75000 साल पहले भारतीयों का सफर :
(ज्वालापुरम से ढाबा 1300 किलोमीटर )
इंडोनेशिया के सुमात्रा में एक ज्वालामुखी है -टोबा । इस ज्वालामुखी में आज से 75000 साल पहले बड़ा भयंकर विस्फोट हुआ । विस्फोट इतना भयंकर था कि इसकी राख और लावा भारत तक आ गया था । और इस विस्फोट ने पूरे दक्षिण भारत को अपनी चपेट में ले लिया था ।
आंध्र प्रदेश के करनूल जिले में एक कस्बा है – ज्वालापुरम । यहाँ वैज्ञानिक व पुरातात्विक परीक्षण से पता चला कि 75000 साल पहले टोबा ज्वालामुखी विस्फोट की राख से यह इलाका दब गया था । राख की परत के नीचे जो साक्ष्य मिले उनसे पता चलता है कि ज्वालामुखी घटना होने के पहले से यहां एक सभ्यता निवास करती थी जो कि खेती करती थी । अर्थात भारत मे खेती करने का प्रमाण 75000 साल पूर्व का उपलब्ध होता है ।
ज्वालापुरम के निवासी टोबा विस्फ़ोट के बाद उत्तर की तरफ चले गए । क्योकि पूरे दक्षिण भारत मे 6 मीटर राख की परतें जम चुकी थी और सभी पेड़ पौधे व छोटे जानवर समाप्त हो गए थे । दक्षिण भारत के निवासी नर्मदा नदी पार करते हुए मध्यप्रदेश के सीधी जिले के ढाबा गांव में सोन नदी के किनारे पहुचे । यहाँ पर ऑक्सफ़ोर्ड व क़वीन्सलैंड यूनिवर्सिटी के द्वारा हुए पुरातात्विक अध्ययन से पता चलता है कि टोबा विस्फोट के कुछ साल बाद यहां पर दक्षिण से आये हुए लोगो की बसाहट हुई थी और यहां भी खेती करने के प्रमाण मिले हैं । आस पास के गांवों जैसे सिहावल, पटपरा, नकझर , बम्बूरी में भी 75000 वर्ष पुरानी कृषि व घर वाली मानव सभ्यता के अवशेष मिले हैं ।
जरा सोचिए कि आज से 75000 साल पहले हजारों इंसानों का दक्षिण भारत से उत्तर भारत के लिए प्रवजन कैसे हुआ होगा ? (हो सकता है ये लोग जबलपुर से भी गुजरे हों )
क्या ये वही लोग थे जिन्होंने पूर्वी उत्तर प्रदेश के लहुरादेव (जिला बस्ती) में 14000 साल पहले यंत्र सहित उन्नत खेती की शुरुआत की होगी ?
लेकिन हमें तो मैकाले के मानस पुत्रों ने यही पढ़ाया है कि आज से 5000 साल पहले सिंधुघाटी से पूर्व भारत मे कोई भी विकसित सभ्यता नही थी । भारतीय लोग पहले सिंधुघाटी में बसे – फिर गंगा के किनारे – फिर उत्तर भारत से दक्षिण भारत मे बसे । टोबा विस्फोट , ज्वालापुरम, ढाबा, लहुरादेव आदि का नाम मैकाले पुत्रों ने इतिहास की पाठ्य पुस्तकों से गायब ही कर दिया ।