हिन्दू शब्द का अर्थ क्या है ?

एक बड़े नेता बोले है कि हिन्दू शब्द का अर्थ बहुत गंदा है , शर्मनाक है …
हिन्दू शब्द का अर्थ क्या है ?
हमें बचपन से पढाया गया है कि प्राचीन ईरानी पारसी व ग्रीक “स“ को “ह“ बोलते थे . इस कारण वे सिन्धु नदी को हिन्दू बोलते थे . उनके  उच्चारण दोष के कारण यहाँ के निवासियों के धर्म का नाम हिंदू धर्म और इस देश का नाम हिन्दुस्थान पड़ गया !!!!
ऐसा इतिहास लिखने वाले अंग्रेजों की यह बताने की मंशा थी कि हिन्दुस्तानियों तुम तो जाहिल गंवार थे , तुम्हारे धर्म का कोई नाम न था , तुम्हारे देश का कोई नाम न था . विदेशियों ने तुम्हारे धर्म का नाम हिन्दू रखा , और तुम्हारे देश का नाम हिन्दुस्थान रखा . तब जा कर तुमको पहचान मिली .
 
हिन्दू शब्द की उत्पत्ति सिन्धु के गलत उच्चारण से हुई , इस फर्जी सिद्धांत का प्रवर्तक एक अंग्रेज मोनियर विलियम्स था . इसने थोड़ी संस्कृत भाषा सीखी और ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन काल में संस्कृत – अंग्रेजी शब्दकोष की रचना की . साम्राज्यवादी मानसिकता से ग्रस्त मोनियर विलियम्स ने लन्दन में इंडियन कॉलेज (आज की भाषा मे कोचिंग सेंटर) खोला जो अंग्रेजो को भारतीय सिविल सेवा परीक्षा की तैय्यारी करवाता था . 1846 से 1887 तक इसने हिन्दू धर्म , संस्कृत भाषा और व्याकरण , बुद्धिज़्म आदि पर कई अधकचरी पुस्तकें लिखी और कालिदास के नाटकों का गलत अंग्रेजी अनुवाद किया . इनको ब्रिटिश सरकार द्वारा सर की उपाधि प्रदान की गयी .
 
सिन्धु से हिन्दू की उत्पत्ति बताने वाले दूसरा साम्राज्यवादी अंग्रेज था  – हेनरी एलीअट (Henry Miers Elliot). ये महाशय ईस्ट इंडिया कम्पनी की सेवा में थे और बरेली में कलेक्टर थे . इसको फ़ारसी भाषा आती थी . इसने मुग़ल काल में लिखी गयी किताबों का अंग्रेजी में अनुवाद किया . इनको भी ब्रिटिश सरकार द्वारा सर की उपाधि प्रदान की गयी .
 
इन दोनों अंग्रेजो की बनायीं हुई सिन्धु – हिन्दू थ्योरी को विश्व भर में कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने फैलाकर मान्यता दी . यहाँ तक कि अनेक भारतीय इतिहासकार भी इनके झांसे में आ गए . 
एक इंटरनेशनल सम्मलेन में एक ईरानी मेरा मित्र बना . वो तो ‘स’ को ‘स’ ही बोलता था . मैंने उससे पूछा कि क्या तुम्हारे पूर्वज ‘स’ नहीं बोल पाते थे और ‘स’ को ‘ह’ बोलते थे , इस बात पर वह बड़ा आश्चर्यचकित था क्योकि उसने यह कभी नहीं सुना था . यही प्रश्न मै अपने पारसी मित्रो से भी कर चुका हूँ और वे सभी इस बात का खंडन करते हैं की उनके पूर्वज ‘स’ नहीं बोल सकते थे और ‘स’ को ‘ह’ बोलते थे. 
अंग्रेज इतिहासकार एक मात्र प्रमाण देते हैं कि पारसियों के धर्मग्रन्थ अवेस्ता में वैदिक “सप्त सिन्धु” को “हप्त हिन्दू” कहा गया है इससे साबित होता है की ये लोग ‘स’ को ‘ह’ बोलते थे . 
अगर ऐसा था तो अवेस्ता को अवेहता क्यों नहीं बोलते थे ? फारस को फारह क्यों नहीं बोलते थे  ?  अवेस्ता में सैकड़ो बार ‘स’ शब्द आया है , प्राचीन फारसी शहरों के नाम ‘स’ से हैं ( सुशन, अशूर आदि) , प्राचीन फारसी राजाओं के नाम में ‘स’ है (डेरिअस, क्षयार्ष आदि ) . जब ये सिन्धु का ‘स’ नहीं बोल सकते थे तो ये नाम कैसे बोलते होंगे ? जबकि प्राचीन फारसी भाषा में संस्कृत की तरह तीन भिन्न प्रकार के ‘स’ हैं :— 
 
