Ashok Tiwari

शांभवी मुद्रा

 मां दुर्गा का एक नाम शांभवी भी है। वह जो अचेतन को भी चेतन कर सकती है। इन्‍हीं के नाम पर बना है –  हजारो वर्ष पुराना शांभवी मुद्रा योग। यह योगमुद्रा मन को एकाग्रचित करने के साथ ही आंखों में मौजूद विकार भी दूर करता है।  योग जगत में शांभवी मुद्रासन की खास जगह […]

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देवी तत्त्व

 देवी तत्व का दर्शन भारतीय दर्शन और आध्यात्मिक परंपराओं का एक महत्वपूर्ण भाग है। यह दर्शन शक्ति या माँ के रूप में देवी की पूजा और मान्यता को केन्द्र में रखता है। देवी तत्व का मुख्य आधार यह है कि समस्त सृष्टि में शक्ति का स्रोत एक मातृ रूपी देवी है, जो सृजन, पालन, और

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गायत्री महाविज्ञान

 गायत्री महाविज्ञान का दर्शन भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का एक गहन एवं व्यापक सिद्धांत है, जो जीवन के भौतिक, मानसिक और आत्मिक विकास पर केंद्रित है। यह दर्शन जीवन की उच्च संभावनाओं को जागृत करने और मानव-चेतना को परम चेतना से जोड़ने का मार्ग दिखाता है। आइए इसके प्रमुख तत्वों को समझें: 1. गायत्री का तात्त्विक

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शून्य की अवधारणा

 पश्चिमी दर्शन में शून्य (जीरो) का अर्थ है – कुछ नही (nothing) लेकिन हिन्दू और बौद्ध दर्शन में शून्य की अवधारणा एक गहरा और जटिल विषय है जो कि विभिन्न दार्शनिक दृष्टिकोणों के माध्यम से प्रकट किया गया है।  1. हिन्दू दर्शन में शून्य की अवधारणा हिन्दू दर्शन में “शून्य” एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, लेकिन

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साधनाध्याय

 बादरायण कृत ब्रह्मसूत्र का तीसरा अध्याय साधनाध्याय कहलाता है, और इसमें मोक्ष या आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के साधनों का विस्तृत वर्णन किया गया है। साधन का अर्थ है वह मार्ग, जिस पर चलकर साधक ब्रह्मज्ञान या परमात्मा का अनुभव कर सकता है। इस अध्याय में विभिन्न योग, ध्यान, और ज्ञान की विधियों पर प्रकाश डाला

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विज्ञान और ईश्वर

 विज्ञान और ईश्वर : नमो विज्ञानरूपाय परमानन्दरूपिणे। कृष्णाय गोपीनाथाय गोविन्दाय नमो नमः ।। ************************************* विज्ञानरूपाय ईश्वर का अर्थ है वह ईश्वर जो विज्ञानस्वरूप हैं, अर्थात जो सम्पूर्ण सृष्टि के नियमों और प्रक्रियाओं का आधार हैं। भारतीय दर्शन में ईश्वर को न केवल सृष्टि का रचयिता माना गया है, बल्कि वह शक्ति भी माना गया है

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क्या खोया, क्या पाया

 इस जीवन में “क्या खोया, क्या पाया” पर चिंतन करने पर हम पाते हैं कि जिंदगी के सफर में कुछ पाने की खुशी होती है, तो कुछ खोने का दुख भी। जीवन की इस यात्रा में खोने-पाने की भावनाएं अक्सर परस्पर गुंथी हुई होती हैं, और यही जीवन को विविधता और गहराई प्रदान करती हैं।

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सचखंड

 सिख दर्शन में सचखंड की अवधारणा एक महत्वपूर्ण और आध्यात्मिक अवधारणा है, जो आत्मा की मुक्ति और ईश्वर के साथ एकता का प्रतीक है। सचखंड को सिख धर्म में आत्मा की अंतिम और सर्वोच्च स्थिति माना जाता है, जहाँ आत्मा जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाती है और ईश्वर के साथ एक

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Space and Time दिक् और काल

 Space and Time  दिक् और काल  विज्ञान में स्पेस और टाइम का कॉन्सेप्ट लगभग 100 वर्ष पूर्व से आया है , किंतु भारतीय दर्शन में यह हजारों वर्षों पूर्व विकसित हो चुका था । पुराणों में कहा गया है – दिक् च कालश्च शक्त्योर्या जगतः कारणं स्मृतम्।” अर्थात “दिक् और काल दोनों ही शक्ति के

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विशिष्टाद्वैत

 विशिष्टाद्वैत दर्शन के अनुसार, निराकार निर्गुण ईश्वर का साकार सगुण रूप में प्रकट होना इस बात पर आधारित है कि ईश्वर स्वभावतः आत्मा और प्रकृति का आधार है और अपनी करुणा के कारण भक्तों की भक्ति और साधना के लिए सगुण रूप में प्रकट होता है। इसका मुख्य सिद्धांत है कि ईश्वर एक है, लेकिन

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