2000 साल पहले की कवियत्री की कविताएं : गाथा सप्तशती

2000 साल पहले की अज्ञात कवियत्री की कविताएं :
गाथा सप्तशती ( गाहा सत्तसई ) 
गाथा सप्तशती प्राकृत भाषा का ग्रंथ है । प्राकृत भाषा प्राचीन काल से 10 वी शताब्दी तक पूरे भारत मे जनसामान्य की भाषा हुआ करती थी । गाथा अर्थात छंद , सप्तशती अर्थात 700 । इसमें 700 छोटी छोटी कविताओं का संकलन होने पर इस कृति का नाम गाथा सप्तशती पड़ा । 
यह कब लिखी गयी इसमें विद्वानों के एक विचार नही है । किंतु राजा सालवाहन के दरबारी कवि हाल ने इसका संकलन किया । अर्थात इसका वर्तमान स्वरूप प्रथम शताब्दी ईसवी में आया । बाणभट्ट ने भी हर्षचरित में इसका जिक्र किया ।
इस ग्रंथ को पढ़ने से पता चलता है कि अधिकांश कविताएं किसी अज्ञात कवियत्री की लिखी हुई है । पुस्तक में केरल की नदियों , गुजरात , मानसरोवर, विंध्याचल, महाराष्ट्र के स्थानों आदि का जिक्र आता है । 
आधुनिक काल मे भारतीयों को गाथा सप्तशती का पता तब चला जब जर्मन कवि वेबर ने 1870 में इसकी 17 पांडुलिपियों को खोज निकाला । ये पांडुलिपियां तमिलनाडु बिहार राजस्थान महाराष्ट्र बंगाल गुजरात कश्मीर से प्राप्त की गई । आश्चर्यजनक रूप से इनमें 430 कविताएं सभी मे हूबहू मिली । वेबर ने 1870 में गाथा सप्तशती को जर्मन भाषा में प्रकाशित करवाया । 1956 में इसका मराठी अनुवाद प्रकाशित हुआ ।
इन कविताओं में 2000 साल पहले के लोक व्यवहार , राग रंग, मिलन वियोग , प्रेम काम , हास विलास, रीति रिवाज पर स्त्री के दृष्टिकोण पता चलता है । इन कविताओं में जाति प्रथा का कोई जिक्र नही है । उस समय के समाज मे स्त्री भावनाओं से रचित कविताएं गाई जाती थी और इन्हें राजाओं का आश्रय प्राप्त था ।
गाथा सप्तशती से कुछ कविताएं प्रस्तुत है ।
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आग –
निर्वासित के चूल्हे में 
और यज्ञशाला में 
एक जैसी ही जलती है ।
सब से
अपना व्यवहार समान रखो।
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मेरे उलझे बाल 
अभी सुलझे भी नही 
और तुम जाने की बात करते हो ।
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लौटेंगे प्रीतम परदेश से …
मैं रूठ जाऊंगी ,
वह मनाएंगे ,
मैं रूठी रहूंगी ,
वे फिर मनाएंगे ,
मैं रूठी रहूंगी ।
क्या यह है मेरे भाग्य में ?
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प्रियतम,
मुझे मेरा जीवन प्रिय है तुमसे अधिक ।
तभी तो तुम्हारी हर बात मानती हूँ ।
क्योकि तुम बिन मेरा जीवन है ही नही ।
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कुत्ता मर गया है 
सास सोई है 
भैस चरने गयी है 
पति परदेश गया है ,
मेरे बारे में कौन किसको क्या बताएगा ?
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तुम्हारे अधरों का स्वाद यदि जानते ,
तो देवता समुद्र मंथन न करते ,
अमृत के लिए !!!
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4 thoughts on “2000 साल पहले की कवियत्री की कविताएं : गाथा सप्तशती”

  1. सुंदर और संग्रहणीय कृति, धन्यवाद। हिंदी साहित्य में ऐसी बहुत सी कृतियाँ है, जो सभी पाठकों के लिए उपयुक्त है। धन्यवाद.

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