डॉ. अमल कुमार रायचौधुरी

स्टीफन हॉकिंग विश्व के बहुत बड़े वैज्ञानिक माने जाते हैं, जबकि बहुत कम लोग जानते है कि उनकी अधिकतर खोजो की नींव एक भारतीय वैज्ञानिक की खोज पर टिकी है ।

कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कालेज के प्रोफेसर डॉ रायचौधुरी (जन्म 1923 – मृत्यु 2005) वो अनजाने भारतीय वैज्ञानिक हैं जिनके कंधों पर खड़े होकर हॉकिंग ने ब्रह्मांड को समझा ।

डॉ. अमल कुमार रायचौधुरी ने हाकिंग से बहुत पहले ही यह समझा दिया था कि प्रकाश की किरणें जब मुड़ी हुई अंतरिक्ष-समय (spacetime) में चलती हैं, तो उनका व्यवहार कैसा होता है। यही खोज आगे चलकर स्टीफन हॉकिंग के एक बड़े सिद्धांत की नींव बनी।

स्टीफन हॉकिंग की सबसे प्रसिद्ध खोजों में से एक थी ब्लैकहोल की सतहों का अध्ययन। पूरी दुनिया ने उन्हें महान वैज्ञानिक मानती है , पर कम लोग जानते हैं कि उनके शोध के पीछे भारत के एक वैज्ञानिक की ब्लैकहोल पर की गई शोधों का गहरा असर था।

हम सभी जानते हैं कि भारी वस्तुएं अपने आसपास की चीज़ों को खींचती हैं। आइंस्टीन ने इसे और बेहतर समझाया – उन्होंने बताया कि भारी वस्तुएं आसपास के अंतरिक्ष और समय (spacetime) को मोड़ देती हैं और जब कोई वस्तु इस मुड़े हुए क्षेत्र से गुजरती है, तो हमें गुरुत्वाकर्षण का अनुभव होता है।

जब कोई भारी तारा (star) अपने ही वजन से ढहता है, तो उसका पूरा द्रव्यमान (mass) अंदर की ओर खिंच जाता है और एक ब्लैकहोल बनता है, जिसमें सारा द्रव्यमान एक बहुत छोटे बिंदु में सिमट जाता है – जिसे सिंगुलैरिटी (singularity) कहते हैं।

यही वह क्षेत्र है जहाँ हॉकिंग के सिद्धांत और उनसे पूर्व डॉ. अमल कुमार रायचौधुरी के शोध मिल जाते है। रायचौधुरी एक बहुत प्रतिभाशाली लेकिन कम प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे। उन्होंने जनरल रिलेटिविटी (सापेक्षता का सामान्य सिद्धांत) के क्षेत्र में अहम योगदान दिया, लेकिन जीवन का बड़ा हिस्सा उन्हें प्रयोगशाला के सामान्य कामों में बिताना पड़ा । उन्हें भारत सरकार की ओर से न कोई सहायता मिली न कोई सम्मान।

हॉकिंग का पीएचडी शोधपत्र (thesis) शुरुआत में भारतीय वैज्ञानिक जयंत नारलीकर के एक गुरुत्व सिद्धांत (Hoyle-Narlikar theory) पर आधारित है। अपने शोध के अंत में हॉकिंग ने 1955 में रायचौधुरी द्वारा दिया गया समीकरण (Raychaudhuri Equation) का उपयोग किया। बाद में हॉकिंग के कई शोध-पत्रों में इस समीकरण का बार-बार उल्लेख हुआ।

सन् 1965 में हॉकिंग और उनके सह-वैज्ञानिक जॉर्ज एलिस के एक पेपर में पहली बार “Raychaudhuri Equation” शब्द आया। इसके बाद 1970 में हॉकिंग और रोजर पेनरोज ने इसे “Raychaudhuri Effect” कहा।

हॉकिंग के प्रसिद्ध सिंगुलैरिटी सिद्धांत की नींव रायचौधुरी समीकरण पर टिकी हुई है। हॉकिंग की प्रसिद्धि भले ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर थी, लेकिन उस शोध की जड़ें एक गुमनाम भारतीय वैज्ञानिक के काम में थीं।

1950 के दशक में रायचौधुरी यह अध्ययन कर रहे थे कि प्रकाश की किरणों का समूह जब मुड़े हुए spacetime से गुजरता है तो उसका आकार सिकुड़ता है या खिंचता है? उन्होंने इस प्रक्रिया का वर्णन एक समीकरण (equation) से किया, जो बाद में हॉकिंग के ब्लैकहोल और सिंगुलैरिटी सिद्धांतों की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी बना।

इस समीकरण की खूबी यह है कि यह सिर्फ ज्यामिति (geometry) पर आधारित है, ना कि आइंस्टीन के सिद्धांत पर। इसका मतलब है कि अगर भविष्य में आइंस्टीन का सिद्धांत अमान्य हो जाये, तब भी रायचौधुरी का समीकरण प्रासंगिक व सटीक रहेगा।

दुर्भाग्यवश, आज हम भारतीय रायचौधुरी को नहीं जानते जितना हॉकिंग को !!!
जिस तरह हमने जानकी अम्माल, बिभा चौधरी जैसे महान वैज्ञानिकों को विस्मृत कर दिया उसी तरह रायचौधुरी को भी ।

भारत सरकार को उनके नाम पर कोई संस्थान स्थापित करना चाहिए , जहाँ छात्र सापेक्षता और ब्रह्मांड विज्ञान (relativity and cosmology) में विशेषज्ञता प्राप्त कर सकें और उनके अधूरे सपनों को आगे बढ़ा सकें।

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