संतुलन और समन्वय
संतुलन और समन्वय : ईशावास्योपनिषद् बहुत छोटा उपनिषद् है, पर इसमें अत्यन्त गहरे दार्शनिक संकेत हैं। उसमें “विद्या-अविद्या” और “कर्म-अकर्म” के विषय में विशेष रूप से चर्चा की गयी है। इसे समझने के लिए दो स्तर पर देखना पड़ता है – बाह्य (सामान्य अर्थ) और आध्यात्मिक (गूढ़ अर्थ)। अविद्या का आशय यहाँ केवल अज्ञान से […]









