क्या खोया, क्या पाया

 इस जीवन में “क्या खोया, क्या पाया” पर चिंतन करने पर हम पाते हैं कि जिंदगी के सफर में कुछ पाने की खुशी होती है, तो कुछ खोने का दुख भी। जीवन की इस यात्रा में खोने-पाने की भावनाएं अक्सर परस्पर गुंथी हुई होती हैं, और यही जीवन को विविधता और गहराई प्रदान करती हैं।

क्या पाया?- पाने की दृष्टि से देखें तो जीवन में हमें अनगिनत अनुभव, रिश्ते, प्रेम, मित्रता, ज्ञान, और अवसर मिलते हैं। यह अनुभव हमारी समझ, सहनशीलता और दृष्टिकोण को परिपक्व बनाते हैं। जो भी हम जीवन में सकारात्मक रूप में संजोते हैं—चाहे वो परीक्षा की या व्यवसायिक सफलता हो, रिश्तों का प्रेम हो , लोगो की सेवा करने से मिलने वाली आत्मतृप्ति या अपने लक्ष्य को पाने की संतुष्टि—ये सब हमारे लिए बहुमूल्य हैं।

क्या खोया?- खोने की दृष्टि से देखें तो जीवन में बहुत कुछ छूटता है। वक़्त के साथ बचपन का मासूमियत, शरारतें, कुछ प्रिय लोग, कुछ अवसर और गतिमान समय हम खोते चले जाते हैं। हर एक अनुभव हमें कुछ सिखाकर ही छोड़ता है, चाहे वो कड़वा अनुभव हो या मीठा। यह खोना हमें सिखाता है कि हर चीज़ अस्थायी है और हमें उसे स्वीकार करना आना चाहिए।

शेष शून्य – अंततः जब हम सब कुछ समेट कर सोचते हैं, तो जीवन का संतुलन शून्य ही होता है। जो पाया है, वो कहीं खोने के डर से घिरा रहता है और जो खोया है, उसकी कसक जीवन भर रहती है। यह शून्य एक ऐसा स्थिर बिंदु है जो हमें यह सिखाता है कि असल में हम कुछ भी सांसरिक वस्तु, जैसे- धन संपत्ति पद , अपने साथ लेकर नहीं जा सकते। यह शून्य हमें जीवन के मर्म का बोध कराता है और सिखाता है कि जीवन का असली अर्थ पाने-खोने से परे, एक संतुलन में है।

इस तरह से, जीवन को एक प्रवाह के रूप में देखना चाहिए जहां खोने और पाने के बीच शून्य का यह संतुलन हमें सच्ची शांति और संतुष्टि की ओर ले जाता है।

उमा कहऊँ मैं अनुभव अपना, 

सत हरि भजन जगत सब सपना.

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