———बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष चर्चा ——-
नीलकंठ धारणी
Nīlakaṇṭha Dhāraṇī
नीलकंठ धारणी (नीलकंठ धारा) एक प्राचीन बौद्ध प्रार्थना है, जो चीन जापान तिब्बत कोरिया ताइवान आदि के बौद्ध मठों में प्रतिदिन गाई जाती है । यह प्रार्थना भगवान बुद्ध के पूर्वजीवन बोधिसत्व भगवान अवलोकितेश्वर रूप में विद्यमान नीलकंठ भगवान की स्तुति है ।
इस प्रार्थना के कई संस्करण उपलब्ध है , जिनमे देश और भाषा के कारण थोड़ा सा अंतर है । सातवी शताब्दी में यह मूल प्रार्थना संस्कृत और पाली भाषा में भारत से चीन पहुची । वहां पर अनुवादित हुई । तभी से यह पूर्वी एशियाई देशों के महायान बौद्ध धर्म की प्रमुख प्रार्थना बनी ।
नीलकंठ धारणी एक प्रसिद्ध व प्रभावशाली बौद्ध मंत्र माना जाता है । इसमें गौतम बुद्ध को भगवान अवलोकितेश्वर कहा गया है , जिनके हजार हाथ हैं । इस प्रार्थना में भगवान अवलोकितेश्वर को हरिहर अर्थात विष्णु और शिव का रूप बताया गया है । उन्हें शंकर, वाराह और नरसिंह कहा गया है। भगवान अवलोकितेश्वर असीम करुणा के सागर है और अपने भक्तों का दुख दूर करने पृथ्वी पर कभी भी किसी भी रूप में आ सकते हैं । बौद्ध धर्म में कमल पर बैठे अवलोकितेश्वर बोधित्सव भगवान के 4 हाथ माने जाते हैं- जिनमे वे शंख चक्र कमल व गदा लिए हैं, वे बाघ की खाल पहने हैं , एक काला नाग उनके गले से लिपटा रहता है ।
बौद्ध ग्रंथ कर्णव्युष सूत्र ( काराणव्य सूत्र 4थी शताब्दी ) के अनुसार अवलोकितेश्वर एक सर्वव्यापी ब्रह्मांडीय विराट पुरुष है जिसके शरीर से विभिन्न देवता उत्पन्न होते हैं :
“आदित्य और चंद्र उनकी आंखों से आए, महेश्वर उनके माथे से आए, ब्रह्मा उनके कंधों से आए, नारायण उनके दिल से आए, देवी सरस्वती उनके सिर से आए, वायुदेव उनके मुंह से आए, धरती उनके पैरों से आए, और वरुण उनके पेट से आए। ”
(ऐसा ही ऋग्वेद में कहा गया है – “चन्द्रमा मनसो जाताश्चक्षो सूर्यो अजायत। श्रोत्रांवायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत…..।”)
बुद्ध अवलोकितेश्वर को चीन जापान में सहस्त्रबाहु, ईश्वर , महेश्वर, हरि या नीलकंठ भी कहा जाता है ।
बौद्ध प्रार्थना नीलकंठ धारणी का संस्कृत पाठ निम्नलिखित है —
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नमो रत्न त्रय | नमो आर्यवलोकितेश्वराय बोधिसत्वाय महासत्वाय महाकारुणिकया |
ॐ सर्व-भयेṣत्रण-कार्या तस्य नमस्कित्वा इमं आर्यवलोकितेश्वर-स्तवनं नीलकठ-नाम |
हृदयं वर्तयिश्यमी सर्व-अर्थ-साधनां शुभ: |अजेयं सर्व-भूतानाम भव-मार्ग-विषोधकम ||
ताड्याथी | ऊँ अपलोका लोकातीक्रांता एही हरे महाबोधिसत्व सर्प-सर्प | स्मारा स्मारा मामा हृदयं | कुरु-कुरु कर्म | धुरु-धुरु विजयते महाविजयते | धारा-धारा धरणी-राजा | काला-काला मामा विमला-मर्ट्टे रे | एह-एही कृष्ण-सर्प-ओपवता | विश्व-विष्णम प्राणाया | हुलु-हुलु मल्ला | हुलु-हुलु हरे | सारा-सारा सिरी-सिरी सुरु-सुरु | बोधिया-बोधिया बोधय-बोधय मैत्रिया नीलकंठ | दर्शनेन प्रहलादय मनम स्वाहा | सिद्धाय स्वाहा | महासिद्धाय स्वाहा | सिद्ध-योगेश्वरैया स्वाहा | नीलकठय स्वाहा | वराह-मुखय स्वाहा | नरसिंह-मुखय स्वाहा | पद्म-हस्त्य स्वाहा | चक्र-हस्त्य स्वाहा | पद्म-हस्तया स्वाहा | नीलकंठ-व्याघ्रय स्वाहा | महाबली-शंकराय स्वाहा || नमो रत्न-त्रय्या | नमो आर्यवलोकितेश्वराय स्वाहा ||
ओं सिद्धांतु मंत्र-पदानी स्वाहा ||
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बौद्ध प्रार्थना नीलकंठ धारणी से स्पष्ट होता है कि बुद्ध ही विष्णु हैं , शंकर हैं , नीलकंठ हैं, योगेश्वर हैं , आपने ही प्रहलाद को दर्शन दिए । बुद्ध ही नरसिंह हैं , वराह हैं ।
जापान के बौद्ध धर्म मे देवी कन्नन Kannon, the Goddess of Mercy को अवलोकितेश्वर बुद्ध की पत्नी बताया जाता है । देवी कन्नन के भी हजार हाथ है और प्रत्येक हाथ मे एक एक हथियार है , जिससे वे दुष्टों का संहार करती हैं ।
विष्णु पुराण, भागवत पुराण, गरुड़ पुराण, अग्नि पुराण, नारद पुराण, हरिवंश पुराण, लिंग पुराण और पद्म पुराण में विष्णु के 9 वें अवतार के रूप में बुद्ध का नाम आता है।
डॉ सर्वपल्ली राधकृष्णन के विचार-
“बुद्ध का लक्ष्य उपनिषदों के आदर्शवाद को उसके सर्वोत्तम रूप में आत्मसात करना था और इसे मानवता की दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अनुकूल बनाना था। ऐतिहासिक रूप से, बौद्ध धर्म का अर्थ था, लोगों के बीच उपनिषदों की शिक्षाओं का प्रसार। और इसमें उन्होंने जो हासिल किया वह आज भी कायम है। ऐसा लोकतांत्रिक आरोहण हिंदू इतिहास की एक विशिष्ट विशेषता है।”
अंग्रेज आये और हमे बता गए कि बौद्ध धर्म अलग है और हिन्दू धर्म अलग है , और हमने आंख बंद करके मान लिया !!!
ॐ मणि पदमें हुम्
ॐ नमो बुद्धाय