भगवान नवागुंजारा Navagunjara :
यह कहानी महाभारत से है। अज्ञातवास के दौरान अर्जुन एक जंगल मे ध्यान योग कर रहे थे। तभी उनके सामने एक अजीब सा जीव आया जो नौ जीवों का मिश्रण था। वो तीन पैरों पर खड़ा था। उसका एक पैर हाथी का था, दूसरा पैर चीता का औऱ तीसरा घोड़े का और चौथे पैर की जगह मनुष्य का हाथ था। उसका चेहरा मुर्गे का था औऱ गर्दन मोर की। उसका कूबड़ बैल का था, पीठ शेर को थी औऱ पूँछ सर्प की। अर्जुन ने जब उस जीव को अपने सामने देखा तो पहले तो वे भयभीत हो गए। उन्होंने तीर धनुष उठाया औऱ उस अजीब से जीव पर तान दिया। फिर उन्होंने उसे गौर से देखा तो उसमें मौजूद इंसानी हाथ को वो पहचान गए। उस हाथ मे एक कमल का फूल था। फिर उन्होंने और गौर से देखा तो उसमे मौजूद सभी जीवों को वो पहचान गए। फिर उन्होने धनुष किनारे रखा, घुटनों के बल उस जीव के सामने बैठ गए और बोले, नमस्ते! आपका अस्तित्व मेरी कल्पनाओं से परे हैं। आप मुझसे या मेरे द्वारा देखी सोची गई वस्तुओं से बिल्कुल अलग है, आप जरूर भगवान है। अचानक वो जीव भगवान विष्णु के रूप में बदल गया। ये भगवान विष्णु का नवागुँजारा स्वरूप है। भगवान जगन्नाथ के मंदिर में आप नवागुंजारा स्वरूप की तस्वीरे देख सकते हैं। ओडिसा में इनकी पूजा होती है।
आप सम्मानीय हैं क्योंकि आप मुझसे अलग है। आप मेरी सोच के परे हैं किंतु मेरी सोच सीमित है। ईश्वर उस स्वरूप में भी हो सकता है जिसके बारे में हम सोच नही सकते। यही भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म है । आप मुझसे भिन्न है इसलिए मैं आपका सम्मान करता हूँ , आप ईश्वर भी हो सकते हैं ।
This is indian culture. If You are different from me, you will be respectful , you must be a God.