सनातन धर्म भारतीय संस्कृति और जीवन दर्शन का मूल है, जो अनादि काल से अस्तित्व में है और अनंत काल तक बना रहेगा। इसका आधार जीवन के सार्वभौमिक सत्य, नैतिक मूल्यों और विश्व कल्याण की भावना पर टिका है। उपरोक्त कथन को विस्तार से निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:
1. रंगमय और आह्लादकत्ववाहक
सनातन धर्म विविधता में एकता को मान्यता देता है। यह केवल एक सिद्धांत या विचारधारा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें भक्ति, ज्ञान, कर्म, योग, सांस्कृतिक परंपराएँ, संगीत, नृत्य और कला जैसी अनेक विधाएं सम्मिलित हैं। इसके कारण यह जीवन को रंगीन और हर्षित बनाने वाला धर्म है।
2. सर्वग्राही और सर्वसमर्थ
सनातन धर्म किसी एक मान्यता या पूजा पद्धति तक सीमित नहीं है। यह सभी मतों और विचारों का सम्मान करता है। चाहे व्यक्ति मूर्ति पूजा करे, निराकार ब्रह्म की साधना करे या नास्तिक हो, सनातन धर्म उसके लिए स्थान रखता है। इसकी यही विशेषता इसे सर्वसमर्थ बनाती है।
3. एकरंग और एकरस नहीं
सनातन धर्म में कोई भी एक निश्चित नियम या एक ही मार्ग अनिवार्य नहीं है। यह विभिन्न दर्शनों, जैसे वेद, उपनिषद, भगवद गीता, पुराण आदि के माध्यम से आध्यात्मिकता के विविध मार्ग प्रदान करता है। इस प्रकार यह न तो एकरंग है और न ही एकरस।
4. चरैवेति का संदेश
“चरैवेति चरैवेति” का अर्थ है “चलते रहो, आगे बढ़ते रहो।” सनातन धर्म स्थिरता को नहीं, बल्कि निरंतर प्रगति को महत्व देता है। यह व्यक्ति को आध्यात्मिक और सांसारिक दोनों दृष्टियों से आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
5. विश्व कल्याण की कामना
सनातन धर्म का मूल मंत्र “लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु” है, जिसका अर्थ है कि सभी लोकों के प्राणी सुखी हों। यह केवल व्यक्तिगत मोक्ष की बात नहीं करता, बल्कि संपूर्ण विश्व के कल्याण की कामना करता है।
इस प्रकार सनातन धर्म जीवन का ऐसा दार्शनिक और आध्यात्मिक मार्ग है जो विविधता, सहिष्णुता और विश्व कल्याण के मूल्यों को अपनाते हुए व्यक्ति को निरंतर प्रगति की ओर प्रेरित करता है।