संत रविदास

संत रविदास ऐसे महान संतों में थे जिन्होंने कर्म को ही पूजा मानकर ईश्वर को पाने का रास्ता बताया। गुरु रविदास ने काम, क्रोध, लोभ, अहंकार और ईष्र्या को मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु माना है- काम क्रोध माइआ मद मतसर/ इन पंचहु मिलि लूटे/ इन पंचन मेरो मनु जु बिगारिओ। अर्थात ये पांचों शत्रु मनुष्य को भ्रष्ट कर देते हैं। रविदास जी ने अपने जीवन में भी इन पांच शत्रुओं को स्वयं से दूर रखा। संतकवि रविदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान किया. संत कुलभूषण कवि रैदास यानी सं‍त रविदास का जन्म सन् 1398 में काशी (उत्तर प्रदेश, भारत) में हुआ था. रविदास का कहना था कि कर्म के बिना भक्ति अधूरी है. एक समय की बात है – एक पर्व के अवसर पर पड़ोस के लोग गंगा-स्नान के लिए जा रहे थे. रैदास के शिष्यों में से एक ने उनसे भी चलने का आग्रह किया तो उन्होंने अपने शिष्‍य से कहा- गंगा-स्नान के लिए मैं अवश्य चलता किन्तु एक व्यक्ति को जूते बनाकर आज ही देने का वचन मैंने दे दिया है. यदि मैं उसे आज जूते नहीं दे सका तो मेरा वचन भंग हो जाएगा. गंगा स्नान के लिए जाने पर मन यहाँ लगा रहेगा तो पुण्य कैसे प्राप्त होगा? मेरा मानना है कि अपना मन जो काम करने के लिए अन्त:करण से तैयार हो वही काम करना उचित है. अगर मन सही है तो इस कठौते के जल में ही गंगास्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है.
गुरु रविदास का मानना था कि मनुष्य ईश्वर का अंश है और जिसका हृदय शुद्ध है, वह स्वयं ईश्वर का रूप है। इस संदर्भ में सोने के कंगन वाला प्रसंग काफी प्रसिद्ध है। संत रविदास ने गंगा में खोया रानी का कंगन अपनी कठौती में से निकाल कर दे दिया था। तभी से यह मुहावरा प्रसिद्ध हुआ-मन चंगा तो कठौती में गंगा।
गुरु रविदास जी का विश्वास था कि यदि सभी प्राणी विकारों को त्याग कर शुद्ध हृदय से युक्त हो जाएं, तो श्रेष्ठ समाज की स्थापना हो सकती है। संत रविदास जयंती पर यदि हम यदि उनकी शिक्षाओं पर चलें तो निश्चित ही एक श्रेष्ठ समाज और श्रेष्ठ मनुष्य की रचना हो सकती है।
रविदास जी आध्यात्म की पराकाष्ठा , जाति रहित समाज की स्थापना, मतान्तरण के प्रबल विरोधी, जिन्होंने सिकंदर लोदी के प्रलोभन के उत्तर में कहा था : 
वेद धर्म छोडू नहीं अनुपम सच्चा ज्ञान।
फिर मै क्यों छोडू इसे पढ़ लूं झूठ कुरान।।
लेकिन जब लोधी ने मुसलमान न बनने पर यातना देने की बात कही तो रविदास जी ने बेबाक कहा:
वेद धर्म छोडू नहीं कोशिश करो हज़ार।
तिल-तिल काटो देह ताहि गोदो अंग कटार।।
संत रविदास 120 वर्ष तक धरा पर अध्यात्म का प्रकाश देने के बाद ब्रह्मपद में लीन हो गए किंतु उनकी अमृतवाणी आज भी हमारी पथ-प्रदर्शक है. उन्होंने सच ही कहा है कि मन चंगा तो कठौती में गंगा. शुद्ध चित्त में ही ईश्वर का वास हो सकता है. ईश्वर की प्राप्ति सच्चे मन और सत्कर्मो से ही संभव है.

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Review Your Cart
0
Add Coupon Code
Subtotal

 
Scroll to Top