तत्त्वार्थ सूत्र जैन धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्राचीन ग्रंथ है, जिसे आचार्य उमास्वामी (या उमास्वाति) ने संस्कृत में रचा था। यह ग्रंथ जैन दर्शन का पहला व्यवस्थित सूत्ररूप ग्रंथ है, जो दोनों जैन संप्रदायों—दिगंबर और श्वेतांबर—द्वारा मान्य है। इसमें मोक्ष मार्ग, आत्मा, कर्म, ज्ञान, आचरण आदि विषयों पर गूढ़ किंतु संक्षिप्त सूत्रों में प्रकाश डाला गया है।
इस ग्रंथ में जैन धर्म के सप्त तत्त्वों की व्याख्या की गई है, जो हैं:
- जीव – चेतन तत्व
- अजीव – जड़ तत्व
- आस्रव – कर्मों का आगमन
- बंध – कर्मों का आत्मा से बंधन
- संवर – कर्मों के आगमन को रोकना
- निर्जरा – बंधे हुए कर्मों का क्षय
- मोक्ष – कर्मों से मुक्त होकर आत्मा की शुद्ध अवस्था
इन सात तत्त्वों के माध्यम से मोक्ष मार्ग को स्पष्ट किया गया है। साथ ही, त्रिरत्न (सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र) के महत्व पर भी ज़ोर दिया गया है।

ग्रन्थ के प्रसिद्ध सूत्र और उनकी व्याख्या:
1. “सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः” (सूत्र 1.1)
(सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र — मोक्ष का मार्ग हैं)
यह सूत्र बताता है कि मोक्ष प्राप्त करने के लिए इन तीनों का समुचित समन्वय आवश्यक है। यदि केवल ज्ञान है पर आचरण नहीं, या श्रद्धा है पर ज्ञान नहीं, तो मुक्ति संभव नहीं।
2. “जीवो जीवस्य सदा हितः”
(एक जीव दूसरे जीव के लिए सदैव हितकारी होना चाहिए)
यह सूत्र जैन धर्म की करुणा-प्रधान भावना को दर्शाता है। इसमें सभी प्राणियों के प्रति अहिंसा, सहानुभूति और सहयोग का संदेश है।
3. “जन्ममरणं पुण्यपापयोः” (सूत्र 6.15)
(पुण्य और पाप के कारण ही जन्म और मरण होते हैं)
यह सूत्र बताता है कि कर्म ही संसार में जन्म-मरण के चक्र का कारण हैं। जब तक कर्म बंधन है, जीव पुनर्जन्म को प्राप्त होता रहेगा।
4. “बन्धो हेतु परिग्रहः” (सूत्र 6.2)
(परिग्रह अर्थात संग्रह या आसक्ति ही कर्मबंध का कारण है)
यह सूत्र कहता है कि जब हम वस्तुओं, व्यक्तियों या भावनाओं से आसक्त हो जाते हैं, तो कर्म आत्मा से बंध जाते हैं। यही बंधन मोक्ष की राह में बाधक है।
5. “तपसा निर्जरा च” (सूत्र 9.3)
(तपस्या से कर्मों की निर्जरा अर्थात क्षय होता है)
यह सूत्र आत्मशुद्धि का मार्ग दिखाता है। तप से न केवल नए कर्मों का आगमन रोका जा सकता है, बल्कि पुराने कर्म भी जलाए जा सकते हैं।
तत्त्वार्थ सूत्र न केवल जैन धर्म का आधारभूत ग्रंथ है, बल्कि यह एक सनातन भारतीय दर्शन है जो जीवन को समझने और आत्मा की मुक्ति की राह दिखाने वाला है। स्थानाभाव के कारण यहां पर ग्रन्थ का केवल संक्षिप्त परिचय ही दिया जा सकता है । विस्तृत अध्ययन हेतु आचार्यश्री सुभद्र मुनि अथवा आचार्यश्री विद्यानंद मुनि की व्याख्या देखें। इसके सूत्र संक्षिप्त होते हुए भी अत्यंत गहन हैं, और हर सूत्र जीवन के एक गूढ़ सत्य को उद्घाटित करता है।