हिन्दू शब्द की वियुत्पत्ति के समर्थन में यह झूठ भी कहा जाता है कि हिन्दू शब्द किसी भी भारतीय ग्रन्थ में नहीं पाया जाता. जबकि यह शब्द ग्रीक, ईरानी, अरबी, अफगान, मुग़ल आक्रमणकारियों के समय के विदेशी लेखों में मिलता है . अतः हिन्दू शब्द भारतीय मूल का है ही नहीं. 
जबकि हमारे प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में हिन्दू शब्द अनेक स्थानों पर आता हैं –
गौतम बुद्ध के पूर्व रचित ब्रहस्पति–आगम में वर्णित है –
हिमालयं समारम्भ्य यवाद इन्दुसरोवरम l
तं देवनिर्मितं देश हिन्दुस्थानम प्रचक्षते lI
(अर्थात – हिमालय से लेकर इन्दुसरोवर–कन्याकुमारी तक देवताओं द्वारा निर्मित इस देश को हिन्दुस्थान कहते हैं)
बुद्धकाल में रचित वृद्धस्मृतीग्रंथ में कहा गया है –
हिंसया दुयते यश्च सदाचरण तत्पर :
वेद्गो प्रतिमासेवी स हिन्दुमुख शब्दभाक l 
(अर्थात – जो हिंसा से दुःख मानने वाला है और सदाचार में तत्पर है , वेद के मार्ग पर चलने वाला , प्रतिमा पूजक है वह हिन्दू है )
मौर्यकाल में रचित पारिजातहरण नाटक में परशुराम कहतें हैं –
हिनस्ति तपसा पापान दैहिकान दुष्टमानसान l
हेतिभी: शत्रुवर्गच स हिन्दु: अभिधीयते ll
(अर्थात- जो अपनी तपस्या बल से पापों और देहिक दोषों का नाश करता है तथा अस्त्र शस्त्र से शत्रु वर्ग का संहार करता है वह हिन्दू कहलाता है )
रामायणकालीन अद्भुतकोष में हिन्दू की परिभाषा दी गयी है –
“हिन्दुहिन्द्रूश्च प्रसिद्धौ दुष्टनाम च विघर्श्यये” 
(अर्थात- हिन्दु और हिंदू ये दोनों दुष्टों को पराजित करने वाले अर्थ में प्रसिद्द हैं )
रामकोश में वर्णित है – 
हिन्दु: दुष्टों ना भवति नानार्यो विदूषक :
सद्धर्मपालको विद्वान श्रौतधर्म परायण 
(अर्थात – हिन्दू न दुष्ट होता है , न अनार्य विदूषक . वह धर्म पालक , विद्वान और वेदधर्म को मानने वाला होता है )
13वी शताब्दी में रचित “ माधव दिग्विजय“ में उल्लेखित है-
ॐकार मूल मंत्राध्याय: पुनर्जन्मद्रधाषयl
गोभक्तो भारत गुरु: हिन्दू हिन्संदूषक II
(अर्थात- ओंकार जिसका मूल मन्त्र है , पुनर्जन्म में जिसकी दृढ आस्था है , जो गो भक्त है , भारत ने जिसका प्रवर्तन किया , और जो हिंसा को दूषित मानता है वह हिन्दू है ). 
इन उदाहरणों से पता चलता है कि हिन्दू शब्द संस्कृत मूल का है.
चीनी यात्रियों ने ‘हिन्दू’ के स्थान पर यहाँ के निवासियों के लिए ‘इन-तू’ शब्द प्रयोग किया और इसका अर्थ चन्द्रवंशीय लोग बताया . इन्दु का अर्थ चन्द्रमा भी होता है और यहाँ के निवासी चन्द्रमास का कलेंडर उपयोग करते हैं तथा स्वयं को हिन्दू कहते हैं ऐसा चीनी यात्री हुएनसांग (Xuanzang) ने सातवी शताब्दी में लिखा .
प्राचीन साहित्य में हिन्दू शब्द का अर्थ स्थानवाचक था जो कि मध्यकाल में गैर-मुस्लिमों के अर्थ में जाना जाने लगा . 
हिन्दू शब्द का अर्थ इस्लामिक साहित्य में  मुशरिक काफ़िर आदि बताया गया है . यहाँ तक कि 1964 में लखनऊ में प्रकाशित ‘लुघेत-ए-किश्वारी’ नामक फारसी शब्दकोष में ‘हिन्दू’ शब्द का मतलब चोर , डाकू , राहजन, गुलाम , दास बताया गया है.  
अनेक मनीषियों, व्याकरणाचार्यों , विद्वानों जैसे श्रीला प्रभुपाद , शिवानन्द स्वामी  , डेविड फ्रावले, आत्मशोधन पीठ के स्वामी , जर्मनी देश के भाषाविद व संस्कृत प्रोफेसर एक्सेल मिशेल आदि हिन्दू शब्द को ईरानी अपभ्रंश न मान कर विशुद्ध संस्कृत मूल का मानते है . अगर हिन्दू शब्द संस्कृत मूल का है तो इसका क्या अर्थ हुआ ? इन विद्वानों के अनुसार हिन्दू शब्द – हि और इन्दु से बना है . “हि” अर्थात ‘वास्तव में’ और “इन्दु” अर्थात ‘शक्तिशाली’ . अर्थात जो वास्तव में शक्तिशाली है वही हिन्दू है . 

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