भारतवर्ष

“भारतवर्ष” 
भारत में भा का अर्थ ज्ञान रूपी प्रकाश और रत का अर्थ जुटा हुआ, खोजी या लीन। इस तरह भारत का अर्थ होता है जो लोग इस भूमि पर ज्ञान की खोज में लगे रहते हैं। दूसरा अर्थ है जो भरत के वंशज हैं। इसमें वर्ष का अर्थ है एक वर्षा ऋतु से दूसरी वर्षा ऋतु के बीच का समय या साल। भिन्न भिन्न प्रकृति या वर्षा क्षेत्र को वर्ष कहा जाता है। चूंकि भारत में सभी तरह की प्रकृति, 4 ऋतुएं और वर्षा क्षेत्र हैं तो एकमात्र यही देश है जिसके नाम के आगे वर्ष लगाया जाता है। अन्य कई देशों में 2 ऋतुएं ही होती हैं तो वर्ष का कोई अर्थ नहीं।
 
उल्लेखनीय है कि भरत शब्द (भारत नहीं) का अर्थ भारण पोषण करने वाला। प्रजा को पालने वाला होता है।
हिमाद्रेर्दक्षिण वर्षं भरतस्य न्यवेदयत्।
तस्मात्तु भारतं वर्ष तस्य नाम्ना विदुर्बुधा:।
– लिंग पुराण (47-21-24).

अर्थात : अर्थात इंद्रिय रूपी सांपों पर विजय पाकर ऋषभ ने हिमालय के दक्षिण में जो राज्य भरत को दिया तो इस देश का नाम तब से भारतवर्ष पड़ गया।….इसी बात को प्रकारान्तर से वायु और ब्रह्मांड पुराण में भी कहा गया है। भरत का क्षेत्र होने के कारण यह भारत कहा गया।
ततश्च भारतं वर्षमेतल्लोकेषु गीयते
भरताय यत: पित्रा दत्तं प्रातिष्ठता वनम्
अर्थात-पिता ऋषभदेव ने वन जाते समय अपना राज्य भरतजी को दे दिया था. तब से यह इस लोक में भारतवर्ष के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
(विष्णु पुराण द्वितीय अंश अध्याय प्रथम श्लोक ३२)
उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः ।।
अर्थात-समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में जो देश है, उसे भारत कहते हैं और इस भूभाग में रहने वाले लोग इस देश की संतान भारती हैं.
(विष्णु पुराण द्वितीय खंड तृतीय अध्याय प्रथम श्लोक)
गायन्ति देवा: किल गीतकानि, धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे।
स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते भवन्ति भूय: पुरूषा सुरत्वात्
अर्थात- देवता निरंतर यही गान करते हैं कि जिन्होंने स्वर्ग और अपवर्ग के बीच में बसे भारत में जन्म लिया है, वो पुरुष हम देवताओं से भी ज्यादा धन्य हैं.
(विष्णु पुराण द्वितीय खंड तृतीय अध्याय २४ वां श्लोक)
शकुन्तलायां दुष्यन्ताद् भरतश्चापि जज्ञिवान
यस्य लोकेषु नाम्नेदं प्रथितं भारतं कुलम्
अर्थात-परम तपस्वी महर्षि कण्व के आश्रम में दुष्यंत के द्वारा शकुंतला के गर्भ से भरत का जन्म हुआ. उन्हीं महात्मा भरत के नाम से यह भरतवंश भारत नाम से संसार में प्रसिद्ध हुआ, 
(महाभारत आदिपर्व द्वितीय अध्याय श्लोक ९६)
सोभिचिन्तयाथ ऋषभो भरतं पुत्रवत्सल:
ज्ञानवैराग्यमाश्रित्य जित्वेन्द्रिय महोरगान्।
हिमाद्रेर्दक्षिण वर्षं भरतस्य न्यवेदयत्।
तस्मात्तु भारतं वर्ष तस्य नाम्ना विदुर्बुधा:।
अर्थात-अपने इन्द्रिय रूपी सांपों पर विजय पाकर ऋषभ ने हिमालय के दक्षिण में जो राज्य भरत को दिया तो इस देश का नाम तब से भारतवर्ष पड़ा. 
(लिंगपुराण)
भारते तु स्त्रियः पुंसो नानावर्णाः प्रकीर्तिताः।
नानादेवार्चने युक्ता नानाकर्माणि कुर्वते॥
अर्थात-भारत के स्त्री और पुरुष अनेक वर्ण के बताए गए हैं. ये विविध प्रकार के देवताओं की आराधना में लगे रहते हैं और अनेक कर्मों को करते हैं.
(कूर्मपुराण पूर्वभाग अध्याय ४७ श्लोक २१वां)
अत्र ते वर्णयिष्यामि वर्षम् भारत भारतम्। प्रियं इन्द्रस्य देवस्य मनो: वैवस्वतस्य च।
पृथोश्च राजन् वैन्यस्य तथेक्ष्वाको: महात्मन:। ययाते: अम्बरीषस्य मान्धातु: नहुषस्य च।
तथैव मुचुकुन्दस्य शिबे: औशीनरस्य च। ऋषभस्य तथैलस्य नृगस्य नृपतेस्तथा।
अन्येषां च महाराज क्षत्रियाणां बलीयसाम्। सर्वेषामेव राजेन्द्र प्रियं भारत भारतम्॥
अर्थात -(हे महाराज धृतराष्ट्र,) अब मैं आपको बताऊंगा कि यह भारत देश सभी राजाओं को बहुत ही प्रिय रहा है। इन्द्र इस देश को अत्यंत प्रेम करते थे तो विवस्वान् के पुत्र मनु भी इस देश से अत्यंत स्नेह करते थे। ययाति हों या अम्बरीष, मन्धाता रहे हो या नहुष, मुचुकुन्द, शिबि, ऋषभ या महाराज नृग रहे हों, इन सभी राजाओं को तथा इनके अलावा जितने भी महान और बलवान राजा इस देश में हुए, उन सबको भारत देश बहुत प्रिय रहा है।
(महाभारत)
नारद ने कहा : हे अर्जुन, मैं तुम्हें बर्बरी तीर्थ की महिमा का वर्णन करूंगा , कि कैसे राजकुमारी शतशंगा, जो कुमारिका के नाम से प्रसिद्ध थी, बर्बरिका बन गई । उनके नाम पर ही इस खंड को कौमारिका-खंड कहा जाता है । उन्हीं के द्वारा पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के गाँवों का निर्माण हुआ। उन्हीं के द्वारा इस भरत खण्ड को सुव्यवस्थित एवं स्थापित किया गया।
धनंजय (अर्जुन) ने कहा :
हे ऋषि, यह अत्यंत चमत्कारी कथा मुझे अवश्य सुननी चाहिए। मुझे कुमारी की कथा विस्तारपूर्वक सुनाओ। कर्मण (कर्म) और जाति (जन्म और पितृत्व) के माध्यम से यह ब्रह्मांड कैसे विकसित हुआ ? भारत का उपमहाद्वीप कैसा (सुव्यवस्थित) था? यह सुनने की मेरी सदैव इच्छा रही है।
(भुवनकोश ‘स्कंदपुराण’)
येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठ: श्रेष्‍ठगुण आसीद् यनेदं वर्षं भारतमिति व्यपदिशन्ति।
– भागवत पुराण (स्कन्द 5, अध्याय 4)

