एक और महिला वैज्ञानिक जिसे हमने भुला दिया : विभा चौधरी Bibha Choudhary
परमाणु के नाभिक में एक कण होता है जिसे मेसॉन (meson) कहते है , मेसॉन की परिकल्पना जापानी वैज्ञानिक युकावा ने 1934 में की थी । किंतु युकावा की खोज पूरी तरह से सैद्धान्तिक व गणितीय थी ।
क्या आप जानते है कि प्रायोगिक रूप से मेसॉन (meson) को सर्वप्रथम किसने साबित किया था ? वे थी कोलकाता की महिला वैज्ञानिक बिभा चौधरी !
बिभा चौधरी का जन्म 1913 में हुआ । इन्होने बैथुन कालेज , राजाबाजार साइंस कॉलेज कलकत्ता यूनिवर्सिटी से बीएससी व एमएससी भौतिकी की शिक्षा प्राप्त की । आपने कोलकाता यूनिवर्सिटी के भौतिक विज्ञान के विभागाध्यक्ष डॉ डी एम बोस के निर्देशन में कॉस्मिक किरणों पर अनुसंधान किया और स्वयं कॉस्मिक किरणों को पहचानने का उपकरण बनाया । जिससे आपने परमाण्विक कण मेसॉन के अस्तित्व को साबित किया और उसके द्रव्यमान की गणना भी की । आपका यह अनुसंधान 1941 में 3 शोधपत्रों के द्वारा अमेरिका की नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ । द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण उपकरण में लगने वाली फोटोग्राफी प्लेट , जो यूरोप से आती थी, उसकी सप्लाई नही हो पाई और मेसोन पर आपका आगामी कार्य नही हो सका ।
फिर आपने मैनचेस्टर विश्वविद्यालय से प्रोफेसर Patrick Blackett के निर्देशन में पीएचडी की । आपके द्वारा किये गए अनुसंधान पर Patrick Blackett को 1948 का नोबल पुरस्कार मिला ।
डॉ विभा चौधरी द्वारा किये गए मेसॉन (meson) के प्रयोगों को ब्रिटिश वैज्ञानिक C F Powell ने रिपीट किया और वही परिणाम प्राप्त हुए । इस रिसर्च पर CF Powell को 1950 में नोबल पुरुस्कार मिला ।
जबकि नोबल पुरस्कार की असली हकदार थी बिभा चौधरी ।
भारत आने पर आपने बोस इंस्टिट्यूट कोलकाता में शोध कार्य किया । फिर होमी भाभा के निमंत्रण पर आपने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च जॉइन किया , जहाँ आपने कोलार गोल्ड फील्ड पर कार्य किया ।
कुछ वर्षों बाद आपने साहा इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूक्लियर फिजिक्स कोलकाता में अनुसंधान कार्य किया और मिशिगन विश्वविद्यालय अमेरिका की विजिटिंग प्रोफेसर रही ।
1991 में आपका स्वर्गवास हुआ ।
भारत सरकार द्वारा इस महान महिला वैज्ञानिक को कोई पुरुस्कार या सम्मान नही मिला ।
नासा ने आपको मेसॉन (meson) का असली खोजकर्ता माना और आपके सम्मान में 2019 में एक नए तारे का नाम विभा रखा । यह हम भारतीयों के लिए गर्व की बात है ।