भगवान श्रीकृष्ण की तीन प्रमुख आंतरिक शक्तियाँ (अंतःकरण शक्तियाँ) मानी जाती हैं, जिनके द्वारा ब्रह्मांड की सृष्टि, स्थिति और संहार होता है।
- संविद शक्ति (Samvit Shakti)
संविद शक्ति ज्ञान और चेतना की शक्ति है, जिससे ब्रह्म को अपनी सत्ता और सृष्टि का बोध होता है। यह भगवान की दिव्य ज्ञान-शक्ति है, जिसके कारण वे स्वयं को और अपनी सृष्टि को जान सकते हैं।

- संधिनी शक्ति (Sandhini Shakti)
संधिनी शक्ति वह ऊर्जा है जो अस्तित्व (Existence) को बनाए रखती है। यह सत्ता प्रदान करने वाली शक्ति है, जिससे आध्यात्मिक और भौतिक जगत की रचना होती है। श्रीकृष्ण के धाम, गोलोक और वैकुंठ का आधार यही शक्ति है।
- लाधिनी शक्ति (Hladini Shakti)
लाधिनी शक्ति आनंद और भक्ति की शक्ति है। यह प्रेम, भक्ति और आनंद का स्रोत है, जिससे भगवान अपनी लीलाएँ प्रकट करते हैं और जीवात्मा को दिव्य प्रेम का अनुभव होता है। राधारानी को इस शक्ति का पूर्ण स्वरूप माना जाता है।
यह सूत्र वैष्णव सिद्धांत में संविद, संधिनी और लाधिनी शक्तियों के रूप में व्याख्यायित किया जाता है। श्रील जीव गोस्वामी और श्रील बलदेव विद्याभूषण जैसे आचार्यों ने इन शक्तियों को भगवद् तत्व के आधारभूत तत्त्व के रूप में प्रस्तुत किया है।
“श्री चैतन्य चरितामृत” ग्रन्थ में इन शक्तियों की विस्तृत व्याख्या मिलती है।