वैदिक काल में भरत नाम से एक प्रसिद्ध राजा हुआ करते थी जो सरस्वती और सिंधु नदी के क्षेत्र में राज करते थे । उनके वंशजो का का इतिहास में प्रसिद्ध दस राजाओं से युद्ध हुआ था। जिसे दासराज्ञ का युद्ध कहा जाता है। विजयी होने पर उनका राज्य क्षेत्र पूर्व और दक्षिण तक विस्तृत हो गया , जिसे भारतवर्ष कहा जाने लगा । 
संकल्प का श्लोक
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य, अद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीये पर्राधे श्रीश्वेतवाराहकल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, भूर्लोके, जम्बूद्वीपे, भारतर्वषे, भरतखण्डे, आर्यावर्त्तैकदेशान्तर्गते…..
हाथीगुम्फा शिलालेख में उल्लेख है कि: 
“भारत” के पूर्वी तट पर उदयगिरि गुफाओं में रानी गुम्फा या “रानी की गुफा” से जूते और चिटोन के साथ एक यवन / इंडो-ग्रीक योद्धा की संभावित मूर्ति (प्राप्त हुई है), यह वही स्थान है जहां हाथीगुम्फा शिलालेख प्राप्त हुआ था। दूसरी या पहली शताब्दी ईसा पूर्व। 
वेदों, पुराणों, अभिलेखों आदि में सहज उपलब्ध प्रमाणों में से ये प्रमाण मात्र 1% हैं। पर इतने ही ब्रिटिश शासन से मुक्ति प्राप्त करने के उपरांत भी  ‘इंडिया दैट इज भारत’ जैसा धूर्त प्रयास अप्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश शासन की अधीनता का ही प्रतीक था जिसे भारत सरकार को वर्तमान परिस्थितियों के प्रकाश में तत्काल प्रभाव से संशोधित किया है। 
बाकी हम सरस्वती विद्या मंदिर के विद्यार्थियों के लिए तो हमारी मातृभूमि का नाम सदैव से ‘भारतवर्ष’ ही रहा है। अपनी पुरानी पोस्ट्स पर भी दृष्टि डालता हूँ तो पाता हूँ कि कभी अचेतन मन से भी राष्ट्र के लिए भारत के अतिरिक्त इंडिया जैसे किसी अवांछित नाम का प्रयोग नहीं किया है।
जयतु भारत। 

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