धन्वंतरि को भारतीय चिकित्सा विज्ञान, विशेषकर आयुर्वेद के जनक के रूप में जाना जाता है। उनका योगदान स्वास्थ्य और चिकित्सा क्षेत्र में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। धन्वंतरि का उल्लेख आयुर्वेदिक ग्रंथों और पुराणों में किया गया है, जहाँ उन्हें देवताओं के वैद्य का दर्जा प्राप्त है। आयुर्वेद के माध्यम से उन्होंने मानव जीवन को रोगों से मुक्ति दिलाने और स्वस्थ जीवन जीने के उपाय बताए।
1. आयुर्वेद का प्रवर्तन:
धन्वंतरि ने आयुर्वेद को एक व्यवस्थित और वैज्ञानिक रूप दिया। उन्होंने इसे आठ भागों में विभाजित किया, जिसे “अष्टांग आयुर्वेद” कहा जाता है। इन आठ अंगों में काय चिकित्सा (सामान्य चिकित्सा), शल्य चिकित्सा (सर्जरी), शालक्य (नेत्र, नाक, कान और गला रोग), कौल चिकित्सा (बालरोग), अगद तंत्र (विष चिकित्सा), रसायन (जीवन को लंबा करने वाले औषध) और वाजीकरण (प्रजनन चिकित्सा) शामिल हैं।
2. सर्जरी और औषध निर्माण में योगदान:
धन्वंतरि को औषध निर्माण और सर्जरी के क्षेत्र में महान योगदान के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने विभिन्न जड़ी-बूटियों और औषधियों की खोज की, जिनका उपयोग आज भी आयुर्वेद में होता है। माना जाता है कि उन्होंने शल्य चिकित्सा के भी कई उन्नत तरीकों को अपनाया, जिनका उपयोग उस समय असाध्य माने जाने वाले रोगों के इलाज के लिए किया जाता था।
3. रोगों का निदान और उपचार पद्धति:
धन्वंतरि ने विभिन्न रोगों के निदान और उपचार के लिए विभिन्न पद्धतियों का विकास किया। उन्होंने शरीर को वात, पित्त, और कफ – तीन दोषों के आधार पर समझा और इसी संतुलन से स्वास्थ्य और रोग की स्थिति का निर्धारण किया।
4. स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता:
उन्होंने स्वस्थ जीवनशैली और रोगों से बचाव के महत्व पर जोर दिया। आयुर्वेद के सिद्धांतों के अनुसार, भोजन, दिनचर्या, और प्राकृतिक जीवन शैली पर ध्यान देना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक है।
धन्वंतरि की शिक्षा और चिकित्सा पद्धतियां आज भी आयुर्वेद चिकित्सा का आधार मानी जाती हैं। उनके योगदान से न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व को एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति का उपहार मिला, जो आज भी लाखों लोगों के लिए उपयोगी है।