त्रिताप

त्रिताप

वेदान्त व पुराणों में त्रितापों का वर्णन इस प्रकार मिलता है —

“आध्यात्मिकं तु यत् तापं शरीरे मनसि स्थितम्।
आधिभौतिकमित्याहुर्दुःखं स्वजनसम्भवम्॥
दैवात् सम्भवितं दुःखं तृतीयं तापमुच्यते॥”
— (श्रीमद्भागवत, स्कंध 3, अध्याय 6)

भावार्थ:
शरीर और मन में उत्पन्न दुःख आध्यात्मिक ताप कहलाता है । स्वजन, जीव-जंतु, मनुष्य आदि से उत्पन्न कष्ट आधिभौतिक ताप है। दैविक शक्तियों (प्रकृति, ग्रह आदि) से उत्पन्न कष्ट आधिदैविक ताप कहलाता है।

वेदान्त और भारतीय दर्शन में “ताप” शब्द का प्रयोग केवल शारीरिक ताप या तापमान के लिए नहीं होता, बल्कि यह कष्ट या पीड़ा (Suffering / Pain) के अर्थ में होता है। इस दृष्टिकोण से “ताप” मुख्य रूप से तीन प्रकार के माने गए हैं, जिन्हें त्रिताप (त्रयः तापाः) कहा जाता है:

🔥 त्रिताप (तीन प्रकार के ताप / कष्ट)

  1. आधिभौतिक ताप (Ādhibhautika Tāpa)
    यह बाहरी भौतिक कारणों से उत्पन्न कष्ट है।
    उदाहरण: जीव-जंतु, शत्रु, चोरी, दुर्घटना, प्राकृतिक आपदाएं आदि द्वारा होने वाला कष्ट।
  2. आधिदैविक ताप (Ādhidaivika Tāpa)
    यह देवताओं या प्राकृतिक शक्तियों से उत्पन्न होने वाला कष्ट है।
    उदाहरण: भूकंप, बाढ़, तूफान, बिजली गिरना, ग्रह-नक्षत्रों का अशुभ प्रभाव आदि।
  3. आध्यात्मिक ताप (Ādhyātmika Tāpa)
    यह स्वयं शरीर, मन या आत्मा के भीतर उत्पन्न होने वाला कष्ट है।
    उदाहरण: रोग, मानसिक तनाव, शोक, मोह, क्रोध, दुख आदि।

🕉️ त्रितापों से मुक्ति कैसे प्राप्त होती है ?

वेदान्त, योग, भक्ति व गीता आदि शास्त्रों के अनुसार त्रितापों से मुक्ति के निम्न उपाय बताए गए हैं:

  1. ज्ञान (Self-Knowledge / आत्मबोध)
    उपनिषद व गीता कहती हैं कि जब मनुष्य आत्मा और परमात्मा के वास्तविक स्वरूप को जान लेता है, तो उसे त्रिताप स्पर्श नहीं करते।
    “न त्वेवाहं जातु नासं…” (भगवद्गीता 2.12)
    “विद्या विनयसम्पन्ने…” (गीता 5.18)
  2. भक्ति (Devotion)
    ईश्वर की भक्ति, नाम-स्मरण और शरणागति से त्रितापों का क्षय होता है।
    “सङ्कर्षणस्य भगवान्—नामरूपे गुणक्रियाः।
    तैः सञ्जातविमोहस्तु त्रितापान्न प्रपद्यते॥” — भागवत 3.6.35
    भावार्थ: भगवान के नाम, रूप, गुण और लीलाओं में मन लगाने से त्रिताप नहीं सताते।
  3. योग और ध्यान
    ध्यान और योग साधना से मन शांत होता है और आन्तरिक तथा बाह्य तापों से मुक्ति मिलती है।
    पतंजलि योगसूत्र:
    “योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” — योगशास्त्र का उद्देश्य ही मानसिक तापों से मुक्ति है।
  4. सदाचार और धर्माचरण
    सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, संयम आदि आचरणों से ताप कम होते हैं और मन निर्मल होता है। “त्रिताप दुःखों से मुक्ति केवल तब संभव है जब हम आत्मा की पहचान करें, ईश्वर की भक्ति करें और योग तथा ध्यान से अपने मन को शुद्ध करें।”

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