Three Body Problem
हमारे तीन शरीर , त्रिदेह
वेदान्त दर्शन में शरीर की त्रिविध सत्ता — स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर — अत्यंत महत्वपूर्ण मानी गई है।
१. स्थूल शरीर
“स्थूल शरीर वह दृश्य, भौतिक शरीर है जो पंचमहाभूतों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश—के पञ्चीकरण से उत्पन्न होता है। यह पूर्वजन्मों के कर्मों के अनुसार प्राप्त होता है तथा सुख-दुःख आदि भोगों का माध्यम बनता है।”
यह शरीर जन्म से मृत्यु तक अस्तित्व में रहता है और यथासमय वृद्ध होता है, रोगग्रस्त होता है तथा अन्ततः विनष्ट हो जाता है। यही वह शरीर है जो जन, शिशु, युवा, वृद्ध इत्यादि अवस्थाओं में देखा जाता है। आत्मा इस शरीर को एक वाह्य माध्यम के रूप में उपयोग करती है।
२. सूक्ष्म शरीर
“सूक्ष्म शरीर अव्यक्त, अदृश्य परंतु क्रियाशील देह है जो अपञ्चीकृत पंचमहाभूतों से निर्मित है। इसमें मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ तथा प्राण के पाँच विभाग सम्मिलित होते हैं।”
यह शरीर स्थूल शरीर के नष्ट हो जाने पर भी जीव के साथ बना रहता है और पुनर्जन्म का कारण बनता है। यही शरीर हमारे संकल्प, विकल्प, अनुभूति, स्मृति तथा समस्त मानसिक क्रियाओं का हेतु है। इसे ही अधिभौतिक देह भी कहा जाता है क्योंकि यह भौतिक से परे किंतु अनुभवयोग्य है।

३. कारण शरीर
“कारण शरीर अत्यंत सूक्ष्म, अज्ञानमूलक एवं जन्म-जन्मान्तर के संस्कारों का भण्डार है। यह अनादि अविद्या रूप है, जिसमें आत्मा की चेतना आवृत्त रहती है।”
कारण शरीर निद्रा के समान सुख की स्थिति का कारण होता है, किंतु वहाँ कोई स्पष्ट ज्ञान नहीं होता। यह ही जीव के स्थूल और सूक्ष्म शरीरों के पुनः प्राप्त होने का मूल कारण है। जब तक यह देह विद्यमान है, तब तक आत्मा मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकती।
“तीनों देहों का विवेकपूर्वक ज्ञान आत्मस्वरूप के बोध हेतु अनिवार्य है। स्थूल शरीर दृश्य है, सूक्ष्म शरीर अनुभव का साधन है, और कारण शरीर अज्ञान का आधार है। इन तीनों से परे आत्मा नित्य, शुद्ध, बुद्ध, मुक्त और सच्चिदानन्दरूप है।”
वेदान्त का मुख्य प्रयोजन इन्हीं आवरणों से परे जाकर हमें उस परमात्मतत्त्व की अनुभूति कराना है, जो हमारी देहों का साक्षी है, किंतु उनसे सर्वथा अतीत भी।