मोनोपोल) बदल देगा दुनिया !!!
विज्ञान के सामान्य
ज्ञान से हम यह जानते हैं कि किसी भी चुम्बक में दो ध्रुव होते हैं : उत्तर ध्रुव
और दक्षिण ध्रुव .
यदि हम किसी भी चुम्बक को तोड़ें तो दो ध्रुव उत्पन्न हो जायेंगे , और तोड़ने पर
दो और ध्रुव उत्पन्न हो जायेंगे …… इसी प्रकार प्रक्रम आगे चलता रहेगा . अगर
हम चुम्बक को परमाणु के साइज़ का भी तोड़ दें तब भी उसमे दो ध्रुव होंगे . अर्थात सामान्यतः
अकेला चुम्बकीय उत्तर ध्रुव या अकेला चुम्बकीय दक्षिण ध्रुव प्राप्त करना असंभव है .
विद्युत् और
चुम्बकत्व एक दूसरे में मिले हुए है और एक दूसरे में परिवर्तनशील है . सन 1820 में वैज्ञानिक ओर्स्टेड ने
अपने प्रायोगिक निष्कर्ष से बताया की यदि किसी तार से विद्युत् धारा प्रवाहित हो
तो उसके चारों और चुम्बकीय क्षेत्र बन जाता है .
कि यदि किसी क्वाइल पर चुम्बकीय क्षेत्र में समय के साथ परिवर्तन किया जाए तो उसमे
विद्युत धारा उत्पन्न हो जायेगी .
विद्युत् में परिवर्तित कर सकते है . विद्युत्-चुम्बकत्व के मेक्सवेल समीकरणों से
हमको विद्युत् और चुम्बकत्व की सममिति का पता चलता है . विधुत का मूलभूत गुण है
आवेश , जो कि दो प्रकार का होता है – धनात्मक व ऋणात्मक . धनात्मक व ऋणात्मक आवेश
को प्रथक प्रथक किया जा सकता है . फिर चुम्बक के उत्तर और दक्षिण ध्रुवो को प्रथक
प्रथक क्यों नहीं किया जा सकता ? इस प्रश्न का उत्तर देना भौतिक वैज्ञानिकों के
लिए भी कठिन है .
किन्तु एकल चुम्बकीय
ध्रुव भी हो सकता है , इस सिद्धांत को 1931 में जन्म देने वाले वैज्ञानिक थे पॉल
डिराक . डिराक कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में कार्यरत एक अंग्रेज वैज्ञानिक व
गणितज्ञ थे . इनको 1933 में भौतिक विज्ञान का नोबल पुरस्कार मिला था और बाद में अमेरिका की फ्लोरिडा
यूनिवर्सिटी में कार्य करने लगे थे . पॉल डिराक ने क्वांटम यांत्रिकी के क्षेत्र
में अभूतपूर्व कार्य किया . उन्होंने विद्युत् आवेशों की क्वांटीकरण गणनाओं में एक
सूत्र निकाला जिसे डिराक समीकरण कहा जाता है . इस समीकरण के अनुसार कुछ
क्वांटम परिस्थितियों में एकल चुम्बकीय ध्रुव संभव है .
आधुनिक अन्तरिक्ष
वैज्ञानिक एवं खगोल भौतिकशास्त्री मानते है कि महा एकीकृत सिद्धांत (Grand Unified Theory) के अनुसार महाविस्फोट (बिग बैंग) के तुरंत बाद जब ब्रह्माण्ड की आयु एक
सेकंड से भी कम थी तब एकल चुम्बकीय ध्रुव बने थे . अगर एकल चुम्बकीय ध्रुव का
वास्तव में अस्तित्व था तो क्या इनको प्रयोगशाला में बनाया जा सकता है ? डिराक की
गणनाये बताती हैं कि चुम्बकीय आवेश का क्वान्टा विद्युत् आवेश के क्वान्टा से 137/2 गुना होगा और इसका
द्रव्यमान 1000 प्रोटोन या 20 लाख इलेक्ट्रान के बराबर होगा . अतः इनसे बने परमाणु और पदार्थ अति उच्च
घनत्व , शक्ति और भार के होंगे .
अनेक देशों में
प्रयोगशालाओं में एकल चुम्बकीय ध्रुव बनाने के प्रयोग चल रहें हैं . इनमे फ़िनलैंड
की आल्टो यूनिवर्सिटी में डेविड हॉल एवं उनके सहयोगियों ने अपना दावा प्रस्तुत
किया है . प्रयोगशालाओं में एकल चुम्बकीय ध्रुव बनाने के लिए दो तकनीकियों का
उपयोग होता है . पदार्थ को परम शून्य तापमान के निकट रख कर चुम्बकित करना ,
अन्तरिक्ष किरणों या फिर कण त्वरकों का उपयोग कर उच्च आवृत्ति उच्च उर्जा के कणों
का निर्माण कर मोनोपोल प्रथक करना .
ध्रुव बनाने में हम सफल हो जाए तो तकनीकी में इनका क्या उपयोग किया जा सकता है ?
संभव है कि एकल चुम्बकीय ध्रुव हमारी दुनिया बदल दे !
ऐसा अनुमान किया
जाता है कि एकल चुम्बकीय ध्रुव की सहायता से उर्जा दक्ष विद्युत् मोटरें व डीसी ट्रांसफर्मर,
उच्च ताप सुपर कंडक्टर , उच्च घनत्व के अति- प्रबलित फाईबर पदार्थ , उच्च शक्ति की
विद्युत् संग्रहण इकाई, सुपर फ़ास्ट कम्प्यूटर, सिंकोट्रओंन आदि बनाये जा सकते है . इनका उपयोग ब्लेक होल या
डार्क मैटर ढूँढने में भी किया जा सकता है .
सामान्य ताप पर
मोनोपोल सुपर कंडक्टर जैसा बर्ताव करेंगे इसलिए इनसे सुपर कंडक्टर तार , मोटरे ,
ट्रांसफार्मर , केबल आदि बनाये जा सकेंगे जिनमे विद्युत् उर्जा की हानि नहीं होगी
.
मोनोपोल से बनाये गए
इंटीग्रेटेड सर्किट वर्तमान सर्किट से 10 लाख गुना जादा स्पीड से चलेंगे अतः इनसे सुपर
फ़ास्ट कंप्यूटर बनाये जा सकते है . इनको प्रोटोन कंप्यूटर कहा जाएगा .
एकल चुम्बकीय ध्रुवों
की सहायता से मेगावाट क्षमता में विद्युत् उर्जा को लम्बे समय तक स्टोर किया जा
सकेगा .
मोनोपोल एक निश्चित
परिस्थिति में गामा किरणों का उत्सर्जन भी कर सकते है . इनसे उच्च आवृत्ति के रेडिओ
ट्रांसमीटर व रिसीवर भी बनाए जा सकेंगे .
देखना है कि एकल
चुम्बकीय ध्रुव बनाने में कब पूर्ण सफलता मिलती है .
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