Religion and Philosophy

त्रिताप

त्रिताप वेदान्त व पुराणों में त्रितापों का वर्णन इस प्रकार मिलता है — “आध्यात्मिकं तु यत् तापं शरीरे मनसि स्थितम्।आधिभौतिकमित्याहुर्दुःखं स्वजनसम्भवम्॥दैवात् सम्भवितं दुःखं तृतीयं तापमुच्यते॥”— (श्रीमद्भागवत, स्कंध 3, अध्याय 6) भावार्थ:शरीर और मन में उत्पन्न दुःख आध्यात्मिक ताप कहलाता है । स्वजन, जीव-जंतु, मनुष्य आदि से उत्पन्न कष्ट आधिभौतिक ताप है। दैविक शक्तियों (प्रकृति, ग्रह […]

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हमारे तीन शरीर , त्रिदेह

Three Body Problemहमारे तीन शरीर , त्रिदेह वेदान्त दर्शन में शरीर की त्रिविध सत्ता — स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर — अत्यंत महत्वपूर्ण मानी गई है। १. स्थूल शरीर “स्थूल शरीर वह दृश्य, भौतिक शरीर है जो पंचमहाभूतों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश—के पञ्चीकरण से उत्पन्न होता है। यह पूर्वजन्मों के कर्मों के अनुसार प्राप्त

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वेदों में भगवान विष्णु

मैक्समूलर जैसे तथाकथित विद्वानों ने वेदों की गलत व्याख्याएं कर यह बताने की कोशिश की कि वैदिक आर्य केवल प्राकृतिक देवताओं जैसे इंद्र वरुण अग्नि सूर्य सोम आदि के उपासक थे तथा ब्रह्मा विष्णु शिव गणेश देवियां आदि गुप्तकालीन कल्पनाएं हैं । जबकि वेदों में भगवान विष्णु एक अत्यंत महत्वपूर्ण देवता हैं। वेदों में विष्णु

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शिवसंकल्प सूक्त

शिवसंकल्प सूक्त यजुर्वेद के शुक्ल यजुर्वेद के अंतर्गत आने वाले माध्यन्दिन संहिता के 34वें अध्याय में प्राप्त होता है।यह सूक्त मन की शुद्धता, सद्विचार, और सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। इसमें मन को शिव (कल्याणकारी) बनाने की प्रार्थना की गई है, ताकि हमारे संकल्प पवित्र, सत्य और शुभ हों। इसे “शिव संकल्प” अर्थात्

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Multiverse बहु-ब्रम्हांड

सनातन धर्म (हिंदू धर्म) में “Multiverse” की अवधारणा बहुत पुरानी और गहराई से जुड़ी हुई है। इसमें दो मुख्य प्रकार के मल्टीवर्स (बहु-ब्रह्मांड) की कल्पना की जाती है: इसके अलावा, अन्य ब्रह्मांड भी माने गए हैं जहाँ अन्य ब्रह्मा, विष्णु और महेश होते हैं। देवी भागवत पुराण में यह उल्लेख आता है कि अन्य ब्रह्मांडों

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Observe the observer

J. Krishnamurti का “Observe the observer” (निरीक्षक को देखना) एक गहरा और विचारोत्तेजक ध्यान और आत्मचिंतन का विषय है। इसे समझने के लिए हमें पहले यह समझना होगा कि: 🔹 1. “Observer” (निरीक्षक) कौन है? “Observer” वह आंतरिक चेतना या मन है जो अनुभव, विचार, भावना या क्रिया को देखता है। जैसे जब आप किसी

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तत्त्वार्थ सूत्र

तत्त्वार्थ सूत्र  जैन धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्राचीन ग्रंथ है, जिसे आचार्य उमास्वामी (या उमास्वाति) ने संस्कृत में रचा था। यह ग्रंथ जैन दर्शन का पहला व्यवस्थित सूत्ररूप ग्रंथ है, जो दोनों जैन संप्रदायों—दिगंबर और श्वेतांबर—द्वारा मान्य है। इसमें मोक्ष मार्ग, आत्मा, कर्म, ज्ञान, आचरण आदि विषयों पर गूढ़ किंतु संक्षिप्त सूत्रों में

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महावीर स्वामी का दर्शन

महावीर स्वामी का दर्शन: अन्य जैन तीर्थंकरों से भिन्नता महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तथा अंतिम तीर्थंकर थे। यद्यपि जैन धर्म की मूल शिक्षाएँ आदि तीर्थंकरों द्वारा दी गई थीं, परंतु महावीर स्वामी ने उन सिद्धांतों को एक नई दिशा और स्पष्टता प्रदान की। उन्होंने न केवल जैन दर्शन को व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत

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ऋषी

आज ऋषि पंचमी है कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः। जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥ भारतीय दर्शन में वेद को प्रमाण इसलिए माना है कि वेद में सत्य का साक्षात दर्शन अंतर्ज्ञान के द्वारा माना गया हैं। अंतर्ज्ञान का स्थान तार्किक ज्ञान से ऊँचा है। यह इन्द्रियों से होने वाले प्रत्येक ज्ञान से भिन्न है। इस ज्ञान द्वारा ही

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पितृ पक्ष

पितृपक्ष, जिसे हिंदू धर्मशास्त्र में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, पूर्वजों के प्रति श्रद्धा, कृतज्ञता, और आत्मिक उत्तरदायित्व का समय है। इसकी आध्यात्मिक अवधारणा में गहन धार्मिक, दार्शनिक और सांस्कृतिक तत्त्व निहित हैं, जो मानव अस्तित्व और परलोक के संबंधों पर विचार करते हैं। पितृपक्ष की अवधारणा को समझने के लिए इसे तीन प्रमुख तात्त्विक

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