विष्णोर्नु कं॑ वीर्य॑णि॒ प्र वो॑चं॒ यः पार्थिवनी विम॒मे रजां॑सि। यो अस्क॑भय॒दुत्तिरं स॒धस्थं॑ विचक्र्मा॒णस्त्रे॒धोरु॑गा॒यः
विष्णोर्नु कं वीर्यणि प्र वोचं यः पार्थिवनि विम्मे रजांशी। यो अस्कभायदुत्तरं सधस्थं विचक्रमानस्त्रेधोरुगायः
विशोर नु कां वीर्यानि प्रा वोकां यां पार्थिवनि विममे राजंसी | यो अस्कभयद उत्तरम साधस्थां विक्रमांस त्रेधोरुगय: || (ऋग्वेद विष्णुसूक्त 1.1.154.1 )
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उक्त सूक्त से पता चलता है कि ऋग्वेद काल मे विष्णु भगवान देवता के रूप में पूजे जाते थे ।
जबकि तथाकथित इतिहासकारों के अनुसार विष्णु गुप्तकाल (300 ईसवीं )के भगवान हैं । इन इतिहासकारों के अनुसार सनातन धर्म नाम की कोई चीज नही होती हैं बल्कि वैष्णव धर्म , शैव धर्म , शाक्त धर्म आदि होते हैं ।
तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में मेगस्थनीज ने मथुरा को मेथोरा नाम से संबोधित करके लिखा है कि यहां हर घर मे भगवान कृष्ण की पूजा होती है ।
दक्षिण भारत मे भी संगम काल मे (लगभग 300 ई पू ) हम्पी कर्नाटक में कृष्ण भगवान की मूर्ति प्राप्त हुई है ।
ईसा पूर्व करीब 150 वर्ष पूर्व का विदिशा म.प्र. के निकट यह हेलियोडोरस स्तंभ दरअसल गरूड़ ध्वज है, जो उस समय के विष्णु मंदिर के सामने था। एक ग्रीक राजदूत हेलियोडोरस ने वैष्णव धर्म को स्वीकार कर यह स्तंभ लगवाया था, इसीलिए इसे हेलियोडोरस स्तंभ ( Heliodorus Pillar ) कहा जाने लगा। स्तंभ के चबूतरे पर खम्बे का इतिहास लिखा है, जिस पर वर्णन है इस खम्बे को खांब बाबा भी कहते हैं ।
यदु- नन्द नन्दन देवकी- वसुदेव नन्दन वन्दनम् ।
मृदु चपल नयननम् चंचलम् मनमोहनम् अभिनन्दनम् ।।
योगेश्वरम् सर्वेश्वरम् राधेरमण ब्रजभूषणम् ।
हे! माधवम् मधुसूदनम् जय जयति जय नारायणम् ।।
आप सभी को जन्माष्टमी की शुभकामनाएं
चित्र – बैक्ट्रिया (ताजिकिस्तान उज्बेकिस्तान) के ग्रीक राजा Agathocles Dikaios द्वारा जारी किया गया भगवान श्रीकृष्ण का सिक्का 180 BCE