मुंशी प्रेमचंद

जिहाद , नमक का दरोगा, पंच परमेश्वर, पूस की रात, ईदगाह आदि हिंदी साहित्य की सर्वश्रेष्ठ कालजयी कहानियां है – जिनके लेखक थे मुंशी प्रेमचंद । 
आज की युवा पीढ़ी को ये कहानियां अवश्य पढ़नी चाहिए जो आज भी सामयिक हैं ।
सन् 1929 में अंग्रेजी सरकार ने प्रेमचंद की लोकप्रियता के चलते उन्हें ‘रायसाहब’ की उपाधि देने का निश्चय किया।
तत्कालीन गवर्नर सर हेली ने प्रेमचंद को खबर भिजवाई कि सरकार उन्हें रायसाहब की उपाधि से नवाजना चाहती है। उन दिनों रायसाहब को सरकार की तरफ से घोड़ा गाड़ी कोचवान बंगला अर्दली और मासिक रुपये दिए जाते थे ।  प्रेमचंद ने इस संदेश को पाकर कोई खास प्रसन्नता व्यक्त नहीं की, हालांकि उनकी पत्नी बड़ी खुश हुईं और उन्होंने पूछा, उपाधि के साथ कुछ और भी देंगे या नहीं? प्रेमचंद बोले, ‘हां!
कुछ और भी देंगे।’ पत्नी का इशारा धनराशि आदि से था। प्रेमचंद का उत्तर सुनकर पत्नी ने कहा, तो फिर सोच क्या रहे हैं? आप फौरन गवर्नर साहब को हां कहलवा दीजिए।
प्रेमचंद पत्नी का विरोध करते हुए बोले, मैं यह उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता।
कारण यह है कि अभी मैंने जितना लिखा है, वह जनता के लिए लिखा है, किंतु रायसाहब बनने के बाद मुझे सरकार के लिए लिखना पड़ेगा। यह गुलामी मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता। जिसके बाद प्रेमचंद ने गवर्नर को उत्तर भेजते हुए लिखा, “मैं जनता की रायसाहबी ले सकता हूं, किंतु सरकार की नहीं।” प्रेमचंद के उत्तर से गवर्नर हेली आश्चर्य में पड़ गए।
(आज तो सरकारी सुख सुविधा लेने के लिए लेखकों पत्रकारों की लंबी फेहरिस्त है )
प्रेमचंद दलित नही थे मगर उन्होंने दलितों के लिए , उनकी समस्याओं पर जितना ज्यादा लिखा उतना आज तक कोई नही लिख सका । 
प्रेमचन्द के कहानी साहित्य में राष्ट्रीयता का स्वर सबसे ज्यादा मुखर है। उस युग के स्वतंत्रता आंदोलन ने ही प्रेमचन्द जैसे संवेदनशील लेखकों में राष्ट्रीयता जैसा प्रबल भाव डाला था।
 प्रेमचन्द गाँधी जी से बहुत प्रभावित हुए थे और राष्ट्रीयता के क्षेत्र में उन्हें अपना आदर्श मानकर चले थे। गाँधी जी के आवहान पर सरकारी नौकरी छोङने वाले प्रेमचंद जी की कहानियोँ में समाज के सभी वर्गों का चित्रण बहुत ही सहज और स्वाभाविक ढंग से देखने को मिलता है।माँ, अनमन, दालान (मानसरोवर-१) कुत्सा, डामुल का कैदी (मानसरोवर-२) माता का हृदय, धिक्कार, लैला (मानसरोवर-३) सती (मानसरोवर-५) जेल, पत्नी से पति, शराब की दुकान जलूस, होली का उपहार कफन, समर यात्रा सुहाग की साड़ी (मानसरोवर-७) तथा आहुति इत्यादि वे कहानियाँ हैं जिनमें राष्ट्रीयता के विष्य को प्रमुखता से डाला गया है।इन कहानियों ने प्रेमचन्द ने एक इतिहासकार की भांति राष्ट्रीय आंदोलन के चित्र खींचे हैं।  उन्होंने विश्वास जैसी कहानी के माध्यम से गाँधी जी के आदर्शों को लोगों के सामने प्रस्तुत किया।
प्रेमचन्द के मानस में भारतीय संस्कार अपेक्षाकृत अधिक प्रबल थे। विदेशी सभ्यता, संस्कृति आचरण एवं शिक्षा के प्रति उनकी आस्था दुर्बल थी।प्रेमचंद ने साहित्य को सच्चाई के धरातल पर उतारा। उन्होंने जीवन और कालखंडों को पन्ने पर उतारा। वे सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, जमींदारी, कर्जखोरी, गरीबी, उपनिवेशवाद पर आजीवन लिखते रहे। ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि वे आम भारतीय के रचनाकार थे। उनकी रचनाओं में वे नायक हुए, जिसे भारतीय समाज अछूत और घृणित समझता था। 
व्यक्तिगत जीवन में भी मुंशी प्रेमचंद जी सरल एवं सादगीपूर्ण जीवन यापन करते थे, दिखावटी तामझाम से दूर रहते थे। एक बार किसी ने प्रेमचंद जी से पूछा कि – “आप कैसे कागज और कैसे पैन से लिखते हैं ?”
मुंशी जी, सुनकर पहले तो जोरदार ठहाका लगाये फिर बोले – “ऐसे कागज पर जनाब, जिसपर पहले से कुछ न लिखा हो यानि कोरा हो और ऐसे पैन से , जिसका निब न टूटा हो।‘
थोङा गम्भीर होते हुए बोले – “भाई जान ! ये सब चोंचले हम जैसे कलम के मजदूरों के लिये नही है।“
मुशी प्रेमचंद जी के लिये कहा जाता है कि वो जिस निब से लिखते थे, बीच बीच में उसी से दाँत भी खोद लेते थे। जिस कारण कई बार उनके होंठ स्याही से रंगे दिखाई देते थे।
प्रेमचंद हिन्दी सिनेमा के सबसे अधिक लोकप्रिय साहित्यकारों में से एक हैं। सत्यजित राय ने उनकी दो कहानियों पर यादगार फ़िल्में बनाईं। 1977 में ‘शतरंज के खिलाड़ी’ और 1981 में ‘सद्गति’। के. सुब्रमण्यम ने 1938 में ‘सेवासदन’ उपन्यास पर फ़िल्म बनाई जिसमें सुब्बालक्ष्मी ने मुख्य भूमिका निभाई थी। 1977 में मृणाल सेन ने प्रेमचंद की कहानी ‘कफ़न’ पर आधारित ‘ओका ऊरी कथा’ नाम से एक तेलुगू फ़िल्म बनाई जिसको सर्वश्रेष्ठ तेलुगू फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। 1963 में ‘गोदान’ और 1966 में ‘गबन’ उपन्यास पर लोकप्रिय फ़िल्में बनीं। 1980 में उनके उपन्यास पर बना टीवी धारावाहिक ‘निर्मला’ भी बहुत लोकप्रिय हुआ था।
महान लेखक प्रेमचंद के जन्मदिवस पर उनको सादर  नमन 
🙏🙏🙏
<head><script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-4690939901087945"
     crossorigin="anonymous"></script> </head> 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Review Your Cart
0
Add Coupon Code
Subtotal

 
Scroll to Top