नमन कर रहा हूँ उनको जिनका तन-मन भारत माँ को अर्पित है.
भारत माँ अपने बेटों की कुर्बानी पर गर्वित है.
जिन लोगो का लहू बह गया जलिया वाले बाग में,
उनके चरणों में शब्दों का श्रद्धा सुमन समर्पित है.
जालियाँवाला बाग हत्याकांड भारत के पंजाब प्रान्त के अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर के निकट जलियाँवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 (बैसाखी के दिन) हुआ था। रौलेट एक्ट और किचलू और डॉ॰ सत्यपाल की गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी !! रॉलेट ऐक्ट मार्च 1919 में भारत की ब्रिटनी सरकार द्वारा भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के उद्देश्य से निर्मित कानून था। यह कानून “सर सिडनी रौलेट” की अध्यक्षता वाली समिति की शिफारिशों के आधार पर बनाया गया था। इसके अनुसार ब्रिटनी सरकार को यह अधिकार प्राप्त हो गया था कि वह किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाए और बिना दंड दिए उसे जेल में बंद कर सकती थी। इस क़ानून के तहत अपराधी को उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने वाले का नाम जानने का अधिकार भी समाप्त कर दिया गया था l इस कानून के विरोध में देशव्यापी हड़तालें, जूलूस और प्रदर्शन होने लगे। गाँधीजी ने व्यापक हड़ताल का आह्वान किया। शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था, फिर भी इसमें सैंकड़ों लोग ऐसे भी थे, जो बैसाखी के मौके पर परिवार के साथ मेला देखने और शहर घूमने आए थे और सभा की खबर सुन कर वहां जा पहुंचे थे। जब नेता बाग में पड़ी रोड़ियों के ढेर पर खड़े हो कर भाषण दे रहे थे, तभी ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर 90 ब्रिटिश सैनिकों को लेकर वहां पहुँच गया। उन सब के हाथों में भरी हुई राइफलें थीं। नेताओं ने सैनिकों को देखा, तो उन्होंने वहां मौजूद लोगों से शांत बैठे रहने के लिए कहा।
सैनिकों ने बाग को घेर कर बिना कोई चेतावनी दिए निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलानी शुरु कर दीं। 10 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाई गईं। जलियांवाला बाग उस समय मकानों के पीछे पड़ा एक खाली मैदान था। वहां तक जाने या बाहर निकलने के लिए केवल एक संकरा रास्ता था और चारों ओर मकान थे। भागने का कोई रास्ता नहीं था। कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में मौजूद एकमात्र कुएं में कूद गए, पर देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से पट गया।!
मुख्यालय वापस पहुँच कर ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को टेलीग्राम किया कि उस पर भारतीयों की एक फ़ौज ने हमला किया था जिससे बचने के लिए उसको गोलियाँ चलानी पड़ी !!
एक अनुमान के मुताबिक़ जलियांवाला बाग़ हत्याकांड में कम से कम 1300 लोगों की जानें गयी थी जबकि जलियावाला बाग़ में लगी पट्टिका पर मात्र 120 लोगों की मरने की सूचना दी गयी है !!
गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने इस हत्याकाण्ड के विरोध-स्वरूप अपनी नाइटहुड को वापस कर दिया ! पंजाब तब तक मुख्य भारत से कुछ अलग चला करता था परंतु इस घटना से पंजाब पूरी तरह से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सम्मिलित हो गया। इसके फलस्वरूप गांधी ने 1920 में असहयोग आंदोलन प्रारंभ कियाथा !! भगतसिंह जलियावाला बाग़ की वो मिट्टी को (जिस पर निर्दोष भारतीयों का खून गिरा था) एक छोटी सी शीशी में भरकर लाये थे ! और हर वक़्त वो उस शीशी को अपने साथ ही रखते थे !!
जब जलियांवाला बाग में यह हत्याकांड हो रहा था, उस समय उधमसिंह वहीं मौजूद थे और उन्हें भी गोली लगी थी। उन्होंने तय किया कि वह इसका बदला लेंगे। 13 मार्च 1940 को उन्होंने लंदन के कैक्सटन हॉल में इस घटना के समय ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर माइकल डायर को गोली चला के मार डाला ! ऊधमसिंह को 31 जुलाई 1940 को फाँसी पर चढ़ा दिया गया। गांधी जी और जवाहरलाल नेहरू ने ऊधमसिंह द्वारा की गई इस हत्या की कड़े शब्दों में निंदा की थी !!
हर दमन चक्र की तिमिर निशा में
अविरल जलता चिराग हूं ,
क्रांति क्षेत्र, शोणित सिंचित ,
मैं जलियांवाला बाग हूं ।
अश्रुपूर्ण 103 वर्ष 13 april 1919