विज्ञान और ईश्वर :
नमो विज्ञानरूपाय परमानन्दरूपिणे।
कृष्णाय गोपीनाथाय गोविन्दाय नमो नमः ।।
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विज्ञानरूपाय ईश्वर का अर्थ है वह ईश्वर जो विज्ञानस्वरूप हैं, अर्थात जो सम्पूर्ण सृष्टि के नियमों और प्रक्रियाओं का आधार हैं। भारतीय दर्शन में ईश्वर को न केवल सृष्टि का रचयिता माना गया है, बल्कि वह शक्ति भी माना गया है जो प्रत्येक कण, प्रत्येक घटना, और सृष्टि के हर नियम में विद्यमान है।
ईश्वर वह अदृश्य शक्ति है जो संपूर्ण ब्रह्मांड के नियमों को बनाए रखती है और सृष्टि को एक निश्चित क्रम में चलाती है। जैसे गुरुत्वाकर्षण, विद्युत, चुंबकत्व, ऊर्जा संरक्षण, और अन्य सभी प्राकृतिक सिद्धांत एक अदृश्य नियमों के आधार पर चलते हैं, वैसे ही ईश्वर को उन नियमों का स्रोत और संचालनकर्ता माना गया है। हिन्दू दर्शन में पाश्चात्य धर्मों की तरह साइंस और रिलिजन में विरोधाभास नही है , अपितु समस्त विज्ञान को उपवेद एवं वेदांग कहा गया है ।
विज्ञान में हम पदार्थ, ऊर्जा और उनके विभिन्न रूपों का अध्ययन करते हैं, लेकिन इन सभी का प्रयोजन व अंतिम स्रोत क्या है, इसका उत्तर विज्ञान स्वयं नहीं दे सकता। इसी कारण से, भारतीय आध्यात्मिक परंपराएं यह मानती हैं कि यह सभी नियम, सिद्धांत, और शक्तियाँ विज्ञानरूप ईश्वर के अधीन हैं।
अतः, विज्ञानरूपाय ईश्वर का अर्थ यह है कि ईश्वर ने अपनी सत्ता को विज्ञान के रूप में हर स्थान पर, हर कण में स्थापित किया है, जिससे सम्पूर्ण ब्रह्मांड में संतुलन, सामंजस्य और नियमबद्धता बनी रहती है।