राना बेनी माधव
(कवि प्रशांत सिंह चौहान)
सन सत्तावन की तश्वीरें पुनः दिखाने वाला हूँ,
मैं राणा बेनी माधव का इतिहास सुनाने वाला हूँ…
सन सत्तावन में भारत जब क्रांति आग में सुलग गया,
तब रायबरेली के राणा ने पुनः नया इतिहास रचा,
निज शस्त्रों से अंग्रेजी सेना को उसने नापा था,
कितनी शक्ति तुम्हारी है निज बाहुबल से मापा था…
राणा जी के शौर्य तेज से जनमानस हुँकार उठा,
रायबरेली की जनता पग-पग राणा संग वार किया,
शंकरपुर के राज-पाठ की उसने आहुति दे डाली,
अंग्रेजी सेना को उसने नानी याद दिला डाली…
जब गोरिल्ला जंग छिड़ी तो आजादी संग्राम हुआ,
राणा की सेना के सम्मुख ग्रांट हॉप परेशान हुआ,
अंग्रेजी सेना बिखरी वो प्राण बचाकर भागा था,
इस क्रांति युद्ध की चिंगारी से लंदन भी थर्राया था…
गोरिल्ला संग्राम की चर्चा भारत मे मशहूर हुई,
राणा जी के शक्ति-शौर्य से हजरत भी मंजूर हुई,
बेगम हजरत राणा जी को जंगदिलेरे बोला था,
पूरा भारत मान गया ये आजादी का शोला था…
बेगम हजरत पर विजय प्राप्ति का गोरों ने अनुबन्ध किआ,
राणा जी ने बेगम के संग वो सपना विध्वंस किआ,
फिर से ख्याति बढ़ी राणा की आजमगढ़ उपहार मिला,
लखनऊ शहर में जली दिवाली जय राणा हुँकार उठा…
षड़यंत्र रचा अंग्रेजों ने फिर से जोर प्रहार किया,
युद्ध हुआ था बैसवारा में भीषण नरसंहार हुआ,
राणा की सेना टूटी और शंकरपुर वीरान हुआ,
शांति छा गई घर-बस्ती में सुना हिंदुस्तान हुआ…
उर-जल-थल-अम्बर-चेतन ने कभी हार न मानी थी,
अवधवशियो के शोणित में वर्ण बहुत अभिमानी थी,
कुपोषित काया की शक्ति जैसे पोषित होती है,
प्राची में सूरज की लाली जैसे ओजित होती है…
एक साथ जनमानस ने राणा जी से आव्हान किया,
सेना की कर लो रचना सबने पुत्रों का दान दिया,
दस हज़ार की सेना बन गई फिर से हृदय विशाल हुआ,
कण-कण से हुँकार उठी फिर से राणा विक्राल हुआ…
सेना की टुकड़ी सज्जित थी केसरिया अभिमान जगा,
नरपत और गुलाब सिंह ने आजादी का गान किआ,
हल्ला बोला अंग्रेजों पर पल में मुण्ड विखण्ड हुआ,
लखनऊ सभा मे प्रलय मचा अंग्रेजी शासन भंग हुआ…
इसी बीच राणा की काया निज धीरज खो बैठा था,
मूर्छित राणा को लेकर सज्जो जंगल को भागा था,
रक्षा की रजनीभर जिसने स्वामिभक्त वो सज्जो था,
हर संकट में अडिग रहा संकटमोचक वो सज्जो था…
हुआ प्रभात पर राणा की ऊर्जा वापस न आई थी,
अवध वीर के जीवन पर मृत्यु की छाया छाई थी,
उस जंगल से लालचंद्र जब गुजरा देखा राणा को,
घर लाकर सत्कार किया और ऊर्जा दी थी राणा को…
पर अंग्रेजी जासूसों को इस घटना की खबर लगी,
लालचंद्र को पकड़ा फौरन खोज घर और गाली-गली,
लालचंद्र की पत्नी जो राणा की फिर से रक्षा की,
सच मानो तो राणा संग सम्पूर्ण राष्ट्र की रक्षा की…
लालचंद्र ने कारागार में घोर यातना झेली थी,
पता बताओ राणा का हर बेंत बदन से बोली थी,
आंखे फोड़ी लालचंद्र की उंगलियां काटकर फेंका था,
गर्म तवे पर लालचंद्र को रगड़-रगड़कर सेंका था…
लालचंद्र ने प्राण दे दिए पर राज एक न खोली थी,
मरते-मरते सांस आखिरी जय राणा की बोली थी,
इस राष्ट्र युद्ध मे लालचंद्र ने अपना सब-कुछ खोया था,
और भारत माँ के अश्रु नीर से निज कष्टो को धोया था…
जब राणा अपनी सेना संग नदी गोमती पर पहुंचे,
कर्नल हज अपनी सेना संग राणा से भिड़ने पहुंचे,
युद्ध भयंकर हुआ नदी में कर्नल हज की जान गई,
जय हिंद जय हिंद वन्देमातरम उद्घोषों की गान हुई…
जिसने निज शोणित से अपनी मातृभूमि को सींचा था,
युद्ध लड़ो से मिले आजादी मात्र यही सलीका था,
जब-तक जिंदा थे राणा अंग्रेजी शासन के बाधक थे,
अजर-अमर थे क्रांतिकारी और वन्देमातरम साधक थे…
जिसके नयनो में आजादी का स्वप्न सदा से पलता था,
रक्षित-पोषित हो भारत गर्व से मष्तक झुकता था,
जीवन जिया – त्याग किआ सर्वस्व राष्ट्र को दान किया,
मातृभूमि की रक्षा में राणा जी ने बलिदान किया…
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