
सैमुअल हंटिंगटन एक प्रसिद्ध अमेरिकी राजनीति विज्ञानी (Political Scientist) और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे, जो अंतरराष्ट्रीय संबंधों, लोकतंत्र, सैन्य नीति और सभ्यताओं के टकराव (Clash of Civilizations) पर अपने सिद्धांतों के लिए प्रसिद्ध हैं।
“The Clash of Civilizations and the Remaking of World Order” (1996) में सैमुअल हंटिंगटन ने तर्क दिया कि शीत युद्ध के बाद दुनिया में संघर्ष राजनीतिक विचारधाराओं के बजाय संस्कृतियों और सभ्यताओं के बीच होगा। उन्होंने कहा कि वैश्विक राजनीति में मुख्य विभाजन पश्चिम बनाम गैर-पश्चिम होगा, और सभ्यताएँ टकराव का प्रमुख कारण बनेंगी।
📌 हंटिंगटन के अनुसार:
✔ राजनीतिक विचारधाराओं की जगह सांस्कृतिक पहचान विश्व राजनीति का केंद्र बनेगी।
✔ संघर्ष की रेखाएँ अब राष्ट्रों के बीच नहीं, बल्कि सभ्यताओं के बीच होंगी।
✔ दुनिया को भविष्य में पश्चिम बनाम गैर-पश्चिम के रूप में देखा जाएगा।
सैमुअल हंटिंगटन ने “The Clash of Civilizations” में हिंदू सभ्यता (Hindu Civilization) को एक स्वतंत्र और महत्वपूर्ण सभ्यता के रूप में स्वीकार किया है। उनके अनुसार, भारत एक उभरती हुई शक्ति (Emerging Power) है, जो वैश्विक सभ्यता का नेतृत्व करेगा।
📌 हिंदू सभ्यता के बारे में मुख्य बिंदु
1️⃣ हिंदू सभ्यता का स्वतंत्र अस्तित्व
हंटिंगटन ने हिंदू सभ्यता को इस्लामिक, पश्चिमी, कन्फ्यूशियस (चीन), और स्लाव-ऑर्थोडॉक्स सभ्यताओं से अलग एक विशिष्ट सभ्यता माना है।
भारत को “Hindu Core State” (हिंदू सभ्यता का केंद्र) कहा गया है, जो इस सभ्यता का मुख्य प्रतिनिधि है।
हिंदू सभ्यता की पहचान धर्म, संस्कृति और इतिहास से जुड़ी है, न कि केवल भाषा या भौगोलिक सीमाओं से।
2️⃣ भारत और इस्लामी सभ्यता के टकराव
हंटिंगटन ने भारत और इस्लामी सभ्यता (पाकिस्तान, बांग्लादेश, मध्य पूर्व) के बीच संघर्ष की संभावना जताई है।
उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच धार्मिक एवं सांस्कृतिक मतभेदों को एक बड़ा संघर्ष बिंदु माना है।
भारत को “Bloody Borders” (रक्तरंजित सीमाएँ) से घिरा देश बताया गया है, जहाँ सभ्यताओं के टकराव की संभावना अधिक है।
3️⃣ भारत: “Torn Country” या सशक्त राष्ट्र?
हंटिंगटन ने भारत को “Torn Country” (फटा हुआ देश) की श्रेणी में नहीं रखा, क्योंकि भारत की हिन्दू सभ्यता गहरी जड़ें रखती है और उसका अपना मजबूत सांस्कृतिक और धार्मिक आधार है।
लेकिन उन्होंने कहा कि भारत के भीतर पश्चिमी प्रभाव और पारंपरिक हिंदू संस्कृति के बीच संघर्ष चल रहा है।
भारत को “Hybrid Civilization” (संकर सभ्यता) भी कहा गया, क्योंकि यह प्राचीन हिंदू मूल्यों और आधुनिक पश्चिमी प्रभावों का मिश्रण है।
4️⃣ भारत और पश्चिमी सभ्यता का संबंध
हंटिंगटन ने तर्क दिया कि भारत पूर्ण रूप से पश्चिमी सभ्यता का हिस्सा नहीं बन सकता, क्योंकि इसका सांस्कृतिक ढाँचा और मूल्य पश्चिम से भिन्न हैं। पश्चिम के लोग भारतीय सभ्यता की विशेषताओं को अपनाएंगे।
हालांकि, भारत पश्चिम के साथ गठबंधन कर सकता है, विशेष रूप से चीन और इस्लामिक आतंकवाद के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ।
अमेरिका और यूरोप को भारत के साथ रणनीतिक संबंध बनाने चाहिए, क्योंकि यह चीन और इस्लामी देशों के प्रभाव को संतुलित कर सकता है।
5️⃣ हिंदू राष्ट्रवाद और इसकी भूमिका
हंटिंगटन ने माना कि भारत में हिंदू राष्ट्रवाद (Hindu Nationalism) बढ़ रहा है, जो इस्लामिक आतंकवाद से मुकाबला कर सकता है।
भारत की राजनीति धीरे-धीरे अपनी हिंदू पहचान को पुनः स्थापित करने की ओर बढ़ रही है।
हिंदू राष्ट्रवाद भारत को पश्चिमी देशों से अधिक स्वतंत्र, सम्पन्न और आत्मनिर्भर बना सकता है।
6️⃣ भारत और चीन का संभावित टकराव
हंटिंगटन ने भविष्यवाणी की कि भारत और चीन के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, क्योंकि दोनों संस्कृति, अर्थव्यवस्था और सैन्य शक्ति में बढ़ोतरी कर रहे हैं।
चीन “कन्फ्यूशियस सभ्यता” का केंद्र है, और यह एशिया में प्रभाव बढ़ाने की कोशिश करेगा।
भारत और चीन के बीच भू-राजनीतिक तनाव रहेगा (जैसे, सीमा विवाद और आर्थिक प्रतिस्पर्धा)।
📌 निष्कर्ष: हिंदू सभ्यता का भविष्य
✔ हंटिंगटन ने हिंदू सभ्यता को महत्वपूर्ण, स्वतंत्र और शक्तिशाली सभ्यता के रूप में पहचाना।
✔ भारत को पश्चिमी, इस्लामी और कन्फ्यूशियस सभ्यताओं के बीच संतुलन बनाने वाला राष्ट्र माना गया है।
✔ भारत-पाकिस्तान संघर्ष, हिंदू राष्ट्रवाद, और पश्चिमी प्रभाव – ये तीन प्रमुख कारक भारत के भविष्य को तय करेंगे।
✔ भारत पश्चिम का सहयोगी बन सकता है, लेकिन पूर्ण रूप से पश्चिमी सभ्यता का हिस्सा नहीं होगा।