यात्रा वृतान्त (Tour Diary) :
प्राचीन यात्रियों के यात्रा वृतांत मुझे हमेशा आकर्षित करते हैं । आज से हजारों साल पहले जब मोटर गाड़ी हवाईजहाज आदि नही थे , तब ये लोग पैदल , बैलगाड़ी , घोड़े या ऊंट से हजारों किलोमीटर की यात्रा कर लेते थे । इनके यात्रा वर्णनों में रोमांच, मानव जीवन का संघर्ष , कठिन परिस्थितियों पर विजय आदि मूल्य हमे प्रेरित करते हैं और जीवन मे सदा आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं । इनके वृत्तांत पढ़ कर ऐसा लगता है जैसे मैं खुद इनके साथ यात्रा कर रहा हूँ ।
प्राचीन काल मे अनेक विदेशी यात्री भारत आये , इससे उस जमाने मे भारत के इतिहास और समाज का पता चलता है । मूल यात्रा संस्मरण पढ़ने से पता चलता है कि इतिहासकारों द्वारा अनेक तथ्यों को हमारे सामने नही लाया गया है । प्राचीन विदेशी पर्यटकों ने भारत का जो वर्णन किया है उससे पता चलता है कि सच मे सोने की चिड़िया था हमारा देश और साथ ही विश्व गुरु था हमारा देश ।
Preiplus of the erythrean sea – प्राचीन रोमन साम्राज्य में एक अज्ञात ग्रीस नाविक था । वह प्रथम शताब्दी में अपनी नाव से लाल सागर पार कर हिन्द महासागर में व्यापार हेतु आया था । वह भारत मे वर्तमान गुजरात , महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश के अनेक शहरों में गया , वर्तमान भरूच, उज्जैन, दक्षिणापथ, कालीकट, गोवा, कल्याण मुम्बई, कोचीन, फुहार, आदि शहरों का वर्णन किया । इस पुस्तक में नर्मदा नदी का भी नाम आता है। अज्ञात नाविक ने कश्मीर का नाम कश्यपमारा (home of kashyap) और राजधानी कश्यपपुर लिखा है। इस पुस्तक से पता चलता है कि उस वक़्त गुजरात मे शक , आंध्र में सातवाहन , दक्षिण में पल्लव चोल चेर तथा गंगा के इलाके में मगध राजाओं का राज्य था । भारत से मसाले , जड़ी बूटी, रत्न पत्थर, रेशमी कपड़े, कॉटन, टिन सीसा तांबा और कांच के समान आदि एक्सपोर्ट होते थे । ये लिखते है ” glass of india as superior to others, because made of pounded crystal”
इस पुस्तक की एक टिप्पणी समझने लायक है – india is the most populous region of the world, as it was the most cultivated, the most active industrially and commercially, the richest in natural resources and production, the most highly organised socially , and the least powerful politically . “
फाह्यान और हेनसांग के यात्रा वर्णन – इतिहास की पुस्तकों ने इन चीनी यात्रियों के संघर्षों और यात्रा वर्णनों के साथ न्याय नही किया । फाह्यान चौथी शताब्दी में भारत आया – वो लिखते है ” प्रजा बहुत साधन सम्पन्न और सुखी है , देश के अधिकांश निवासी न जीवहिंसा करते , न मद्यपान करते हैं ।” उत्तर भारत के अनेक नगरों का वर्णन फाह्यान ने किया , ये श्रीलंका भी गए , वहां से जावा इंडोनेशिया फिर वहां से वापिस चीन । हुएनसांग जो कि 7 वी शताब्दी में भारत आया , उसका विवरण अत्यंत विस्तृत है । दोनो यात्रियों के अनुसार भारत मे सभी पंथ सनातन ( शैव वैष्णव शाक्त आदि ) बौद्ध जैन (श्रमण) आदि