“प्रथम और अंतिम मुक्ति
” (The First and Last Freedom) जे. कृष्णमूर्ति की एक प्रसिद्ध पुस्तक है, जिसमें उन्होंने मनुष्य के अस्तित्व, चेतना, और मुक्ति के विषय पर गहन विचार प्रस्तुत किए हैं। इस पुस्तक में वे पारंपरिक धार्मिक प्रथाओं और सिद्धांतों से हटकर, आत्म-अन्वेषण और सत्य की खोज पर जोर देते हैं। उनका दृष्टिकोण यह है कि वास्तविक स्वतंत्रता बाहरी अनुकरण और परंपराओं से नहीं, बल्कि भीतर की गहरी समझ और अंतर्दृष्टि से मिलती है।
पुस्तक के खास बिंदु –
1. स्वयं की समझ:
कृष्णमूर्ति का मानना है कि जीवन की समस्याओं और दुखों की जड़ हमारी सीमित सोच और आत्म-केन्द्रित दृष्टिकोण में है। उन्होंने कहा कि आत्म-जागरूकता और स्वयं का निरीक्षण करना ही सच्ची मुक्ति का मार्ग है।
बाहरी गुरुओं, ग्रंथों या प्रथाओं पर निर्भर रहने के बजाय, उन्होंने आत्म-अन्वेषण की शक्ति पर जोर दिया। स्वयं को जानने से ही हम मानसिक शांति और स्वतंत्रता प्राप्त कर सकते हैं।
2. मुक्ति का अर्थ:
कृष्णमूर्ति के अनुसार, मुक्ति का अर्थ है मन की पूरी तरह से स्वतंत्रता, जहां विचार बाधाओं और सीमाओं से मुक्त होता है। उन्होंने इसे एक ऐसी स्थिति के रूप में देखा, जहां व्यक्ति अपने पूर्वाग्रहों, पूर्व धारणाओं और अतीत के बोझ से मुक्त हो जाता है।
उन्होंने यह भी कहा कि मुक्ति कोई गंतव्य नहीं है, बल्कि यह एक सतत प्रक्रिया है जो तब होती है जब व्यक्ति हर क्षण को जागरूकता के साथ जीता है।
3. डर और इच्छा:
पुस्तक में कृष्णमूर्ति ने बताया कि डर और इच्छा मानव मन की मूल समस्याएं हैं। ये हमारे दृष्टिकोण और व्यवहार को नियंत्रित करते हैं, जिससे हम अपनी वास्तविकता से अलग हो जाते हैं।
डर से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने सुझाव दिया कि व्यक्ति को अपने विचारों और प्रतिक्रियाओं का गहन अवलोकन करना चाहिए। जब हम बिना किसी निर्णय के अपने डर को देख पाते हैं, तभी उसका समाधान हो सकता है।
4. संबंधों का महत्व:
कृष्णमूर्ति ने कहा कि हमारे संबंध ही हमारे मन का आईना होते हैं। उन्होंने यह बताया कि अगर हम अपने संबंधों को समझ लें और उनमें पूरी तरह से उपस्थित रहें, तो हम अपने भीतर की जटिलताओं और विरोधाभासों को भी समझ सकते हैं।
उन्होंने संबंधों में प्रेम की भूमिका को भी महत्वपूर्ण बताया, जहां प्रेम का अर्थ किसी प्रकार की आसक्ति या स्वार्थ नहीं, बल्कि पूर्ण स्वतंत्रता है।
5. ध्यान और मन की स्थिति:
ध्यान के बारे में उन्होंने कहा कि यह किसी पद्धति या तकनीक का अभ्यास नहीं है। बल्कि, ध्यान का अर्थ है हर क्षण में पूरी तरह से जागरूक रहना और बिना किसी प्रयास के, बिना किसी सीमा के अपनी चेतना का निरीक्षण करना।
ध्यान में व्यक्ति खुद को और अपनी दुनिया को बिना किसी विभाजन के देखता है, जिससे एक अद्वितीय समझ और शांति की स्थिति उत्पन्न होती है।
“प्रथम और अंतिम मुक्ति” में कृष्णमूर्ति ने यह संदेश दिया कि सच्ची मुक्ति बाहरी चीजों पर निर्भर नहीं करती, बल्कि यह आंतरिक रूप से आत्म-जागरूकता और स्वतंत्रता पर आधारित है। यह पुस्तक पाठकों को अपने मन के पैटर्न को समझने और एक नई दृष्टि से जीवन को देखने के लिए प्रेरित करती है।