भारतीय इतिहास का घोड़ा घोटाला :
भारत में घोड़े को पालतू बनाने और शिकार के लिए घोड़े पर जाने का सर्वप्रथम प्रमाण मध्य प्रदेश के भीम बेटका की गुफाओं के चित्रों में मिलता है l आज से 10000 साल पहले भारत में रहने वाले वनवासी भी घोड़ो का उपयोग भलीभाती करते थे l ये हमारे देश के मूल नस्ल के घोड़ा ( indigenous Indian horse- equus ferus caballus) है l
(चित्र भीम बेटका)
1989 में मध्य प्रदेश के सीधी जिले के बघोर गाव में 4500 BCE में घोड़ो को घरों में पालने के प्रमाण मिले हैं l कर्नाटक के कोडेकाल में 2460 BCE में घोड़ो के डोमेस्टिक करने के प्रमाण मिलते हैं l
सिन्धु घाटी की सभ्यता के बारे में में 2005 प्रकाशित Archaeological society of India की रिपोर्ट पेज 22 में कहा गया है कि ” हडप्पन साईटो में सुरकोतड़ा, लोथल ,मालवण , कालीबंगा , रोपड़ ,हड़प्पा, मोहनजोदारो, राणा घुँदाई, नौशारो , राखीगढ़ी आदि में घोड़ो के प्रमाण मिले है l (रिपोर्ट की लिंक कमेंट में ) l
ये प्रमाण घोड़ो के खिलौनों और सैकड़ों मृत घोड़े के अवशेषों के रूप में मिले हैं l जिससे पता चलता है कि तथाकथित सिन्धु घाटी की सभ्यता में घोड़े का उपयोग बहुत आम था l
अभी हाल में ही पायी गयी सिनौली में तथाकथित सिन्धु घाटी सभ्यता की समकालीन सभ्यता में भी घोड़ो से चलने वाले रथ प्राप्त हुए हैं l
गपोड़ी इतिहासकार रोमिला थापर , गप्पबाज आर एस शर्मा आदि लिखते आये है – “भारत में घोडा बहुत देर से आया क्योकि घोडा भारतीय मूल का नहीं है l यह विदेशी जानवर है l सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग घोडा नहीं जानते थे l घोड़े को भारत में पहली बार इरान की सीमा से आर्य आक्रमणकारी ले कर आये l तब पहली बार यहाँ के लोगो को घोडा और रथ के बारे में पता चला l वगैरह …………”
[ ROMILA THAPAR The Penguin History of Early India FROM THE ORIGINS TO AD 1300, पेज 85-89 ] इसी तरह की सैकड़ो गप्पबाजी इन लोगो ने NCERT की इतिहास की किताबों में भर रखी है l
इस गप्पबाजी का उद्देश्य इतिहास को दूषित कर अंग्रेजो की औपनिवेशिक मान्यता को स्थापित करना है l
यह भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा घोडा घोटाला है l
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