मन

मन :
इंसान की सबसे बड़ी भूल एक ये भी है कि उसको अपनी शारिरिक क्षमताओं का आभास और स्वीकार तो होता है , 
लेकिन मानसिक क्षमताओं का न आभास होता है न स्वीकार ।
जैसे प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक शक्ति की अपनी एक क्षमता है ऐसे ही मानसिक शक्ति की क्षमता है ।
और इसी वजह से वह दूसरो की तरह खुद को बनाने की कोशिश करता है । जो दूसरे कर रहे है वो करने की कोशिश करता है ।
जिस गति से दूसरे मन को दौड़ा रहे है उसी गति से अपने मन को भी दौड़ाने की कोशिश करता है ।
और अंततः खुद को टूटा हुआ थका हुआ , जिंदा लेकिन मरा हुआ पाता है ।
क्योंकि मन अपनी स्वाभाविक प्रकृति को खो देता है । 
मन ही मन का बाधक है 
मन ही मन का साधक है ।।
मनो हि द्विविधं प्रोक्तं शुध्दं चाशुध्दमेव च ।
अशुध्दं कामसंकल्पं शुध्दं कामविवर्जितम् ॥
मन दो प्रकार के होते हैं -अशुध्द और शुध्द । कामना और संकल्प वाला मन अशुध्द और जो मन कामना रहित हो वह शुध्द ।
गीता में भगवान कहते है –
आत्मानं रथिनं विध्दि शरीरं रथमेव तु ।
बिध्दिं तु सारथि विध्दि मनः प्रग्रहमेव च ॥
आत्मा को रथी, शरीर को रथ, बुद्धि को सारथी और मन को लगाम समझो ।

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