वांचिनाथन : (इतिहास की किताबों से गायब एक और वीर)
सन 1911 में तमिलनाडु के तिरुनेलवेली का कलेक्टर था रोबर्ट विलियम अशे । अशे एक दम्भी क्रूर अधिकारी था । साम्राज्यवाद का पोषक और भारतीयों को जानवरों से भी निम्न समझना उसकी सोच थी। जिले की जनता का निर्दयता से दमन करना और स्वदेशी आंदोलन को कुचलना उसकी कार्यशैली थी। उसने अनेक बार फायरिंग करवाई जिसमे कई भारतीयों की जाने गयी।
उस समय तमिलनाडू में बाल गंगाधर तिलक के शिष्य एक महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी वी ओ चिदंबरम पिल्लई थे ।( इनके बारे में विस्तार से किसी दिन लिखूंगा) । सन 1908 के एक शांतिपूर्ण आंदोलन में कलेक्टर अशे ने पिल्लई को गिरफ्तार किया और उनपर देशद्रोह का चार्ज लगाया । जिस पर कोर्ट ने पिल्लई को दो आजीवन कारावास की सजा सुनाई। पिल्लई का स्वास्थ्य खराब होते हुए भी जेल में उनसे दिनभर धूप में कोल्हू से तेल पिरवाया जाता और अनेक यातनाये दी जाती ।
वांचिनाथन एक 25 साल के युवक थे । विवाहित थे और एक अच्छे सरकारी पद पर कार्यरत थे। उन्होंने अपने एक साथी मदस्वामी के साथ कलेक्टर अशे को सजा देने और ब्रिटिश साम्राज्य को सबक सिखाने की योजना बनाई । 17 जून 1911 को कलेक्टर अशे जब तिरुनेलवेली से मद्रास जा रहा था तो मणियाची रेलवेस्टेशन पर ट्रेन बदली हुई । वह फर्स्ट क्लास के केबिन में बैठा था तभी वांचिनाथन आये और अशे पर पिस्टल से फायर कर दिया । जिससे अशे वही सिधार गया। फिर वांचिनाथन वहां से निकल कर स्टेशन के बाथरूम में गए और इससे पहले कि अंग्रेज उनको पकड़ पाए , चंद्रशेखर आजाद की भांति , उन्होंने खुद को गोली मार ली। उनकी जेब से एक पत्र मिला जिसमे उन्होंने अंग्रेज कलेक्टर अशे को मारने का कारण और अंग्रेजों के म्लेक्छ राज ,देशभक्ति, स्वराज्य आदि के बारे में लिखा। (पत्र नेट पर है जिसे खोज कर पढ़ना चाहिए) ।
अशे की हत्या से अंग्रेज सरकार डर गई । वी ओ चिदंबरम पिल्लई का मामला प्रिवी कॉउंसिल इंग्लैंड तक गया और उनको 1912 में जेल से मुक्त कर दिया गया । बाद में वे कांग्रेस में शामिल हो कर 1936 तक देश की आजादी के लिए लड़ते रहे।
वांचिनाथन के बलिदान ने तमिल युवकों को स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने की प्रेरणा दी। तमिलनाडु में अनेक क्रांतिकारी संगठन बने जो अंग्रेजी शासन के विरुद्ध कार्य करते थे।
आजादी मिलने के बाद मणियाची शहर और रेलवे स्टेशन , जहाँ पर वांचिनाथन ने अशे को मारा और स्वयं का बलिदान दिया , का नाम वांची मणिचाई किया गया । उनके पैतृक शहर सेनगोत्ति में उनका स्मारक व प्रतिमा स्थापित की गई ।
अमर शहीद वांचीनाथन को कृतज्ञ नमन
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