महावीर स्वामी का दर्शन

महावीर स्वामी का दर्शन: अन्य जैन तीर्थंकरों से भिन्नता

महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तथा अंतिम तीर्थंकर थे। यद्यपि जैन धर्म की मूल शिक्षाएँ आदि तीर्थंकरों द्वारा दी गई थीं, परंतु महावीर स्वामी ने उन सिद्धांतों को एक नई दिशा और स्पष्टता प्रदान की। उन्होंने न केवल जैन दर्शन को व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत किया, बल्कि व्यवहार में लागू करने योग्य मार्ग भी बताया। उनके दर्शन की कुछ विशेषताएँ थीं, जो उन्हें अन्य तीर्थंकरों से अलग बनाती हैं।

  1. अहिंसा का सूक्ष्मतम रूप में प्रतिपादन
    जैन धर्म में अहिंसा का अत्यधिक महत्व है, परंतु महावीर स्वामी ने इसे चरम स्तर तक विस्तारित किया। उन्होंने कहा कि हिंसा न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि वाणी और मन से भी होती है। जीव मात्र के प्रति करुणा और संवेदना का भाव उनके दर्शन का मूल था। उन्होंने यह भी कहा कि सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव की भी रक्षा की जानी चाहिए।
  2. त्रिरत्नों की व्याख्या और महत्त्व
    महावीर स्वामी ने जैन साधना के मूल स्तंभ – सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र – की स्पष्ट व्याख्या की। उन्होंने बताया कि इन त्रिरत्नों के बिना मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं है। यह दृष्टिकोण जीवन के आध्यात्मिक सुधार और आत्मशुद्धि के लिए अत्यंत आवश्यक बताया गया।
  3. कठोर तप और आत्म-अनुशासन
    महावीर स्वामी ने तप और त्याग को विशेष महत्व दिया। वे स्वयं अत्यंत कठोर तपस्या करते थे और उन्होंने आत्म-अनुशासन को सर्वोच्च स्थान दिया। उनका जीवन संयम और साधना का प्रतीक बन गया। उनका यह दृष्टिकोण साधकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
  4. अनेकांतवाद और स्यादवाद का प्रतिपादन
    महावीर स्वामी ने अनेकांतवाद और स्यादवाद जैसे दार्शनिक सिद्धांतों को विस्तारपूर्वक समझाया। उन्होंने कहा कि सत्य को एक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि अनेक दृष्टिकोणों से देखा जाना चाहिए। यह विचारधारा सहिष्णुता, संवाद और विचारों की विविधता को प्रोत्साहित करती है।
  5. भिक्षु-संघ की स्थापना और संगठन
    महावीर स्वामी ने जैन धर्म को एक संगठित रूप देने के लिए भिक्षु-संघ की स्थापना की। इससे धर्म का प्रचार-प्रसार व्यवस्थित रूप में हुआ। महिलाओं को भी संघ में स्थान देकर उन्होंने समानता का संदेश दिया।

महावीर स्वामी का दर्शन केवल आध्यात्मिक या दार्शनिक नहीं था, बल्कि वह एक व्यावहारिक जीवनशैली का मार्गदर्शन भी करता था। उन्होंने पूर्ववर्ती तीर्थंकरों के सिद्धांतों को एक नए प्रकाश में प्रस्तुत किया और जैन धर्म को समाज में एक सशक्त रूप प्रदान किया। उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं और मानवीय मूल्यों को स्थायित्व प्रदान करते हैं।

यदीये चैतन्ये मुकुर इव भावाश्चिदचितः
समं भान्ति ध्रौव्य व्यय-जनि-लसन्तोऽन्तरहिताः।
जगत्साक्षी मार्ग-प्रकटन परो भानुरिव यो
महावीर-स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु में ll

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