीटर्स जैसे डोपामाइन, सेरोटोनिन) के जरिए संवाद करते हैं।
- क्षेत्रीय कार्य: मस्तिष्क के अलग-अलग हिस्से अलग-अलग काम करते हैं। मसलन, प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स निर्णय लेने और आत्म-चिंतन से जुड़ा है, जबकि ऑक्सिपिटल लोब दृष्टि से।
- वैज्ञानिक मानते हैं कि चेतना इन न्यूरॉन्स के जटिल नेटवर्क की एक उभरती हुई संपत्ति (emergent property) है—यानी यह अलग-अलग हिस्सों के आपसी तालमेल से पैदा होती है।
2. चेतना के स्तर:
- जागरूकता: बुनियादी चेतना—like जानवरों में भूख, खतरे का अहसास—शायद मस्तिष्क के पुराने हिस्सों (जैसे ब्रेनस्टेम और लिम्बिक सिस्टम) से आती है।
- आत्म-चेतना: इंसानों में अपने बारे में सोचने की क्षमता (self-awareness) प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स और मिरर न्यूरॉन्स से जुड़ी हो सकती है। यह हमें जानवरों से अलग करती है।
- न्यूरोसाइंटिस्ट्स जैसे एंटोनियो दमासियो कहते हैं कि चेतना तब पैदा होती है जब मस्तिष्क अपने शरीर और पर्यावरण के बीच संबंध को “मॉडल” करता है।
3. प्रमुख सिद्धांत:
वैज्ञानिकों ने चेतना की उत्पत्ति को समझाने के लिए कई थ्योरी दी हैं:
- ग्लोबल वर्कस्पेस थ्योरी (GWT):
- बर्नार्ड बार्स और स्टैनिस्लास देहाने के अनुसार, चेतना तब होती है जब मस्तिष्क के अलग-अलग हिस्से एक “केंद्रीय मंच” (global workspace) पर सूचनाओं को साझा करते हैं। यह थोड़ा टीवी ब्रॉडकास्ट जैसा है—जो जानकारी “लाइव” होती है, वही हमें महसूस होती है।
- इंटीग्रेटेड इंफॉर्मेशन थ्योरी (IIT):
- जूलियो टोनोनी का कहना है कि चेतना सूचनाओं के एकीकरण (integration) से पैदा होती है। जितना ज्यादा एक सिस्टम जटिल और एकीकृत होगा, उतनी ज्यादा चेतना होगी। इसे गणितीय रूप से “फाई” (Φ) से मापने की कोशिश की जाती है।
- क्वांटम थ्योरी ऑफ कॉन्शसनेस:
- रोजर पेनरोज़ और स्टुअर्ट हैमरॉफ का सुझाव है कि चेतना मस्तिष्क के माइक्रोट्यूब्यूल्स में क्वांटम प्रक्रियाओं से उत्पन्न हो सकती है। यह विवादास्पद है, क्योंकि क्वांटम प्रभाव को मस्तिष्क जैसे गर्म, गीले वातावरण में साबित करना मुश्किल है।
4. कैसे शुरू होती है?
- भौतिक प्रक्रिया: जब न्यूरॉन्स एक खास पैटर्न में सक्रिय होते हैं, तो वह अनुभव बन जाता है। मसलन, आंख से प्रकाश सिग्नल ऑप्टिक नर्व के जरिए मस्तिष्क तक जाता है, और आपको रंग दिखता है। लेकिन “दिखने” का अनुभव कैसे पैदा होता है, यह अब भी रहस्य है जिसका उत्तर विज्ञान के पास अभी नही है ।
- उभरती संपत्ति: जैसे पानी के अणु मिलकर तरलता बनाते हैं—जो अणुओं में अलग से नहीं होती—वैसे ही न्यूरॉन्स का जटिल तालमेल चेतना पैदा करता है। लेकिन यह “कैसे” होता है, यह विज्ञान में स्पष्ट नहीं।
- विकासवादी नजरिया: चेतना शायद जीवित रहने के लिए विकसित हुई। जानवरों में यह खतरे से बचने के लिए थी, और इंसानों में यह जटिल सामाजिक संबंधों और भविष्य की योजना बनाने के लिए बढ़ी।
5. सीमाएं और रहस्य:
- क्वालिया का सवाल: “लाल रंग को देखने का अनुभव” या “बारिश की खुशबू” जैसी субъектив (subjective) भावनाएं कैसे पैदा होती हैं, यह समझाना मुश्किल है। इसे “क्वालिया” कहते हैं।
- मशीनों में चेतना: अगर हम AI में न्यूरॉन्स की नकल करें, तो क्या वह चेतन हो सकती है? अभी कोई जवाब नहीं।
- वैज्ञानिक डेविड चाल्मर्स कहते हैं कि चेतना को समझने के लिए शायद हमें विज्ञान की मौजूदा समझ से बाहर जाना पड़े ।
चेतना मस्तिष्क के न्यूरॉन्स के जटिल नेटवर्क और सूचना के एकीकरण से उत्पन्न होती है, लेकिन इसका सटीक “कैसे” अभी अनसुलझा है। यह शायद एक उभरती हुई संपत्ति है, जो भौतिक प्रक्रियाओं से पैदा होती है, पर इसका अनुभवात्मक पहलू (जैसे खुशी महसूस करना) विज्ञान के लिए अब भी रहस्यमय है। कुछ इसे क्वांटम स्तर तक ले जाते हैं, पर वह भी सिद्ध नहीं हुआ।

(Image courtesy linkdn and ezequiel tizeira )