24 नवंबर 1675
श्री गुरु तेग बहादुर का शहीदी दिवस
आध्यात्मिक चिंतक व धर्म साधक गुरु तेगबहादुर का जन्म वैशाख की कृष्ण पक्ष-पंचमी को छठे गुरु हरगोबिंद साहिब और माता बीबी नानकी के घर हुआ। बचपन से ही अध्यात्म के प्रति उनका गहरा लगाव था। वे त्याग और वैराग्य की प्रतिमूर्ति थे। उनका नाम भी पहले ‘त्याग मल’ था। उनमें योद्धा के भी गुण मौजूद थे।
मात्र 13 वर्ष की आयु में उन्होंने करतारपुर के युद्ध में अद्भुत वीरता दिखाई। उनकी तेग (तलवार) की बहादुरी से प्रसन्न होकर पिता ने उनका नाम त्यागमल से ‘तेग बहादुर’ कर दिया। सांसारिकता से दूर रहकर गुरु जी आत्मिक साधना में 21 वर्ष तक लीन रहे थे। गुरु तेगबहादुर के 57 शबद और 59 श्लोक श्री गुरुग्रंथ साहब में दर्ज हैं। श्री गुरु तेग बहादुर जी की वाणी में समायी है राम नाम की महिमा – रे मन राम सिंओ कर प्रीति ।
सखनी गोविन्द गुण सुनो और गावहो रसना गीति।। ,
राम नाम का सिमरनु छोडिआ माइआ हाथि बिकाना ॥
रट नाम राम बिन मिथ्या मानो, सगरो इह संसारा ।।
उन्होंने अपनी वाणी में जीवन जीने की एक अत्यंत सहज- स्वाभाविक पद्धति प्रस्तुत की है, जिसे अपनाकर मनुष्य सभी तरह के कष्टों से सुगमता से छुटकारा पा सकता है।
गुरु जी का कथन है कि चिंता उसकी करो, जो अनहोनी हो-‘चिंता ताकी कीजिये जो अनहोनी होय’। इस संसार में तो कुछ भी स्थिर नहीं है। गुरु तेग बहादुर के अनुसार,समरसता सहज जीवन जीने का सबसे सशक्त आधार है।
आशा-तृष्णाकाम-क्रोध आदि को त्यागकर मनुष्य को ऐसा जीवन जीना चाहिए, जिसमें मान-अपमान, निंदा-स्तुति, हर्ष-शोक, मित्रता-शत्रुता समस्त भावों को एक समान रूप से स्वीकार करने का भाव उपस्थित हो – ‘नह निंदिआ नहिं उसतति जाकै लोभ मोह अभिमाना। हरख सोग ते रहै निआरऊ नाहि मान अपमाना’। गुरु जी का कहना है कि वैराग्यपूर्ण दृष्टि से संसार में रहते हुए सभी सकारात्मक – नकारात्मक भावों से निर्लिप्त होकर ही सुखी और सहज जीवन जिया जा सकता है।
उन्होंने कश्मीरी हिंदुओं के धार्मिक अधिकारों ‘तिलक’ और ‘जनेऊ’ की रक्षा के लिए दिल्ली के चांदनी चौक (अब शीशगंज) में अपना शीश कटाकर प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। नौवें गुरु की इस बेमिसाल कुर्बानी पर गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा- ‘तिलक जंझू राखा प्रभता का। कीनो बड़ो कलू महि साका।।’ इस अभूतपूर्व बलिदान के कारण ही उन्हें ‘हिंद की चादर – गुरु तेग बहादुर’ कहकर सम्मान के साथ स्मरण किया जाता है।
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