15 नवंबर 2020
आज भगवान बिरसा मुंडा की जयंती है, बिरसा मुंडा झारखंड के रहने वाले एक आदिवासी समाज के युवक थे, जिन्होंने सिर्फ़ 25 साल की उम्र में देश के लिए अंग्रेज़ों से लड़ते हुए अपनी जान दे दी लेकिन आज़ादी के बाद लिखे शब्दों के कूटरचित इतिहास में बिरसा मुंडा के बारे में एक भी अध्याय नहीं है।
बिरसा मुंडा आदिवासी युवक थे, जिन्हें उस समय इंग्लिश मीडियम के स्कूल में शिक्षा के लिए भेजा था उनके परिवार ने। बिरसा का पूरा परिवार ईसाई धर्म क़ुबूल कर चुका था और मुंडा समुदाय के ज़्यादातर लोग भी ईसाई बन चुके थे।
लेकिन बिरसा ने स्कूल में देखा कि मिशनरी स्कूल वाले आदिवासियों को ईसाई तो बनाना चाहते हैं लेकिन उनके साथ बहुत बुरा बर्ताव करते हैं, तो उन्होंने वो स्कूल छोड़ दिया। उन्होंने हिन्दू धर्म का गहन अध्ययन किया । बिरसा ने कभी ईसाई धर्म नहीं कबूला और ईसाई बन चुके आदिवासियों को वापस हिंदू बनवाया। उन्होंने आदिवासी समाज मे व्याप्त भूत प्रेत डायन अंधविश्वास का विरोध किया और लोगो को जागृत किया ।
उसी समय चाईबासा जहाँ वो रहते थे, बहुत बड़ा अकाल पड़ा, लेकिन अंग्रेज़ों ने लगान वसूलना बंद नहीं किया तो बिरसा ने अपने साथियों को संगठित करके अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया। अनेक स्थानों पर उनके संगठन का ब्रिटिश सेना से युद्ध हुआ । तांगा नदी के युद्ध मे उनको विजय प्राप्त हुई । लेकिन तीर कमान वाला उनका संगठन गोली बंदूक़ तोप वाले अंग्रेज़ों से हार गया। उन्हें गिरफ्तार कर रांची जेल भेज दिया गया जहाँ सिर्फ़ 25 साल की उम्र में जेल में ज़हर दिए जाने से सन 1900 में उनकी मृत्यु हो गई।
जननायक क्रांतिकारी भगवान बिरसा मुंडा को शत शत नमन
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