नीरा आर्या


नीरा आर्या भारत की महान स्वतंत्रता सेनानी थीं, जो आज़ाद हिंद फौज की पहली महिला गुप्तचर (जासूस) थीं। उनका जन्म 5 मार्च 1902 को हैदराबाद, तेलंगाना में हुआ था। उनके पिता सेठ चुन्नीलाल बड़े व्यवसायी थे। नीरा जी की शादी ब्रिटिश सरकार के वफादार एक पुलिस इंस्पेक्टर श्रीनिवास आर्या से हुई थी।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:
नीरा आर्या नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फौज से जुड़ीं। वे “रानी झांसी रेजीमेंट” की सदस्य रहीं। उन्होंने नेताजी की रक्षा और ब्रिटिश सरकार की गुप्त सूचनाएँ लाने का कार्य किया। नेताजी उन्हें “नागिन” कहते थे ।  नीरा के पति श्रीनिवास आर्या नेताजी की हत्या करना चाहते थे, परंतु नीरा ने अपने कर्तव्य और देशभक्ति के लिए अपने ही पति की हत्या कर दी।

द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान में एटम बमबारी और जापान के आत्मसमर्पण के बाद आजाद हिंद फौज की रंगून में ब्रिटिश से पराजय हो गयी । बर्मा में आजाद हिंद फौज के अनेक सैनिको के साथ ब्रिटिश सरकार ने नीरा आर्या को गिरफ्तार कर लिया। जेल में उन्हें अमानवीय यातनाएँ दी गईं। उन्हें कलकत्ता जेल और फिर कालापानी अंडमान जेल में भेज दिया गया । जेलों में उन्हें अत्यधिक प्रताड़ित किया जाता जैसे-

  1. भूखा-प्यासा रखा जाना: उन्हें कई दिनों तक भोजन और पानी नहीं दिया जाता था।
  2. नाखून उखाड़ना: उनके नाखून तक उखाड़ दिए गए ताकि वे सुभाषचंद्र बोस के राज उगल दें, लेकिन वे चुप रहीं।
  3. लोहे की सलाखों से पीटना: उन्हें बुरी तरह पीटा जाता था जिससे उनका शरीर लहूलुहान हो जाता।
  4. आँखों में मिर्च झोंकना: उनकी आँखों में मिर्च डालकर जलाया जाता था।
  5. लोहे की छड़ों से गर्म कर शरीर दागना: शरीर को लोहे की गर्म सलाखों से दागा जाता था। उन्हें बिना अधोवस्त्र के रखा जाता और लोहे के यंत्रों द्वारा उनके स्तन नोचे जाते।

इन यातनाओं के बावजूद नीरा आर्या ने अपने देश के प्रति वफादारी नहीं छोड़ी और नेताजी व आज़ाद हिंद फौज के बारे में कोई जानकारी नहीं दी।

आजादी मिलने के बाद उन्हें नेहरू सरकार से कोई मदद नही मिली । वे हैदराबाद मुक्ति संग्राम में भी शामिल रही ।
नीरा आर्या का अंतिम जीवन बहुत कष्टमय रहा। उन्होंने दरिद्रता में जीवन व्यतीत किया वे सड़क किनारे फूल बेचती थी ।  और अंततः गुमनामी में 1998 में उनका निधन हो गया।


नीरा आर्या का जीवन देशभक्ति, साहस और बलिदान की मिसाल है। उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमर है।

दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के इतिहासकारों ने नीरा आर्या को विस्मृत कर दिया ।

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