प्रारब्ध कर्म

 प्रारब्ध कर्म का अर्थ है वे कर्म जो हमारे पिछले जन्मों के कारण उत्पन्न हुए हैं और वर्तमान जीवन में हमें फलस्वरूप अनुभव करने पड़ते हैं। प्रारब्ध कर्म हमारे जीवन में सुख-दुख, अच्छे-बुरे अनुभवों के रूप में प्रकट होते हैं और ये हमारे नियंत्रण में नहीं होते। इन्हें नष्ट करना सरल नहीं होता, लेकिन कुछ तरीकों से इनके प्रभाव को कम किया जा सकता है या उनसे मुक्ति पाई जा सकती है।

प्रारब्ध कर्म के प्रभाव को कम करने के कुछ उपाय निम्नलिखित हैं:

1. सद्गुरु की कृपा: एक सच्चे गुरु का मार्गदर्शन और उनका आशीर्वाद प्रारब्ध कर्म के प्रभाव को कम कर सकता है। गुरु की कृपा से मनुष्य आत्मज्ञान प्राप्त कर सकता है और प्रारब्ध से मुक्त हो सकता है।

2. भक्ति और प्रार्थना: ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति और प्रार्थना से मन शुद्ध होता है और हमारे भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इससे कर्म के बंधन धीरे-धीरे कम हो जाते हैं।

3. साधना और ध्यान: नियमित साधना, ध्यान और योग अभ्यास से मन और आत्मा शुद्ध होती है, जिससे प्रारब्ध के असर को कम किया जा सकता है। ध्यान से व्यक्ति अपने भीतर की चेतना को जाग्रत करता है और कर्म के परिणामों से ऊपर उठता है।

4. संतोष और समर्पण: प्रारब्ध के प्रति संतोष और ईश्वर में पूर्ण समर्पण रखने से व्यक्ति मानसिक शांति प्राप्त कर सकता है। इससे प्रारब्ध के असर का बोझ कम महसूस होता है और वह जीवन के कठिन समय का सामना सहजता से कर पाता है।

5. सेवा और परोपकार: दूसरों की सेवा करने और परोपकार में संलग्न रहने से हमारे नकारात्मक कर्मों का प्रभाव कम होता है। सेवा और परोपकार के कार्यों से मनुष्य के कर्मों में सुधार आता है, जिससे प्रारब्ध के बंधन धीरे-धीरे ढीले पड़ते हैं।

6. स्वधर्म का पालन: अपने धर्म, कर्तव्यों, और नैतिकता का पालन करते हुए जीवन जीने से भी प्रारब्ध के प्रभाव में कमी आती है। अपने कर्मों का सही तरीके से पालन करना प्रारब्ध को निष्प्रभावी करने का एक तरीका है।

हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि प्रारब्ध से मुक्ति का मार्ग समय ले सकता है और इसमें धैर्य तथा ईश्वर के प्रति  आत्मसमर्पण की आवश्यकता होती है।

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