शिवसंकल्प सूक्त यजुर्वेद के शुक्ल यजुर्वेद के अंतर्गत आने वाले माध्यन्दिन संहिता के 34वें अध्याय में प्राप्त होता है।
यह सूक्त मन की शुद्धता, सद्विचार, और सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। इसमें मन को शिव (कल्याणकारी) बनाने की प्रार्थना की गई है, ताकि हमारे संकल्प पवित्र, सत्य और शुभ हों। इसे “शिव संकल्प” अर्थात् “कल्याणकारी विचार” के रूप में जाना जाता है।
🔸 शिवसंकल्प सूक्त – श्लोक एवं अर्थ:
यह सूक्त कुल 6 ऋचाओं (मंत्रों) का संग्रह है, हर मंत्र के अंत में आता है –
“यज्जाग्रतो दूरमुदैति दैवं तदु सुप्तस्य तथैवैति ।
दूरंगमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ॥”
मंत्र 1
मनः सुप्तेषु जागर्ति साक्षी चेता… तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ॥
👉 यह मन, जब शरीर सो रहा होता है, तब भी जाग्रत रहता है। यह साक्षी और चेतक है। यही मन सभी अनुभवों को जानता है। ऐसा मेरा मन शुभ संकल्प वाला हो।
मंत्र 2
येन कर्माण्यपसो मनीषिणो यज्ञे कृण्वन्ति… तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ॥
👉 जिसके द्वारा ज्ञानी पुरुष यज्ञादि शुभ कर्म करते हैं, ऐसा मेरा मन कल्याणकारी संकल्प वाला हो।
मंत्र 3
येन देवा अधि लोकान् तस्थु:… तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ॥
👉 जिस मन से देवताओं ने लोकों को व्यवस्थित किया, ऐसा मेरा मन भी शुभ संकल्प वाला हो।
मंत्र 4
येन विश्वं भुवनं वावृधे… तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ॥
👉 जिस मन से यह संपूर्ण सृष्टि विस्तृत हुई, वह मन मेरे लिए शुभ संकल्प वाला हो।
मंत्र 5
येन कृच्छ्रादुत कृच्छ्रादपि… तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ॥
👉 जिस मन से मनुष्य कठिन से कठिन कार्य भी करता है, ऐसा मेरा मन शिव संकल्प वाला हो।
मंत्र 6
यज्जाग्रतो दूरमुदैति दैवं… तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ॥
👉 जो मन जागते हुए भी दूरस्थ वस्तुओं को देखता है, और सोते हुए भी कार्य करता है, जो समस्त प्रकाशों का प्रकाश है – ऐसा मेरा मन शुभ विचारों वाला हो।
🔸 समग्र भावार्थ:
“शिवसंकल्प सूक्त” का मूल उद्देश्य है –
➡️ मन को पवित्र, स्थिर, और कल्याणकारी संकल्पों में लगाना।
➡️ मनुष्य के संकल्प ही उसके कर्म, जीवन और भविष्य का निर्माण करते हैं।
➡️ इसलिए बार-बार प्रार्थना की गई है – मेरा मन शिव (कल्याणकारी) संकल्प करे।
