माताजी शांतिबाई गोंड बड़ी आध्यात्मिक महिला है। औपचारिक शिक्षा ना होते हुए भी इनको रामायण महाभारत पौराणिक कथाओं का बड़ा ज्ञान है। वे अपना पूरा समय मंडला जिले के काला पहाड़ पर स्थित एक छोटी झोंपड़ी में एकाकी बिताती हैं जिसमे एक ही कमरा है और वह आदिदेवों का मंदिर भी है ।
अर्धमिश्रित गोंडी व हिंदी भाषा मे उन्होंने समझाया कि – पेन का मतलब देव । जैसे बड़ा पेन, बूढ़ा पेन, परसा पेन । ये सब प्रकृति की देव शक्तियां है जो किसी समाज के पहले पूर्वज के रूप में होती है और हमेशा उस परिवार के साथ रहती हैं व रक्षा करती हैं ।
झोपड़ी के अंदर ईश्वर के स्थान पर ज्योति जल रही थी व अनेक चिमटे गड़े थे , उन्होंने एक चिमटे से मेरे सर पर स्पर्श किया और बोली (जिसका अर्थ है) –
हे परसा पेन तू सल्लां और गांगरा शक्ति है ,
तू सभी जीव जगत की पालन शक्ति है ,
तू हमारे कर्म , कर्तव्य और कार्य की शक्ति है ,
तू हमारी शारीरिक , मानसिक और बौद्धिक शक्ति है ,
तू धन और ऋण शक्ति है ,
तू दाऊ और दाई शक्ति है ,
तू हमारी मनन , चिंतन , श्रवण तथा निगाह शक्ति है .
तू इस पोकराल (ब्रम्हाण्ड) की सर्वोच्च शक्ति है .
नाम बोलो –
हमने कहा – अशोक
वे बोली- परसापेन अशोक को स्वस्थ रखे , रक्षा करे , सारी परेशानियां दूर हों । लोगो की भलाई करो । जय नर्मदा माई , जय भोलेनाथ और इन्होंने हमको भभूत दी । हमने माताजी के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया । (कुछ पैसा चढ़ाना चाहा मगर उन्होंने नही लिया ) ll जय सेवा ।l