Religion and Philosophy

शिवसंकल्प सूक्त

शिवसंकल्प सूक्त यजुर्वेद के शुक्ल यजुर्वेद के अंतर्गत आने वाले माध्यन्दिन संहिता के 34वें अध्याय में प्राप्त होता है।यह सूक्त मन की शुद्धता, सद्विचार, और सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। इसमें मन को शिव (कल्याणकारी) बनाने की प्रार्थना की गई है, ताकि हमारे संकल्प पवित्र, सत्य और शुभ हों। इसे “शिव संकल्प” अर्थात् […]

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Multiverse बहु-ब्रम्हांड

सनातन धर्म (हिंदू धर्म) में “Multiverse” की अवधारणा बहुत पुरानी और गहराई से जुड़ी हुई है। इसमें दो मुख्य प्रकार के मल्टीवर्स (बहु-ब्रह्मांड) की कल्पना की जाती है: इसके अलावा, अन्य ब्रह्मांड भी माने गए हैं जहाँ अन्य ब्रह्मा, विष्णु और महेश होते हैं। देवी भागवत पुराण में यह उल्लेख आता है कि अन्य ब्रह्मांडों

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Observe the observer

J. Krishnamurti का “Observe the observer” (निरीक्षक को देखना) एक गहरा और विचारोत्तेजक ध्यान और आत्मचिंतन का विषय है। इसे समझने के लिए हमें पहले यह समझना होगा कि: 🔹 1. “Observer” (निरीक्षक) कौन है? “Observer” वह आंतरिक चेतना या मन है जो अनुभव, विचार, भावना या क्रिया को देखता है। जैसे जब आप किसी

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तत्त्वार्थ सूत्र

तत्त्वार्थ सूत्र  जैन धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्राचीन ग्रंथ है, जिसे आचार्य उमास्वामी (या उमास्वाति) ने संस्कृत में रचा था। यह ग्रंथ जैन दर्शन का पहला व्यवस्थित सूत्ररूप ग्रंथ है, जो दोनों जैन संप्रदायों—दिगंबर और श्वेतांबर—द्वारा मान्य है। इसमें मोक्ष मार्ग, आत्मा, कर्म, ज्ञान, आचरण आदि विषयों पर गूढ़ किंतु संक्षिप्त सूत्रों में

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महावीर स्वामी का दर्शन

महावीर स्वामी का दर्शन: अन्य जैन तीर्थंकरों से भिन्नता महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तथा अंतिम तीर्थंकर थे। यद्यपि जैन धर्म की मूल शिक्षाएँ आदि तीर्थंकरों द्वारा दी गई थीं, परंतु महावीर स्वामी ने उन सिद्धांतों को एक नई दिशा और स्पष्टता प्रदान की। उन्होंने न केवल जैन दर्शन को व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत

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ऋषी

आज ऋषि पंचमी है कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः। जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥ भारतीय दर्शन में वेद को प्रमाण इसलिए माना है कि वेद में सत्य का साक्षात दर्शन अंतर्ज्ञान के द्वारा माना गया हैं। अंतर्ज्ञान का स्थान तार्किक ज्ञान से ऊँचा है। यह इन्द्रियों से होने वाले प्रत्येक ज्ञान से भिन्न है। इस ज्ञान द्वारा ही

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पितृ पक्ष

पितृपक्ष, जिसे हिंदू धर्मशास्त्र में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, पूर्वजों के प्रति श्रद्धा, कृतज्ञता, और आत्मिक उत्तरदायित्व का समय है। इसकी आध्यात्मिक अवधारणा में गहन धार्मिक, दार्शनिक और सांस्कृतिक तत्त्व निहित हैं, जो मानव अस्तित्व और परलोक के संबंधों पर विचार करते हैं। पितृपक्ष की अवधारणा को समझने के लिए इसे तीन प्रमुख तात्त्विक

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इंग्लैंड की रामायण

इंग्लैंड की रामायण –हरि अनंत हरि कथा अनंता फादर कामिल बुलके ने आपने शोध प्रबंध हेतु 300 रामायणों का संग्रह व अध्ययन किया था । भारत के अतिरिक्त जापान , इंडोनेशिया, श्रीलंका, कंबोडिया, ईरान, लाओस,थाईलैंड, रूस, तुर्कमेनिस्तान आदि में भी प्राचीन रामायण पाई जाती हैं । ग्रीक एवं रोमन पुराण कथाओं में रामकथा से मिलते

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अयोध्या : बाहर और अंदर

एक अयोध्या बाहर है जहां भगवान श्री राम की जन्म भूमि है और एक अयोध्या नगरी हमारा आपका यह शरीर भी है जिसमें आत्मा के अंदर परमात्मा भी विद्यमान है। बाहर की अयोध्या तो प्रतीक मात्र है अंदर की अयोध्या का – अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या |तस्यां हिरण्ययः कोषः स्वर्गो ज्योतिषावृतः।। [अथर्ववेद 10/02/31 ] अष्टचक्रा

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“शि” तथा “व” ध्वनियाँ

संस्कृत में ध्वनियों का गूढ़ विज्ञान है, और “शि” तथा “व” ध्वनियाँ विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। ये ध्वनियाँ न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा और शिव-तत्त्व से भी इनका गहरा संबंध है। “शि” ध्वनि ज्योति (प्रकाश), ज्ञान और चेतना का प्रतीक है।यह शिव के निर्गुण रूप का प्रतिनिधित्व

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