श्री गणेश जी सर्वस्वरूप, परात्पर परब्रह्म साक्षात् परमात्मा हैं । गणेश शब्द का अर्थ है जो समस्त जीव-जाति के “ईश” अर्थात् स्वामी हैं । धर्मपरायण भारतीय जन वैदिक एवं पौराणिक मंत्रों द्वारा अनादि काल से इन्हीं अनादि तथा सर्वपूज्य भगवान गणपति की पूजा करते आ रहे हैं । हृदय से उपासना करने वाले भक्तों को आज भी उनके अनुग्रह का प्रसाद मिलता है । अतः उनकी कृपा की प्राप्ति के लिए वेदों, शास्त्रों ने वैदिक उपासना पद्धति का निर्माण किया है जिससे उपासक गणेश की उपासना करके मनोवांछित फल प्राप्त कर सकें । गणेश का अर्थ – ‘गण’ का अर्थ है- वर्ग, समूह, समुदाय । ‘ईश’ का अर्थ है- स्वामी । शिवगणों एवं गण देवों के स्वामी होने से उन्हें “गणेश” कहते हैं । आठ वसु, ग्यारह रूद्र और बारह आदित्य ‘गणदेवता’ कहे गए हैं ।
“गण” शब्द व्याकरण के अंतर्गत भी आता है । अनेक शब्द एक गण में आते हैं । व्याकरण में गण पाठ का अपना एक अलग ही अस्तित्व है । वैसे भी भवादि, अदादि तथा जुहोत्यादि प्रभृतिगण धातु समूह है । “गण” शब्द शूद्र के अनुचर के लिए भी आता है । जैसा कि “रामायण” में कहा गया है- धनाध्यक्ष समो देवः प्राप्तो वृषभध्वजः । उमा सहायो देवेशो गणैश्च बहुभिर्युत: ॥
तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में श्री पार्वतीजी को “श्रद्धा” और शंकरजी को विश्वास का रूप माना है । किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए श्रद्धा और विश्वास दोनों का ही होना आवश्यक है । जब तक श्रद्धा न होगी, तब तक विश्वास नहीं हो सकता तथा विश्वास के अभाव में श्रद्धा भी नहीं ठहर पाती । वैसे ही पार्वती और शिव से श्री गणेश हुए । अतः गणेश सिद्धि और अभीष्ट पूर्ति के प्रतीक हैं । किसी भी कार्य को प्रारम्भ करने के पूर्व विघ्न के निवारणार्थ एवं कार्य सिद्धियार्थ गणेशजी की आराधना आवश्यक है । यही बात योग शास्त्र में भी कही गई है ।
“योग शास्त्र” के आचार्यों का कहना है कि -मेरूदंड के मध्य में जो सुषुम्ना नाड़ी है, वह ब्रह्मारन्ध में प्रवेश करके मस्तिष्क के नाड़ी गुच्छ में मिल जाती है । साधारण दशा में प्राण सम्पूर्ण शरीर में बिखरा होता है, उसके साथ चित्त भी चंचल होता है । योगी क्रिया विशेष से प्राण को सुषुम्ना में खींचकर ज्यों-ज्यों ऊपर चढ़ाता है त्यों-त्यों उसका चित्त शांत होता है । योगी के ज्ञान और शक्ति में भी वृद्धि होती है । सुषुम्ना में नीचे से ऊपर तक नाड़ी कद या नाड़ियों के गुच्छे होते हैं । इन्हें क्रमशः मूलाधार, स्वाधिष्ठान, अनाहत, विशुद्ध और आज्ञा चक्र कहते हैं । इस मूलाधार को- ‘गणेश स्थान’ भी कहा जाता है । कबीर आदि ने जहाँ चक्रों का वर्णन किया है, वहाँ प्रथम स्थान को “गणेश स्थान” भी कहा है ।
मानव मुख गणेश मंदिर (आदि विनायक )
गणेश जी का मुख हाथी का हैं . विश्व में केवल एक मंदिर है जहा भगवान् गणेश की प्रतिमा मानव मुख में स्थापित है . यहाँ गणेश भगवान् की पूजा उनके मूल मुख (हाथी मुख के पूर्व वाले मुख) के रूप में की जाती है .
यह प्राचीन “स्वर्णवल्ली मुक्तीश्वर मंदिर” तमिलनाडु के तिरुवरुर जिले Mayavaram – Tiruvarur Road पर Poonthottam के निकट Koothanur से 2.6 कि मी Thilatharpanapuri थिलान्थरपानपुरी में है .
भगवान गणेश को यहाँ नर-मुख विनायकर कहा जाता है .
स जयति सिन्धुरवदनो देवो यत्पादपङ्कजस्मरणम् ।
वासरमणिरिव तमसां राशीन्नाशयति विघ्नानाम् ॥