Multiverse बहु-ब्रम्हांड

सनातन धर्म (हिंदू धर्म) में “Multiverse” की अवधारणा बहुत पुरानी और गहराई से जुड़ी हुई है। इसमें दो मुख्य प्रकार के मल्टीवर्स (बहु-ब्रह्मांड) की कल्पना की जाती है:

  1. कालचक्र आधारित मल्टीवर्स (Cyclic Multiverse)
    यह सिद्धांत बताता है कि ब्रह्मांड एक चक्रीय क्रम में बार-बार उत्पन्न और विनष्ट होता है।
    हर एक ब्रह्मांड एक “कल्प” या “युग” के लिए होता है, फिर उसका संहार होता है, और एक नया ब्रह्मांड उत्पन्न होता है।
    यह सृष्टि-स्थिति-प्रलय के चक्र में चलता रहता है।
    ब्रह्मा का एक दिन (जिसे कल्प कहते हैं) समाप्त होने पर संपूर्ण सृष्टि प्रलय को प्राप्त होती है और फिर ब्रह्मा का एक नया दिन आरंभ होता है जिसमें सृष्टि पुनः आरंभ होती है।
    यह चक्रीय विचार विज्ञान के कुछ सिद्धांतों (जैसे oscillating universe theory) से मेल खाता है।
  2. स्थानिक मल्टीवर्स (Spatial Multiverse)
    इस सिद्धांत के अनुसार एक ही समय में असंख्य ब्रह्मांड (लोक) अस्तित्व में होते हैं।
    प्रत्येक ब्रह्मांड का अपना ईश्वर, नियम और जीव होते हैं।
    वेदों और पुराणों में “14 लोक” (त्रिलोक) का वर्णन है—जैसे:
    ऊर्ध्व लोक (जैसे: सत्यलोक, तपोलोक, जनलोक…)
    मध्य लोक (भूर्लोक = पृथ्वी)
    अधोलोक (नरक आदि)

इसके अलावा, अन्य ब्रह्मांड भी माने गए हैं जहाँ अन्य ब्रह्मा, विष्णु और महेश होते हैं। देवी भागवत पुराण में यह उल्लेख आता है कि अन्य ब्रह्मांडों के ब्रह्मा, विष्णु और शिव अलग-अलग हैं।

सनातन धर्म के ग्रंथों — विशेष रूप से वेद, पुराण और महाभारत — में Multiverse (बहु-ब्रह्मांड) से संबंधित अनेकानेक श्लोक और कथन मिलते हैं। ये श्लोक या संदर्भ यह दर्शाते हैं कि एक से अधिक ब्रह्मांड अस्तित्व में हैं या समय चक्रीय है।

  1. ब्रह्मवैवर्त पुराण (ब्रह्मखंड, अध्याय 13, श्लोक 56):
    “कोटि ब्रह्माण्ड यस्य स्युः कोटि विष्णु महेश्वराः।
    कोटि ब्रह्मा सृजन्त्येते कोटि विष्णु: पालयेत।”

अर्थात:
जिस परमेश्वर की महिमा में कोटि (असंख्य) ब्रह्माण्ड समाहित हैं, वहाँ कोटि ब्रह्मा सृजन करते हैं, कोटि विष्णु पालन करते हैं और कोटि महेश संहार करते हैं।

  1. विष्णु पुराण (खंड 2, अध्याय 7):
    “अनेककोटि ब्रह्माण्डानि चतुर्व्यूहविभूतयः।
    तानि सर्वाणि गोविन्दस्य विक्रमार्थं प्रकल्पितानि।”

अर्थात:
अनंत ब्रह्माण्ड भगवान गोविंद (विष्णु) की चतुर्व्यूह शक्ति की अभिव्यक्ति हैं, जो उनके दिव्य कार्यों के लिए निर्मित हुए हैं।

  1. श्रीमद्भागवत महापुराण (स्कंध 6, अध्याय 16, श्लोक 37):
    “यस्यानुकारेण सृष्टानि कोटिशो यानि यानि च।
    ब्रह्माण्डानि च तैर्भिन्नानि तानि ज्ञेया: सनातनम्।”

अर्थात:
जिसकी केवल एक झलक से कोटि-कोटि ब्रह्माण्डों की रचना होती है, वे सभी ब्रह्माण्ड अलग-अलग हैं, और सनातन (शाश्वत) माने जाते हैं।

  1. महाभारत (शांतिपर्व, अध्याय 339):
    “सहस्राण्येव ब्रह्माणः सहस्राणि च चेश्वराः।
    सहस्राणि महेशानः सहस्राणि हराश्च ये।”

अर्थात:
हजारों ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) विद्यमान हैं। हर ब्रह्माण्ड में अलग-अलग ईश्वर कार्य कर रहे हैं।

Multiverse की अवधारणा (multiple universes with their own creators) सनातन धर्म में मौजूद है।
हर ब्रह्मांड का अपना ब्रह्मा, विष्णु और महेश होता है।
ब्रह्मांड की संख्या असंख्य/कोटियों में बताई जाती है।

Multiverse में मनुष्य का क्या स्थान है ?

14 लोकों की व्यवस्था में मनुष्य भूर्लोक (मध्यलोक) में रहता है।
यह स्थान न तो अत्यंत दिव्य है (जैसे स्वर्ग या ब्रह्मलोक), न ही नितांत अधोलोक (जैसे पाताल या नरक)।
इसलिए, यह “कर्मभूमि” है — जहाँ आत्मा को अपने कर्मों द्वारा ऊर्ध्व या अध: गति मिलती है।

अन्य ब्रह्माण्डों में भी इसी तरह के भूर्लोक की कल्पना है, जहाँ मनुष्यों जैसे जीव जीवन चक्र में होते हैं।

Multiverse में मनुष्य का अस्तित्व सीमित लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि:-

यह मोक्ष प्राप्ति का माध्यम है।

यह कर्मों की परीक्षा-भूमि है। एवं

यह आत्मा की यात्रा का एक निर्णायक चरण है।

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