महान शायर नज़ीर अकबराबादी की पुण्यतिथि है आज ।
आशिक कहो, असीर कहो, आगरे का है,
मुल्ला कहो, दबीर (लेखक) कहो, आगरे का है
मुफ़लिस कहो, फ़क़ीर कहो, आगरे का है
शायर कहो, नज़ीर कहो, आगरे का है.’
होली को राष्ट्रीय त्यौहार मानने वाले नज़ीर ने इस पर्व पर 20 से अधिक कविताएं लिखी हैं. आगरा शहर की हर गली में होली किस तरह से खेली जाती है इसका वर्णन उन्होंने किया है. इसके अलावा, दिवाली, राखी, बसंत, कंस का मेला, लाल जगधर का मेला जैसे पर्वों पर भी उन्होंने जमकर लिखा. दुर्गा की आरती, हरी का स्मरण, भैरों और भगवान् के अवतारों का जगह-जगह बयान है उनकी नज़्मों में । गुरु नानक देव पर उनकी नज्म प्रसिद्ध है । पर जब नज़ीर अकबराबादी कृष्ण की तारीफ़ में लिखते हैं तो उन्हें सबका ख़ुदा बताते हैं:-
‘तू सबका ख़ुदा, सब तुझ पे फ़िदा, अल्ला हो ग़नी, अल्ला हो ग़नी
हे कृष्ण कन्हैया, नंद लला, अल्ला हो ग़नी, अल्ला हो ग़नी
तालिब है तेरी रहमत का, बन्दए नाचीज़ नज़ीर तेरा
तू बहरे करम है नंदलला, ऐ सल्ले अला, अल्ला हो ग़नी, अल्ला हो ग़नी.’
एक कविता में नज़ीर कृष्ण पर लिखते हैं:
‘यह लीला है उस नंदललन की, मनमोहन जसुमत छैया की …
आज के जमाने मे वे ऐसी शायरी लिखते तो मुल्ला मौलवी उन पर फतवा जारी कर देते ।
आज के शायरों की तरह वे “बंदर वन्दर जितनी ईंटे उतने सिर” या “किसी के बाप का हिंदुस्तान” जैसी छुद्रता पर नही उतरे ।
धार्मिक एकता और सद्भावना की सही मिसाल थे नज़ीर अकबराबादी ।
महान शायर को नमन 🙏🙏🙏
"आगरा बाज़ार" हबीब तनवीर का एक उम्दा नाटक है जिसे नज़ीर अकबराबादी पर केन्द्रित किया गया है।