विशिष्टाद्वैत दर्शन के अनुसार, निराकार निर्गुण ईश्वर का साकार सगुण रूप में प्रकट होना इस बात पर आधारित है कि ईश्वर स्वभावतः आत्मा और प्रकृति का आधार है और अपनी करुणा के कारण भक्तों की भक्ति और साधना के लिए सगुण रूप में प्रकट होता है। इसका मुख्य सिद्धांत है कि ईश्वर एक है, लेकिन गुण, शक्ति और स्वरूप में विशिष्ट है। ईश्वर अपनी मूल स्थिति में निराकार, निर्गुण और परम चैतन्य है। ईश्वर सदा से निर्गुण और सगुण दोनों ही रूप में विद्यमान है।
विशिष्टाद्वैत के अनुसार, ईश्वर आत्मा और प्रकृति का अधिष्ठान है।
जैसे आत्मा शरीर में अदृश्य रहकर शरीर को नियंत्रित करती है, वैसे ही ईश्वर संसार में अदृश्य रहकर जब चाहे अपने सगुण रूप में प्रकट हो सकता है।
जब ईश्वर भक्तों के प्रेम और भक्ति का उत्तर देते हैं, तो वे सगुण रूप धारण करते हैं।
यह ईश्वर की शरीर-आत्मा के संबंध की दृष्टि से स्वाभाविक प्रक्रिया है।
भक्तों के लिए ईश्वर का सगुण रूप उनकी साधना और मुक्ति के मार्ग को सरल बनाता है।
इसलिए, विशिष्टाद्वैत दर्शन में साकार सगुण ईश्वर को भक्तों के लिए एक कृपा स्वरूप माना गया है, जबकि वह अपनी मूल स्थिति में सदा निराकार और निर्गुण रहता है।
Statue of equality : रामानुजाचार्य , विशिष्टाद्वैत वेदांत के प्रवर्तक संत (1017-1137 AD)