समन्वयपूर्वक प्रयेक शहर ग्राम में रहते थे । छिटपुट घटनाओं को छोड़कर इनमें कोई बड़ा विवाद नही हुआ । प्रत्येक राजा सभी पंथों की समान इज्जत करता था । सामान्यतः देश मे अश्पृश्यता कही नहीं थी । न ही किसी जाति या सम्प्रदाय पर अत्याचार होता था । तक्षशिला से गौहाटी तक , श्रीनगर कश्मीर से नासिक तक भारत के अनेक शहरों राजाओं और समाजो का वर्णन हेनसांग ने किया । हेनसांग के समय समरकंद , ताशकंद और कश्मीर बौद्ध बहुल प्रदेश हो चुके थे । हेनसांग दक्षिण भारत में विजयवाड़ा कांचीपुरम भी गया । नालंदा विश्वविद्यालय में उसने 5 साल अध्ययन किया । हेनसांग ने नालंदा विश्वविद्यालय का विस्तृत वर्णन किया है जिससे पता चलता है कि आज के ऑक्सफ़ोर्ड हारवर्ड भी प्राचीन नालंदा से पीछे हैं । हेनसांग के वर्णनों से जो बुद्ध का कालक्रम मिलता है वह वर्तमान मान्य कालक्रम (400-500 BCE) से मैच नही करता वरन 600 साल और पीछे ले जाता है । इस पर इतिहासकारों को शोध करना चाहिए ।
अलबरूनी – सन 1000 के आसपास अरबी- ईरानी उच्चकोटि का विद्वान अलबरूनी , सुल्तान महमूद के बंधक के रूप में, भारत आया था। इसने भारत के अनेक नगरों की यात्रा की और अनेक भारतीय ग्रंथो का अध्ययन भी किया । इसने उस जमाने के भारत का विधितन्त्र , धर्म और दर्शन, समाज , नगर संगठन , धार्मिक नियम, मूर्तिकला, वैज्ञानिक साहित्य , माप कीमिया, भारतीय खगोलशास्त्र, कालानुक्रम, ज्योतिषशास्त्र आदि पर लिखा है। लेकिन अलबरूनी ने कई बाते बिना स्वयं देखे सुनी सुनाई बातों पर आधारित भी लिखी है जिनमें सत्यता नही है। इस समय तक भारत मे जाति प्रथा कठोर हो गयी थी और अस्पृश्यता आ गयी थी । अलबरूनी की अनेक बातें आधुनिक इकोलॉजी और डार्विन के सिद्धांतों के समकक्ष है, जो उसने भारत मे सीखी ।
इब्नबतूता – इसने 14 वी शताब्दी में मोरक्को (अफ्रीका) से मक्का , मक्का से भारत , भारत से श्रीलंका से इंडोनेशिया से चीन फिर वापिस अफ्रीका से स्पेन की 1 लाख 17 हजार किलोमीटर यात्रा 30 सालों में की। इब्नबतूता मेरे फ़ेवरिट ट्रेवलर हैं । इनकी पुस्तक संघर्ष और रोमांच से भरी पड़ी है । जंगली जानवरो, डाकुओं, समुद्री तूफान आदि का रोमांचक वर्णन है। भारत मे कालीकट , दिल्ली और मुल्तान शहरों में इब्नबतूता रहे । इससे उस समय की भारत मे डाक व्यवस्था , उस समय की वीसा व्यवस्था , भारत की सामाजिक व धार्मिक व्यवस्था का पता चलता है ।
मार्कोपोलो – ये इटली का व्यापारी नाविक था 14 वी शताब्दी में गुजरात व केरल आया , भारत से अनेक पुस्तकें ले गया । (जिसका बाद में इटालियन में अनुवाद हुआ) । इनके वर्णन से सेंट थॉमस की मृत्यु के असली कारण का पता चलता है । ये चीन की जेल में भी रहे जहां इन्होंने यह पुस्तक लिखी ।
अंत मे बात करलें अपने देश के घुमक्कड़ राहुल सांस्कृतायन जी की जिन्होंने वोल्गा से गंगा तक की संस्कृति 6000 BCE से 1942 तक के कालखंड की 20 कहानियों में समेट दी ।
आप भी इन प्रेरणादायक रोमांचक यात्रा वृतांतों को स्वयं अवश्य पढ़े ।
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